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25.9.10

निशंक ताबूत में आंखरी कील ठोकेगा कौन ?

देहरादून 2 सितंबर। देवभूमि उत्तरा खंड को देश का भाल बनाकर यहां के पानी और जवानी दोनों को विकास के कमल के सहारे ऊंची उड़ान भरने का जो सपना प्रदेश के मुख्यमंत्राी ने जिस तरीके से बुना है, उस पर देशभर में उगलिया उठनी भी शुरू हो गई हैं। पावर प्रोजेक्ट के आवंटन में घोटाले की बात हो या पिफर ट्टशिकेष की सरकारी भूमि का लैंडयूज चेंज कर अरबों के घोटाले को लेकर सरकार की कोर्ट में जवाबदेही। सभी मामलों में सरकार पूरी तरह कटघरे में खड़ी नजर आ रही है। मुख्यमंत्राी का ताज पहनने के बाद से ही प्रदेश के मुख्यमंत्राी डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने राज्य के विकास को लेकर इसे देश का भाल बनाने की जो बातें जनता से कही थी उन पर खरा उतरना तो दूर पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच ही भाजपा विकास का संदेश दे पाने में पूरी तरह पिफसड्डी साबित हुई है। सत्ता में साड़े तीन साल के भीतर राज करने वाली भाजपा सरकार को मुख्यमंत्राी तक बदलने पड़े और अब पुनः नेतृत्व परिवर्तन की बातें उठनी शुरू हो गई हैं। मुख्यमंत्राी की कुर्सी पर बैठने के बाद से ही निशंक विरोध्ी ताकतें लगातार अपना तिकड़म भिड़ाती रही और प्रदेश के दो बड़े नेताओं भुवन चंद्र खंडूड़ी व भगत सिंह कोश्यारी के एक साथ हो जाने के चलते दोनों गुटों की ताकतें निशंक सरकार से कहीं अध्कि बड़ी हो गई। निशंक सरकार ने जहां अपने कार्यकाल के दौरान हरिद्वार के महाकुंभ को शांनि पूर्वक निपटाये जाने का श्रेय देशभर में लेने का प्रयास किया उसे उनके ही विरोध्ी लोगों ने कुंभ में घोटाला किए जाने की बातें कहकर शांत कर डाला। कुंभ को नोबल पुरस्कार दिए जाने की बातें भी प्रमुखता से उठाई जाने लगी लेकिन अंतिम शाही स्नान के दिन हुए भगदड़ के खूनी खेल ने कुंभ के सपफल आयोजन पर भी पूरी तरह प्रश्न चिन्ह लगा दिया। लेकिन कुंभ के सपफल आयोजन को भाजपा सरकार पूरे देशभर में प्रचारित करती हुई देखी गई। यहां तक की भाजपा के बड़े नेताओं तक ने कुंभ के सपफल आयोजन की तारीपफ करते हुए निशंक सरकार को अच्छे नंबर दे डाले। इतना ही नहीं सरकार के कामकाज से खुश होकर भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने भी सरकार की जमकर तारीपफ कर डाली। वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने प्रदेश के मुख्यमंत्राी डा. निशंक को सपफल मुख्यमंत्राी का ताज पहना डाला। जबकि एक पत्रिका द्वारा किए गए सर्वे में उत्तराखंड के सपफल मुख्यमंत्राी को टॉप-10 देना तो दूर कहीं भी ऐसा स्थान नहीं दिया गया जिससे उत्तराखंड के मुख्यमंत्राी डा. निशंक को सपफल मुख्यमंत्राी करार दिया जा सके। जबकि इसी संस्था द्वारा प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्राी भुवन चंद्र खंडूड़ी को देश के मुख्यमंत्राीयों की सूचि में चौथे स्थान पर दर्शाया गया था।