क्रांतिकारी चेतना के कवि बाबा नागार्जुन की कवितायेँ एक ओर जहाँ सहजभाव की द्योतक हैं वहीं आम आदमी की पीड़ा का प्रतिनिधित्त्व भी करती हैं। उन्होंने कविताओं के अलावा कहानी और उपन्यास भी लिखे हैं. प्रस्तुत है बाबा की एक चर्चित कविता "चंदू मैंने सपना देखा"
चंदू मैंने सपना देखा, उछल रहे तुम ज्यों हिरनौटा
चंदू मैंने सपना देखा, अमुआ से हूँ पटना लौटा
चंदू मैंने सपना देखा, तुम्हें खोजते बद्री बाबू
चंदू मैंने सपना देखा, खेल कूद में हो बेकाबू
चंदू मैंने सपना देखा, कल परसों ही छूट रहे हो
चंदू मैंने सपना देखा, खूब पतंगें लूट रहे हो
चंदू मैंने सपना देखा, लाये हो तुम नया कलेंडर
चंदू मैंने सपना देखा, तुम हो बाहर मैं हूँ अंदर
चंदू मैंने सपना देखा, अमुआ से पटना आये हो
चंदू मैंने सपना देखा, मेरे लिये शहद लाये हो
चंदू मैंने सपना देखा, फैल गया है सुयश तुम्हारा
चंदू मैंने सपना देखा, तुम्हें जानता भारत सारा
चंदू मैंने सपना देखा, तुम तो बहुत बड़े डाक्टर हो
चंदू मैंने सपना देखा, अपनी ड्यूटी में तत्पर हो
चंदू मैंने सपना देखा, इमितिहान में बैठे हो तुम
चंदू मैंने सपना देखा, पुलिस-यान में बैठे हो तुम
चंदू मैंने सपना देखा, तुम हो बाहर, मैं हूँ अंदर
चंदू मैंने सपना देखा, लाए हो तुम नया कलेंडर
4.6.09
चंदू मैंने सपना देखा
Labels: बाबा नागार्जुन - कविता
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2 comments:
baba ki rachnao ki bat hi alag hai
maine unki bhut se4 rachnau padi hai
Is kavita ke liye dhanyavad.
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