विस्फ़ोट पर पंकज चतुर्वेदी का बहुत गंभीर आलेख है कार्बन-क्रेडिट पर. पर्यावरण के संकट को व्यापार में बदल दिया है चतुर जनों ने.कार्बन उत्सर्जन कम हो, तो पर्यावरण को कम नुक्सान होता है; जबकि वर्तमान विकास की प्रत्येक धारा पर्यावरण पर गहरी चोट करती है. समाधान यह है कि मानव समझ पाकर विकास के इस माडल को बदले. प्रकृति के निअयमों को जानकर उसी अनुसार समृद्धि पानेका प्रयत्न करे, आवर्तन शील अर्थशास्त्र अपनाये. .... पंकजजी ने सदाशयता में जो जानकारी दी है, वह भी भ्रमको बढाने में सहायक है. भ्रम हटे, मानव का लालच मिटे और समझ बने, तो वह रुपये के बिना जीना सीख सकता है. .... आलेख पर इस काव्यमय ट्टिपणी में यही कहा गया है.
पर्यावरण बचाना भी, बना आज व्यापार.
ऊपर से अच्छा लगे, भीतर गहरी मार.
भीतर गहरी मार, रुप्पया सिर चढ बैठा.
मानव का लालच धरती का दर्द बढाता.
कह साधक रुपया है भ्रमका बङा खजाना.
है व्यापार, नाम है पर्यावरण बचाना.
8.12.09
पर्यावरण के नाम व्यापार.
Posted by Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak "
Labels: लालच
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