खंडूड़ी के मुख्यमंत्राी कार्यकाल में भले ही जनता के बीच सरकार सही संदेश दे पाने में विपफल रही हो लेकिन खंडूड़ी सरकार के लिए गए पफैसले जनता के बीच सरकार के प्रति आक्रोश का स्वर कभी भी नहीं उठा सके। क्योंकि लोक सभा चुनाव की पांचों सीटें कांग्रेस की झोली में जिस तरह से डलवा दी गई वह भी खंडूड़ी के तख्ता- पलट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हुई दिखी। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर खंडूड़ी को बदले जाने का कई वरिष्ठ नेताओं ने विरोध् भी किया लेकिन खंडूड़ी कोश्यारी के बीच लड़ाई का पफायदा सन् 2000 से मुख्यमंत्राी का सपना सजो रहे डा. निशंक उठाने में कामयाब रहे। लेकिन सत्ता की कुर्सी पर बैठने के साथ से ही निशंक सरकार ने पावर प्रोजेक्ट के आवंटन से लेकर ट्टिशिकेष की सरकारी जमीन निजी कंपनी को लैंडयूज चेज कर कौड़ियों के भाव दे डाली तभी से सरकार की मुसीबतें उपफान पर आ बैठी। सड़क से लेकर सदन तक मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस व बसपा ने सरकार के इस निर्णय का खुलकर विरोध् करते हुए अपना बिगुल बजा डाला। इसके बाद सरकार की मुश्किलें कम होती न देख सरकार ने जलविद्युत परियोजनाओं के आवंटन को निरस्त करते हुए आवंटन में खामियां होने की बातें सामने रख डाली। घोटाले में 140 करोड़ रुपये से अध्कि लेन-देन के आरोप सरकार पर लगने शुरू हुए और इसके तुरंत बाद उत्तराखंड के सबसे बड़े घोटाले का खुलासा हो गया। इस खुलासे के बाद प्रदेश की भाजपा सरकार पूरे देश भर में जो साख बनाने का दावा कर रही थी वह पूरी तरह खुलकर सामने आ गई। उत्तराखंड में कायदे कानूनों को ताक पर रखकर जिस तरह से बिना अनुमति के हरे पेड़ों को काट डाला गया उसने उत्तराखंड के सबसे बड़े घोटाले को उजागर करते हुए देश के भाल कहे जाने वाले मुख्यमंत्राी की बोलती को भी बंद कर डाला। सरकार कई बार इस घोटाले के ना हाने की बातें मीडिया के सामने करती नजर आयी वहीं निशंक नौ रत्नों से लेकर उनके करीबी लोग घोटाला ना होने की बातें करते नजर आए। यहां तक की कांग्रेस की इस मामले में सीबीआई जांच तक की मांग को मुख्यमंत्राी द्वारा ठुकरा दिया गया। इस घोटाले में भाजपा के सह प्रभारी डा. अनिल जैन, प्रभातम कंपनी के साथ-साथ आरएसएस से जुड़े कुछ नेताओं के नाम भी खंुलकर उजागर हुए। घोटालों की गूंज इस तरह उठी कि उसका ध्ुआं देशभर की जनता ने टीवी चैनलों की सुर्खियों के रूप में देखा। यहां तक की सरकार के घोटालों की गूंज से दिल्ली में बैठे भाजपा के दिग्गज भी सन्न रह गए और घोटालों के पीछे सरकार की छवि देशभर में खराब होने को लेकर भी मंथन शुरू हो गया। घोटालों के बाद से ही लगातार भाजप के दो बड़ दिग्गज आपस में हाथ मिलाकर निशंक के तख्ता-पलट की तैयारी में आंखरी कील ठोकने में जुट गए हैं। यहां तक की दोनों दिग्गज पार्टी हाई कमान के सामने 2012 के होने वाले विधनसभा चुनाव को लेकर अपना रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत कर चुके हैं वहीं निशंक सरकार के रिपोर्ट कार्ड पर लाल झंडी दिखाने के लिए हाईकमान से गुजारिश कर रहे हैं। इतना ही नहीं विकास के नाम