यह कहावत तो आप ने सुनी होगी जब जागे तब सबेरा। यह खबर आई है। कौतूहल पूर्ण और प्रशंसनीय। इस वर्ष की बोर्ड परीक्षा दे रहे हैं भाजपा सरकार में समाज कल्याण राज्यमंत्री रहे दल बहादुर कोरी। यह पूर्व राज्यमंत्री रहे दल बहादुर कोरी। यह पूर्व राज्यमंत्री इस वर्ष प्रतापगढ़ के एक केन्द्र से हाईस्कूल की परीक्षा दे रहे हैं। देर शायद दुरूस्त आयद। यही क्या कम है कि सुबह के भूले शाम को घर पहुंचे। साक्षरता या समाज में शिक्षा के प्रसार के लिये सरकारें या समाज में शिक्षा के प्रसाद के लिये सरकारें व्यथित रहती है, बड़ी रक़में खर्च की जा रही है।‘मिड़ डे मील‘ से बच्चे कम, दूसरे ज़्यादा फ़ायदा उठा रहे है। आज़ादी के 63 र्वष हो चुके, परन्तु साक्षरता दर हम अधिक नही बढ़ा सके। लगता यह है कि दो भारत हैं-एक अमीरों का दूसरा ग़रीबों का। शहरी अमीर बस्तियों में बच्चों को पढ़ाना‘ स्टेटस सिंबल‘ है। शिक्षा-माफ़िया या व्यवसायी‘ क्रेज़‘ पैदा करके दोनो हाथों से धन लूट रहे हैं, दूसरी ओर ग़रीब भारत की जनता पहले भोजन और रोज़गार से जूलमे-शिक्षा तो बाद की चीज़ है। साक्षर वह भी है जो पढ़ना लिखना नहीं जानता बस अगले से हस्ताक्षर तक पहुँच गया हमारे कबीर दास जी बेचारे तो साक्षर भी नहीं थे। बात कबीर का आ पड़ी तरे एक बात सुन लीजिये-शिक्षा और ज्ञान में क्या अन्तर है। ययह दोनो साथ साथ चलते भी है और साथ दोड़ भी देते है। अनेक डिग्रीधारी व्यक्ति जाहिलों से भी बदतर हैं, शिक्षा का दुरूपयोग करते हैं, मानवता के स्थान पर घृणा फैलाते हैं। कबीर शिक्षित नहीं थे, लेकिन ज्ञानी थें। ज्ञान सहृदपता और मानवता की ओर ले जाता है। एक दूसरे से प्रेम करना सिखाता है-
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय।
मसिकागद छूओ नहीं, कलम गहेव नहिं हाथ।
डॉक्टर एस.एम हैदर
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