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1.2.10

क्यों बलात्कार कि शिकार भुगते सजा

नीलम की मौत ने एक सवाल खड़ा कर दिया है हमारी न्याय व्यवस्था और सामाजिक मान्यताओ पर. बलात्कार करता तो पुरुष है पर इसकी सजा उस महिला को ताजिंदगी भुगतनी पड़ती है . यह कैसा समाज है जो पीडिता को ही परेशां करने में कोए कसार नहीं छोड़ता . मुझे तो इसका एक ही हल नजर आता है . भले ही किसी बुरा क्यूँ न लगे . बलात्कार करने वाले पुरुषो का एक छोटा और सामान्य सा ऑपरेशन करके उन्हें एस काबिल ही न छोड़ा जाये कि वो दुबारा यह हरकत करने काबिल ही न राह जाये.
किसी भी लड़की के साथ यैसा करते समाया उन्हें यही लगता हिया कि कि पैसे के जोर से या दबाव डालकर वो पीडिता कि आवाज दबा देगे . पहले तो मुकदमा ही जाने कितना लम्बा खिचेगा , इतने समाया में पीडिता सामाजिक जिल्लत से मजबूर होकर या तो केस वापस ले लेगी या अपनी जान दे देगी . इन अपराधियों के मन में डर बिठाने कि जरूरत है . इसलिए उन्हें अंग भंग कर देना ही सबसे अच्छा विकल्प है. कम से कम वे भी पीडिता कि तरह जिन्दगी भर सजा भुग्तेगे. हर बार उन्हें एहसास होगा कि उन्होंने क्या किया है.इस एक सजा के अतिरिक्त उन्हें आजाद छोड़ दिया जाये.
जब इस तरह कि कुछ नजीरें सामने आएगी तभी ये घटनाये रुकेगी.

5 comments:

arvind said...

बलात्कार करने वाले पुरुषो का एक छोटा और सामान्य सा ऑपरेशन करके उन्हें एस काबिल ही न छोड़ा जाये कि वो दुबारा यह हरकत करने काबिल ही न राह जाये.......बिल्कुल सही लिखा है आपने.वैसे लेख में कुछ व्याकरण अशुद्धि है फ़िर भी आपने बहुत अच्छी बात लिखी है.सच्चाई यह है की बलात्कार की शिकार महिलाओं के साथ न्याय-व्यवस्था,पुलिस और समाज बहुत ही अन्याय करते हैं.गिद्ध और भेडिये--दोनों को कठोरतम दंड मिलना चाहिये.

Anonymous said...

शिखा जी, आपका सुझाया गया हल बेशक थोड़ा अव्यवहारिक लगता हो लेकिन पूरी तरह व्यवहारिक है। खास तौर से वह मामले जिनमें बलात्कार की शिकार बालिका या नाबालिग होती है। आपके सुझाए गए हल को व्यवहारिक रूप देने में ऐसी कोई मुश्किल भी नहीं है। जरूरत है तो कुछ डॉक्टरों की और कुछ हौसलेमंद युवतियों की। इसी समस्या पर डिंपल कपाड़िया और राजबब्बर की एक शानदार फिल्म भी बनी थी जख्मी औरत। उसमें भी इसी प्रकार के हल को परदे पर चित्रित किया था। ...मेरा मानना है कि आने वाले समय में अगर न्याय न मिलने पर पीड़िताएं खुद ही यह कदम उठाने लगें तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
दीपक शर्मा- पत्रकार

Anonymous said...

शिखा जी, आपका सुझाया गया हल बेशक थोड़ा अव्यवहारिक लगता हो लेकिन पूरी तरह व्यवहारिक है। खास तौर से वह मामले जिनमें बलात्कार की शिकार बालिका या नाबालिग होती है। आपके सुझाए गए हल को व्यवहारिक रूप देने में ऐसी कोई मुश्किल भी नहीं है। जरूरत है तो कुछ डॉक्टरों की और कुछ हौसलेमंद युवतियों की। इसी समस्या पर डिंपल कपाड़िया और राजबब्बर की एक शानदार फिल्म भी बनी थी जख्मी औरत। उसमें भी इसी प्रकार के हल को परदे पर चित्रित किया था। ...मेरा मानना है कि आने वाले समय में अगर न्याय न मिलने पर पीड़िताएं खुद ही यह कदम उठाने लगें तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
दीपक शर्मा- पत्रकार

Anonymous said...

shikhaji, aapki bat bilkul sahi hai... Balatkariyon ke sath yehi hona chahiye! -Suresh Jaipal(comics activist)

Unknown said...

idea sateek hai, bharat ke sambidhan mein ammendment karke balatkariyo ko BADIA karne ka kanoon parit hona chahiye, mahilao ko 50 % reservation milne ke baad ab mahilaon ko yeh amendment karana chahiye.obviously balatkar ke legal cases kibhi tasdeeqe hona essential hai,because balatkar ke rare cases facts per depend hote hai.