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30.1.10

क्या मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ?-ब्रज की दुनिया

बिहार के कई जिलों में इन दिनों आम जनता को एक दिन का दारोगा बनाने की बिहार पुलिस ने मुहिम चला रखी है.उद्देश्य है पुलिस को पीपुल फ्रेंडली बनाना.क्या वास्तव में बिहार पुलिस पीपुल फ्रेंडली बनाने की दिशा में अग्रसर है?कल मैं जब हाजीपुर शहर में था मैंने पुलिस का जो रूप देखा उससे तो ऐसा नहीं लगता.पहली घटना तब की है जब मैं गांधी चौक पर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के ए.टी.एम. में पैसा निकालने के लिए पंक्ति में खड़ा था.चूंकि मशीन में बिहार बंद के चलते पैसा डालना संभव नहीं हो सका था इसलिए मशीन १०० रूपये का नोट दे रही थी और पैसा निकालने में काफी समय लग रहा था.सामने आधी सड़क निर्माणाधीन होने के चलते जाम लग रहा था.तभी एक पुलिस के जवान आया और जाम समाप्त करने की कोशिश करने लगा लेकिन अपने तरीके से.साईकिल और रिक्शावालों पर डंडा चलाकर और कार-मोटरसाइकिल वालों से अनुनय-विनय करते हुए.उसका व्यवहार इतना भद्दा था कि मैं खुद भी उसे डांटे बिना रह न सका.वह बूढ़े रिक्शावालों को भी धड़ल्ले से गालियाँ दे रहा था और पहिये से हवा निकाल दे रहा था.खैर मैंने पैसा निकाला और आगे बढ़ गया.करीब दो घन्टे बाद जब मैं गुदरी बाजार से एम. चौक की ओर जा रहा था.अब आप कहेंगे कि किसी चौक का नाम शॉर्ट फॉर्म में क्यों.तो आपको बता दूं कि मस्जिद के ठीक सामने हनुमानजी का मंदिर है.इसलिए मुसलमान इसे मस्जिद चौक और हिन्दू महावीर चौक कहते हैं और इस तरह एक अघोषित समझौते के तहत इसका नाम एम. चौक हो गया है.तो मैं जब एम. चौक के पास था तो वहां जलापूर्ति विभाग की कृपा से सड़क पर पानी लगा हुआ था.जब मैं जलजमाव क्षेत्र के मध्य में था तभी नगर थाने की एक गाड़ी विपरीत दिशा से आती दिखाई पड़ी.इससे पहले भी कई बोलेरो आदि निजी वाहन गुजर चुके थे लेकिन इस ख्याल से कि हम जैसे निरीह पैदलयात्रियों को कीचड़ के छीटे नहीं पड़े ड्राइवरों ने गति धीमी कर दी थी.लेकिन जब पुलिस की गाड़ी गुजरी तो गति घटने के बजाये तेज हो गई.परिणामस्वरूप मेरे कपड़े कीचड़ से सन गए.मैं चिल्लाया भी कि पागल हो गए हो क्या? लेकिन गति कम नहीं हुई.फलस्वरूप अन्य कई पैदलयात्रियों को भी बिन मौसम की होली को अपने कपड़ों पर झेलना पड़ा.भारत के हर पुलिस थाने और चौकी में लिखा रहता है कि क्या मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ?क्या यह तरीका होता है सहायता करने का?बिहार में जनता दरबारों में जितने मामले पुलिस के खिलाफ आते हैं सिर्फ उन सब पर सख्ती से कार्रवाई कर दी जाए तो पुलिस काफी हद तक पीपुल फ्रेंडली हो जाएगी.इस तरह जनता को एक दिन का दरोगा बनाने से कुछ नहीं होनेवाला.भय बिनु होहिं न प्रीति.

1 comment:

रामकृष्ण गौतम said...

भय बिनु होहिं न प्रीति

Very True...




Regards


Ram K Gautam