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9.6.10

... मैं अभी हारा नहीं हूँ.


                         (उपदेश सक्सेना)
“फैसला होने से पहले, मैं अभी क्यों हार मानूं, जग अभी जीता नहीं है, मैं अभी हारा नहीं हूँ.
कुछ इन्हीं पंक्तियों की तर्ज़ पर भोपाल गैस कांड के 26 बरस बाद आये फैसले ने मध्यप्रदेश और केन्द्र की सरकारों को जगा दिया है. गड़े मुर्दे उखाड़ने की कहावत का वैसे तो यहाँ उपयोग नहीं करना चाहिए, मगर जिस तरह से सीबीआई के पूर्व अधिकारी बीआर लाल और भोपाल के सबसे ईमानदार तथा भोपाल गैस कांड के वक़्त वहाँ के कलेक्टर रहे मोतीसिंह ने अब मीडिया के सामने पुराने राज़फाश किये हैं, उनके लिए इसके अलावा और कोई जुमला सटीक नहीं बैठता. लाल साहब ने खुलासा किया है कि इस कांड की जांच के वक़्त उन्हें विदेश मंत्रालय से यह लिखित आदेश मिले थे कि वारेन एंडरसन(यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन अध्यक्ष) मामले में ज़्यादा रूचि नहीं लेना है. मोतीसिंह कह रहे हैं कि उन्होंने तो एंडरसन को गिरफ्तार कर लिया था, मगर तत्कालीन मुख्य सचिव ब्रह्मदत्त के स्पष्ट निर्देश के बाद न केवल एंडरसन को छोड़ा गया बल्कि उसे सरकारी विमान से दिल्ली तक छुड़वाया भी गया था.

बेखुदी बे-सबब नहीं है ग़ालिब
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है.....
गैस हादसे के वक़्त मप्र में कांग्रेस की अर्जुनसिंह के नेतृत्व की सरकार थी, जबकि केन्द्र में राजीव गांधी प्रधानमन्त्री थे. यदि उक्त दोनों अफसरों के बयान भरोसा करने लायक हैं तो यह स्पष्ट है कि इसमें कहीं न कहीं कांग्रेस की भूमिका संदिग्ध है. याद कीजिये वह दौर जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आनन-फानन में राजीव गांधी को प्रधानमन्त्री बना दिया गया था, उस वक़्त राजीव अपेक्षाकृत कमज़ोर राजनीतिक समझ वाले राजनीतिज्ञ माने जाते थे, क्या यह नहीं हो सकता कि अमरीका का एंडरसन को छुडवाने के लिए राजीव पर किसी तरह का कोई दबाव पड़ा हो, यह वही दौर था जब देश आतंकवाद के दौर से गुज़र रहा था, और अमरीका भारत को मदद का आश्वासन दे रहा था, राजीव की यादों में अपनी माँ की हत्या की तस्वीरें ताज़ा थीं, इसे ही हथियार बनाकर अमरीका ने राजीव की भावनाओं को भुनाया हो.?
अब बात एक बार फिर नए खुलासों पर.इन अफसरों की जनता के प्रति निष्ठा गैस हादसे के फैसले के बाद ही क्यों जाग्रत हुई? यदि इन अफसरों की यह बोलती कुछ समय पहले खुल जाती तो 25 हज़ार मृतकों की भटकती आत्मा को शायद सुकून मिल जाता. सांप निकलने के बाद लकीर पीटने की कवायदों में जब मप्र सरकार ने आज इस मामले को उच्च अदालत में चुनौती देने के लिए एक समिति का गठन कर दिया तो कुछ ही घंटों बाद केन्द्र ने भी मंत्रियों मी एक समिति का गठन कर डाला, यह सबसे कारगर तरीका है सरकारों का, कि किसी मामले में जब बात बिगड़ने लगे तो कम से कम एक समिति का गठन कर दिया जाए, ताकि जनता शांत रहे, क्या इस बात की जांच यह समितियां करेंगी कि विदेश मंत्रालय से किसने और किसके आदेश पर सीबीआई को जांच ढीली करने को कहा था, या किसके निर्देशों पर ब्रह्मदत्त ने एंडरसन को छुडवाकर सरकारी हवाई जहाज़ से दिल्ली तक पहुंचाया था? वसीम बरेलवी का यह शेर गैस पीड़ितों की हालात बयानी के लिए मौज़ूँ है-
उनकी ज़फायें,मेरी वफ़ाओं के सामने
जैसे कोई चिराग,हो हवाओं के सामने,
कट के नेज़े पर भी बुलंद रहा सर मेरा
लेकिन,झुका नहीं झूठे खुदाओं के सामने.(नेज़ा-भाला)

1 comment:

Unknown said...

हम सब तो ये सोच भी नहीं सकते कि उन लोगो के मन में कैसी आग जल रही होगी, जो 25 साल से न्याय का इंतजार कर रहे है। ऐसे भी देरी का क्या मतलब, कि केस 25 साल तक चले और सजा सिर्फ 2 साल, सजा भी क्या वो तो जमानत पर बाहर भी हो गए। अगर न्यायपालिका का यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब लोग अपने तरीके से फैसला करेंगे।