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5.3.09

दिल्ली दिलवालों की.......

दिल्ली दिलवालों की, मुंबई पैसे वालों की........................................ये पंक्ति किसी फ़िल्म की है या किसी कवि की रचना है मैं नही जानता.....पर जब भी हम अपने बचपन को याद करते हैं तो उस बचपन की याद के साथ ये पंक्तिया याद आ जाती हैं। किस्मत से, या बदकिस्मती से मेरे सपने दिल्ली में ही पुरे हो सकते हैं, तो मैं बोरिया बिस्तर बाँध अपने सपनो को पुरा करने दिल्ली आ गया। सोचा थोड़े बहुत पैसे ले लेते हैं, बाकी अपना इकलौता दिल तो हैं ही दिल्ली के लिए। मुंबई थोड़े जा रहे हैं की ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ेगी। जब हम यहाँ पहुचे, सात-आठ दिन हाथ पैर चलाये तब कम्बक्त पता चला की दिल्ली दिलवालों की क्यों है। यहाँ कोई किसी का जल्दी नही होता है। जब तक आप यहाँ नही आते तब तक तो वे लोग बुला - बुला के परेशां कर देंगे,परन्तु जैसे ही आप दिल्ली आ गए समझो वो सबसे पहले कल्टी मारेंगे। अगर आप नही समझ पाए तो समझा दू की यहाँ आधे से अधिक लोगों ने अपने दिलों के फोटो स्टेट करा लिए हैं। उनका सही दिल कौन सा है पता लगाना भी मुस्किल है। कुछ लोग ही बचे हुए हैं जिन्होंने अपने दिल का फोटोस्टेट नही कराया। मैंने तो सोच लिया की मैं जैसा था वैसा ही रहूँगा। एक बात और बता देना चाहूँगा भाई मेरे जैसे थे वैसे ही रहियो । काफ़ी तरक्की करोगे । .................दिल्ली दिलवालों की...मुंबई पैसे वालों की.......... जो लिखा वो मेरी आप बीती है....हो सकता है ऐसा आपके साथ भी हुआ हो.

1 comment:

Siddharth Kalhans said...

Bhai Dilli ka koi dil nahi. Pata nahi Jauk, Ghalib ya Mir ne likha hoga isko. Dilli mein sab matlabi bhai log hi milenge. Bhool ke nahi jaana chahiye wahan