विवेका बाबाजी ने खुदकुशी क्या कर ली, हंगामा मचा हुआ है। मारीशस से मुंबई आयी एक लड़की देखते-देखते सुपरमाडल बन गयी और कुछ ही वर्षों में अकूत पैसा जमा कर लिया। सारी सुख-सुविधाएं, ठाट-बाट, ऐश्वर्य भोग के बाद भी आखिर क्या करे पैसे का। सो बिजिनेस में लगा दिया। यह सब कुछ ध्यान से देखें तो एक लिजलिजी कहानी की ओर संकेत जाता है। ऐसी कहानियां जिस हाई-फाई अंदाज में शुरू होती हैं, उसी तरह खत्म हो जाती हैं। जहां जीवन का मतलब केवल पैसा कमाना हो, अनहद भोग करना हो, वहां लालची निगाहें पहुंच ही जाती हैं। और पैसे के लिए जिस तरह की छीना-झपटी, बेहयाई और अपराध हमारे समाज में चारों ओर दिखायी पड़ रहा है, उसके खतरे से कोई भी मुक्त नहीं है। लेकिन जिस तरह सरकार इस मामले को लेकर सक्रिय है, पुलिस मुस्तैद है और मीडिया रोज नयी-नयी सूचनाएं जुटाने में लगा हुआ है, क्या वह एक ऐसे देश में निरर्थक सी बात नहीं है, जहां हर साल सैकड़ों बच्चे मानसिक दबाव में खुदकुशी कर लेते हैं और हजारों किसान कर्ज में डूबकर अपनी जान दे देते हैं। दरअसल बाबाजी की खुदकुशी भी बिकाऊ माल बन गयी है। बच्चों और किसानों की खुदकुशी में वैसा गलैमर कहां? पूरा पढ़ें
29.6.10
हंगामा है क्यूँ बरपा
Labels: subhash rai
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2 comments:
सही लिख रहे हैं, हमने तो नाम ही अब सुना है। ऐय्याशी की दुनिया में डूबे लोगों का अन्त तो यही है, फिर इतना बवेला क्यों है? बस पैसे कमाने की मानसिकता और सनसनी फैलाना उद्देश्य।
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