NDTV India की Breaking News: छात्राओं पर नही लागु होगा ड्रेस कोड * उत्तर प्रदेश सरकार का फ़ैसला * फ़ैसला न मानने वाले कोलेज पर होगी करवाई
अब आप लोग ये मत सोंचियेगा कि मैं अब News Channel की गलतियों पर प्रकाश डालूँगा। क्योंकि मेरा ऐसा कोई विचार नही है। मैं तो बस आप सब लोगों का ध्यान इस Breaking News पर डालना चाहता हूँ।
News Channel के सारे Reporters, Ancors and their Specialist अब इस समाचार को सही ठहराने पर लग जायेंगे। कुछ दिन पहले भी यही खबरें News Channels का हिस्सा थी। उस वक्त भी लड़कियों के जींस पहनने पर रोक को एक मताधिकार के साथ ग़लत ठहराया गया था। कोलेज प्रशाशन के इस फैसले को उसी कोलेज में पढने (कम और घुमने वाली) छात्राओं ने ग़लत बताया था। और उनका साथ हमारे educated reporters ने यह कह कर दिया था कि ये फ़ैसला एक "तालिबानी फ़ैसला" है।
पर मुझे नही लगता कि ये फ़ैसला तालिबानी है या दकियानूसी। मुझे लगता है कोलेज प्रशाशन का फ़ैसला बिल्कुल सही है। ताज्जुब मुझे इस बात का है कि इस सही फैसले का समर्थन करने कि बजे हम इसके किलाफ क्यों है। उत्तर प्रदेश कि माननीया मुख्यमंत्री साहिबा को आख़िर इस फैसले में ऐसा ऐतराज क्यों है। मुझे मालूम है आप लोगों को लग रहा होगा कि मैं भी तालिबानी सोंच और दकियानूसी विचार धारा से प्रेरित इंसान हूँ। पर ऐसा नही है। मैं लड़कियों कि अभिव्यक्ति और उनकी आजादी के ख़िलाफ़ नही हूँ। बल्कि मैं अनुशाशन के पक्छ में हूँ। और अनुशाशन सिर्फ़ लड़कियों के लिए ही नही बल्कि सबके लिए होने चाहिए।
लड़कियों को सिर्फ़ जींस पहनने कि ही नही बल्कि हर बात कि आजादी है। वो अपने मन का पहन सकती है, खा सकती है, सोंच सकती है और कर सकती है। पर कोलेज के इस फैसले को हम क्यों नही एक positive view से देखें? एक अनुशाश्नात्मक कदम के रूप में... आज सवाल इस लिए उठ रहे है क्योंकि ऐसे नियम एक या दो कोलेजों ने लगाये है। मेरी सोंच से अगर देखिये तो ऐसा हिन्दुस्तान के सारे कोलेजों में होना चाहिए। कोलेज पढाई का, विद्या का स्थान होता है न कि फैशन का या फ़िर पिकनिक मनाने का।
अगर मैं एक line में कहूँ तो कोलेज में ड्रेस कोडे जरूर होने चाहिए। इस से दुसरे छात्र-छात्राओं में न ही द्वेष भाव कि उत्त्पत्ति होगी न ही फालतू के competion कि बाढ़ आएगी। हम विद्यालय में सहज ड्रेस कोडे को एक्सेप्ट करते है तो कोलेज में एक्सेप्ट करने से क्या तकलीफ है। बल्कि हम सबको इसके लिए एक साथ आगे आना चाहिए
5 comments:
मैं आपकी बात से सहमत हुं ड्रेस कोड दोनो के लिये होना चाहिये। आगरा के सेण्ट जौंस कालेज मे जब हम पढते थे तो ड्रेस कोड नही थ लेकिन हमारा आखिरी साल पुरा होते ही वहां ड्रेस कोड लागु हो गया जो दोनो के लिये था।
एक बात मैं कहना चाहुंगा की अगर ड्रेस कोड ना हो तो अश्लिलता की ज़द मे आने वाले कपडे लडकियां ही पहनती हैं पता नही अपना ज़िस्म दिखाने मे उन्हे क्या मज़ा आता है?
लेकिन जब दिखते ज़िस्म को गौर से देखो तो छोटे कपडें को खिचं कर बडा करने की कोशिश करती है ऐसा क्यौं? जब शर्म आती है तो ऐसा कपडा पहनते ही क्यौं हो?
मेरे इस सवाल का जवाब आज तक नही मिला. जितने प्राईवेट बिज़नेस कालेज है उनमें से ज़्यादातर मे ड्रेस कोड है क्यौंकी इससे सब एक समान दिखते है। आपको नही लगता की जब लडकी को जीन्स पहनने की इजाज़त दी जाती तो उसकी जीन्स कमर से काफ़ी नीचे कुल्हे के काफ़ी करीब आ जाती है और काफ़ी चुस्त हो जाती है इस हालत मे लडकी ने जीन्स के अन्दर क्या पहना है, उसका शेप क्या है? उसका बान्र्ड क्या है? रंग क्या है? और वो कहां से शुरु हो कर कहां खत्म हो रही है?
टाप ऐसा होता है जिसमे से पुरी कमर दिखती है, और अकसर इतना महीन होता है अन्दर पहने हुऎ वस्त्र का रंग भी दिखता है और ये भी दिखता है की कौन से हुक मे ये लगा हुआ है।
अब आप बताये इस लिबास को आप शालीन कहेंगे
apka kahna sahi he. dress code dono ke liye hona chahiye.u.p sarkar aisa karke bhedbhav karegi
काशिफ साहब तो बड़े गौर से इन चीज़ो को देखते है।मियां आप क्या कर रहे थे गर्ल्स कालेज के बाहर उनके अंत वस्त्रों को निहार रहे थे क्या। आपने जिस तरह से लड़कियों के कपड़ो को डिस्क्राइब किया है वैसे तो लगता कि आप बहुत गहन रिसर्च किया है। आप जैस लोग ही कहते है कि ये सब गलत है।
my dear arif,
thank ki aapne "bhadaas" par mere lekh 'dress code: galat ya sahi" par apne comments diye. aapka lekh bhi padha... samajh nahi aa raha ki aapko kya kahun? sach maniye aapne to mere shabdo ko bemani kar diya. apne lekh mein maine baat ashlilata ki nahi ki thi. maine baat dress code ki kahi thi. main ab bhi maanta hun har vidyalao, sikchhan sansthano ke sath sath, har office aur working areas mein bhi dress code hona chahiye... isse kisi v sansthan ki pahchaan badhti hai... par aapne to mere lekh ko padhne ke baad ladkiyon ke kapdo par pura research hi kar dala... dear main ladkiyon ke kisi v pahnave ke virudh nahi hun, main sirf dress code ke pakchh mein hun... khair apni apni sonch...
is vishay par mera lekh "angrej gaye aulad chod gaye" padhen www.tensionpoint.blogspot.com
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