पर 2012 की तैयारियों में जुटने का दम भरने वाली भाजपा सरकार को कार्यकर्ताओं का भी आक्रोश झेलना पड़ रहा है और निशंक सरकार के विधयक निध् िसे होने वाले कार्यों को लेकर भी विधयकों के खिलापफ निर्णय दिए जाने से सरकार कटघरे में आ गई है। जबकि इससे पूर्व विधयक निध् िसे हाने वाले कार्यों का कोई टैंडर नहीं कराया जाता था लेकिन निशंक सरकार ने एक लाख से ऊपर के होने वाले कार्यों पर टैंडर के माध्यम से काम कराए जाने का शासनादेश जारीकर दिए जाने से भी विधयकों में रोष देखा जा रहा है। घोटालों की परत जिस तरह से उत्तराखंड में खुलती हुए देखी जा रही है उसे देखते हुए जल्द ही हरिद्वार में हुए महाकुंभ में किया गया करोड़ों का खर्च भी सामने उजागर हो सकता है। कुलमिलाकर स्टर्डिया डैवलेपर्स के निर्माण कार्यों पर रोक लगाकर सरकार ने घोटाले को स्वीकार तो कर लिया है लेकिन जमीन का लीज रद्द ना किए जाने के पीछे घोटाले की मंशा अभी भी बरकरार हैं।इस मामले को लेकर हाई कोर्ट में दाखिल उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा के सचिव स्वाती दर्शन भारती ने जनहित याचिका दायर कर कंपनी को बिना विधनसभा में बिल पारित किए करोड़ों की भूमि दिए जाने की शिकायत की गई थी। याचिका कर्ता द्वारा जमीन के सौदों को रद्द करने के साथ-साथ सारे प्रकरण की सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग की गई हैं। इस प्रकरण में उत्तराखंड के मुख्य न्यायाध्ीश न्यायमुर्ति बारेन घोष व न्यायमुर्ती वी. के बिष्ट की संयुक्त खंडपीठ ने प्रदेश सरकार व संबंध्ति कंपनी को चार हफ्रते का समय देते हुए जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं। यह मामला कोर्ट में चले जाने बाद सरकार की मुश्किलें कम होती नहीं देखी जा रही वहीं घोटालों के साथ-साथ चरित्रा हनन की राजनीति भी शुरू हो गई है। कुलमिलाकर 2012 में पुनः सत्ता में वापसी का सपना सजोने वाली भाजपा एक और नए मुख्यमंत्राी की ताजपोशी करने में जुटी हुई हैं। इसका कितना पफायदा उत्तराखंड को मिलेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन संगठन स्तर पर मुख्यमंत्राी बदले जाने को लेकर प्रदेश के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं से भी पफीड बैक लिया जाना शुरू हो गया है। खुद भाजपा के वरिष्ठ नेता सौदान सिंह व सुध्ीर कुलकर्णी का दून दौरा कुछ इस तरह के ही संदेश दे रहा है। हांलाकि प्रदेश का भाजपा संगठन उनके दौरों को लेकर किसी भी प्रकार की टिप्पणी से बचता नजर आ रहा है।वहीं निशंक सरकार में बेकाबू नौकरशाही में भी सूबे को बेहाल कर डाला है। निशंक सरकार के खिलापफ घोटालों, वरिष्ठ नौकरशाहों को नजरअंदाज, जनता से किए गए वादों को पूरा ना किए जाने के आरोपों के साथ-साथ चरित्रा हनन तक के आरोप लगे हुए हैं। अब देखना यह होगा कि राजनीति के अर्जुन इन सब आरोपों से निकल पाते हैं या पिफर अभिमन्यु की तरह घेरे में कैद हो जाते हैं। क्योंकि आंकड़ों के आधर पर बाजीगरी दिखाने का खेल निशंक उत्तर प्रदेश के समय से बखुूबी जानते हैं। 09837261570

