विनोद के मुसान
माया की महामाया परंपार है। जो कोई न करे, वह कर गुजर जाए। पूर्व में शायद देश के महापुरूषों को अ ल नहीं थी। उन्होंने अपने जीवित रहते अपना कोई बुत नहीं लगवाया। इसलिए तो उनका यह हाल है। जो उनके अमर होने के बाद कई लोग उन्हें ठीक से जानते तक नहीं। लेकिन बहन जी ने इस मामले में कोई कसर नहीं छाे़डी। अपने जीवन रहते ही इतने बुत खड़े कर दिए, ताकि बाद में कोई कसर न रहे। फिर करे भी यों न। इतिहास गवाह है, अपने जीवत रहते अमरत्व की लालशा कई लोगों ने की। वे कितने सफल हुए, यह एक अलग विषय है।
अब यही अभिलाषा एक दलित की बेटी ने की तो कईयों के पेट में दर्द होने लगा। अरे भाई! अमरत्व कोई सत्ता की कुर्सी नहीं, जिस पर कोई भी ऐरा-गैरा, नत्थु खैरा आ कर बैठ जाए। यह एक तपस्या है, जिसे पूरा करने के लिए कई त्याग करने पड़ते हैं। जनता के दो-चार हजार कराे़ड रुपए तो आहूति भर हैं। अपनी इस उत्थान यात्रा में वे लगातार आगे बढ़ रही हैं। उन्होंने ताज कारिडोर, चल-अचल संपत्ति, भष्ट ्राचार तथा कई अन्य प्रकार के राहु-केतुआें को पटखनी देते हुए यह उपलब्धि हासिल की है। और फिर आप उनके अन्य महान कर्मों को यों भूल जाते हैं। पहले उन्होंने दलितों का उत्थान किया। उन्हें तर किया, वितर किया और फिर एकत्र किया। पिछले चुनाव में इसका विस्तार करते हुए एक उच्च श्रेणी की जाति का सेनापति नियु त किया और नारा दिया 'सर्व जन सुखाय, सर्व जन हिताय`। तुम भी खाओ, हमें भी खाने दो, सभी सुखी रहो। अब आप ही बताएं, इसमें गलत या भाई। आज कल जहां, भाई-भाई को सुखी नहीं देख सकता, वहीं वह सर्व जन सुखाय की बात करती हैं। अपने प्रदेश के दलितों का उत्थान करने के बाद वह रूकी नहीं, उन्होंने अपनी विकास यात्रा जारी रखी। वे देश की प्रधानमंत्री बनकर पूरे देश का उत्थान करना चाहती थी। लेकिन उनकी इस मुहिम को बिता चुनाव झटका दे गया। देश के कई पार्क और चौराहे उनकी अमरत्व की शिला से महरूम रह गए।
अब ताजा प्रकरण ही ले लीजिए। अमरत्व की उनकी इस विकास यात्रा में एक सिरफिरे ने खलल डाल दिया। इतनी व्यवस्तम यात्रा में उन्हें कुछ ऐसे सवालों का जवाब देना पड़ेगा, जिनका पूछने वाले और जवाब देने वाले दोनों को पता है कि इसके बाद भी कुछ नहीं होने वाला।
जैसे जनता की गाढ़ी पसीने की कमाई यानि सरकारी धन का दुरुपयोग यों किया गया। वह भी तब, जबकि उनका प्रदेश गरीबी और अशिक्षा में सबसे आगे है। जनता को दी जाने वाली मूलभूत सुविधाआें का टोटा है। जनता के बीच बिजली-पानी को लेकर हहाकार मचा है। स्वास्थ्य सेवाआें की तो बात ही मत करो। परिवहन का बुरा है। ऐसे में भला आप खुद का उत्थान कैसे कर सकती हैं।
खैर हमारी तो कामना है बहन जी आप दिन-दुनी, रात चौगुनी तर की करो। आप दलितों की मसीहा बनी, खुद का उत्थान किया, अब देश का भी कुछ भला करो। योंकि ज्यादा खाने से किसी को भी अपच हो जाता है। बढ़े-बू़ढों की बात समझो। कम खाओ और सुखी रहो।
1.7.09
अमरत्व की अधूरी आश
Labels: माया की महामाया
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1 comment:
सही कहा जनाब.ये इनकी हरकतें वाकई अमरत्व की अधूरी आशा को प्रदर्शित करती हैं
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