जैसे तालों को खोलने के लिए
होती हैं चाभियाँ
काश वैसे ही होती चाभियाँ
परत-दर-परत चेहरों को खोलने के लिए भी
तब सहज होती
अपने- पराये की पहचान
तब न कदम-कदम पर
छले जाते हम
और न दोष देते किस्मत को .............|
अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
जैसे तालों को खोलने के लिए
होती हैं चाभियाँ
काश वैसे ही होती चाभियाँ
परत-दर-परत चेहरों को खोलने के लिए भी
तब सहज होती
अपने- पराये की पहचान
तब न कदम-कदम पर
छले जाते हम
और न दोष देते किस्मत को .............|
1 comment:
अच्छा है. भड़ास निकालने का अच्छा स्थान है
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