10 comments:

jagmohan said...

मोहदय,लगता है आप भी उन पत्रकारों की श्रेणी में शामिल है...जिन्हें पिछले दिनों उत्तराखंड के कुछ विपक्षी पाट्री के चेहरों ने,निशंक को बदनाम करने के लिए लाखों रूपये देने की घोषणा की है....सभल कर राजनिति बहुत गंदा खेल है...भाई...खुद को बचाएं...ऐसी धारणाओं से

Unknown said...

कितना इनाम मिला नारायण जी... वेब पेज काला करने का... खैर...'पेड न्यूज़' की बिरादरी में शामिल होने पर आपका हार्दिक बधाई है... खूब लिखो.... क्योंकि यही तो वक़्त है कलम की कीमत वसूल करने का...


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पूजा शर्मा
छात्रा
(शुक्र है मैं पत्रकार नहीं)

Unknown said...

इस लेख को पढ़कर ऐसा लगता है की पत्रकार महोदय ने इसे आँखें मूँद कर लिखा है. यकीन नहीं आता की सुनी सुनाई बातों के आधार पर पत्रकार महोदय ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की सत्ता पर आखिरी कील ठोकने की बात कैसे कह डाली. वो इसलिए क्योंकि जितनी भी बातें इस लेख में उठाई गयी हैं, उनसे ऐसा आभास होता है की यह कोई लेख नहीं बल्कि उत्तराखंड की विधान सभा में विपक्ष द्वारा उठाये गया आधारहीन मुद्दों का सारांश हो.
पत्रकार महोदय का नाम ज्यादा सुना सुना सा नहीं लगता. लेकिन उनकी भटकती कलम ने एक झटके में अपने आका का परिचय करवा दिया है. मैं यहाँ लेख से ज्यादा पत्रकार महोदय का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि तथ्यविहीन, आधारहीन और पूरी तरह से दिग्भ्रमित करने वाले इस लेख
में चर्चा करने लायक कुछ है नहीं. लेख में दिया गया हर कथित तथ्य या तो अफवाहें हैं और या तो सोची समझी दुष्प्रचार नीति. ऐसे में इस तरह का लेख लिखने वाले व्यक्ति पर चर्चा करना खासा रोचक है.

बहरहाल मैं इस लेख में दिए गए आकड़ो की सच्चाई भी संक्षिप में बताना चाहूँगा, क्योंकि इस लेख को पढने वाले अन्य बंधुजन अंधी पत्रकारिता को ही सच न समझ बैठे...

--पत्रकार बंधू, आपको शायद मालूम होगा कि इस वक़्त प्रदेश के युवाओं की सबसे बड़ी ज़रूरत रोज़गार है. लेकिन शायद आप ये भूल गए अथवा आपको भुला दिया गया कि निशंक सरकार ने राज्य के इतिहास में पहली बार बेरोजगारों के लिए नौकरियों का खजाना खोल दिया है. राज्य में पहली बार सरकारी नौकरी में उम्र सीमा ३५ से बढाकर ४० साल कर दी गयी है.
--सरकारी नौकरी के लिए होने वाली परीक्षा में उत्तराखंड से सम्बंधित प्रश्न पूछे जायेंगे.
--१२ हज़ार नौकरिया खोली जा रही हैं.
-- आपने १ मासिक पत्रिका में सफल मुख्यमंत्रियों के लिए कराये गए सर्वे में डॉ निशंक को कोई स्थान न दिए जाने कि बात कही है... बंधू क्या आप ये भूल गए हैं कि देश के वित्त मंत्रालय ने विकासशील राज्यों में उत्तराखंड सरकार को देश में तीसरे स्थान पर रखा है?


क्रमश------

Unknown said...

इस लेख को पढ़कर ऐसा लगता है की पत्रकार महोदय ने इसे आँखें मूँद कर लिखा है. यकीन नहीं आता की सुनी सुनाई बातों के आधार पर पत्रकार महोदय ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की सत्ता पर आखिरी कील ठोकने की बात कैसे कह डाली. वो इसलिए क्योंकि जितनी भी बातें इस लेख में उठाई गयी हैं, उनसे ऐसा आभास होता है की यह कोई लेख नहीं बल्कि उत्तराखंड की विधान सभा में विपक्ष द्वारा उठाये गया आधारहीन मुद्दों का सारांश हो.
पत्रकार महोदय का नाम ज्यादा सुना सुना सा नहीं लगता. लेकिन उनकी भटकती कलम ने एक झटके में अपने आका का परिचय करवा दिया है. मैं यहाँ लेख से ज्यादा पत्रकार महोदय का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि तथ्यविहीन, आधारहीन और पूरी तरह से दिग्भ्रमित करने वाले इस लेख
में चर्चा करने लायक कुछ है नहीं. लेख में दिया गया हर कथित तथ्य या तो अफवाहें हैं और या तो सोची समझी दुष्प्रचार नीति. ऐसे में इस तरह का लेख लिखने वाले व्यक्ति पर चर्चा करना खासा रोचक है.

बहरहाल मैं इस लेख में दिए गए आकड़ो की सच्चाई भी संक्षिप में बताना चाहूँगा, क्योंकि इस लेख को पढने वाले अन्य बंधुजन अंधी पत्रकारिता को ही सच न समझ बैठे...

--पत्रकार बंधू, आपको शायद मालूम होगा कि इस वक़्त प्रदेश के युवाओं की सबसे बड़ी ज़रूरत रोज़गार है. लेकिन शायद आप ये भूल गए अथवा आपको भुला दिया गया कि निशंक सरकार ने राज्य के इतिहास में पहली बार बेरोजगारों के लिए नौकरियों का खजाना खोल दिया है. राज्य में पहली बार सरकारी नौकरी में उम्र सीमा ३५ से बढाकर ४० साल कर दी गयी है.
--सरकारी नौकरी के लिए होने वाली परीक्षा में उत्तराखंड से सम्बंधित प्रश्न पूछे जायेंगे.
--१२ हज़ार नौकरिया खोली जा रही हैं.
-- आपने १ मासिक पत्रिका में सफल मुख्यमंत्रियों के लिए कराये गए सर्वे में डॉ निशंक को कोई स्थान न दिए जाने कि बात कही है... बंधू क्या आप ये भूल गए हैं कि देश के वित्त मंत्रालय ने विकासशील राज्यों में उत्तराखंड सरकार को देश में तीसरे स्थान पर रखा है?


क्रमश------

Unknown said...

इस लेख को पढ़कर ऐसा लगता है की पत्रकार महोदय ने इसे आँखें मूँद कर लिखा है. यकीन नहीं आता की सुनी सुनाई बातों के आधार पर पत्रकार महोदय ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की सत्ता पर आखिरी कील ठोकने की बात कैसे कह डाली. वो इसलिए क्योंकि जितनी भी बातें इस लेख में उठाई गयी हैं, उनसे ऐसा आभास होता है की यह कोई लेख नहीं बल्कि उत्तराखंड की विधान सभा में विपक्ष द्वारा उठाये गया आधारहीन मुद्दों का सारांश हो.
पत्रकार महोदय का नाम ज्यादा सुना सुना सा नहीं लगता. लेकिन उनकी भटकती कलम ने एक झटके में अपने आका का परिचय करवा दिया है. मैं यहाँ लेख से ज्यादा पत्रकार महोदय का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि तथ्यविहीन, आधारहीन और पूरी तरह से दिग्भ्रमित करने वाले इस लेख
में चर्चा करने लायक कुछ है नहीं. लेख में दिया गया हर कथित तथ्य या तो अफवाहें हैं और या तो सोची समझी दुष्प्रचार नीति. ऐसे में इस तरह का लेख लिखने वाले व्यक्ति पर चर्चा करना खासा रोचक है.

बहरहाल मैं इस लेख में दिए गए आकड़ो की सच्चाई भी संक्षिप में बताना चाहूँगा, क्योंकि इस लेख को पढने वाले अन्य बंधुजन अंधी पत्रकारिता को ही सच न समझ बैठे...

--पत्रकार बंधू, आपको शायद मालूम होगा कि इस वक़्त प्रदेश के युवाओं की सबसे बड़ी ज़रूरत रोज़गार है. लेकिन शायद आप ये भूल गए अथवा आपको भुला दिया गया कि निशंक सरकार ने राज्य के इतिहास में पहली बार बेरोजगारों के लिए नौकरियों का खजाना खोल दिया है. राज्य में पहली बार सरकारी नौकरी में उम्र सीमा ३५ से बढाकर ४० साल कर दी गयी है.
--सरकारी नौकरी के लिए होने वाली परीक्षा में उत्तराखंड से सम्बंधित प्रश्न पूछे जायेंगे.
--१२ हज़ार नौकरिया खोली जा रही हैं.
-- आपने १ मासिक पत्रिका में सफल मुख्यमंत्रियों के लिए कराये गए सर्वे में डॉ निशंक को कोई स्थान न दिए जाने कि बात कही है... बंधू क्या आप ये भूल गए हैं कि देश के वित्त मंत्रालय ने विकासशील राज्यों में उत्तराखंड सरकार को देश में तीसरे स्थान पर रखा है?


क्रमश------

Unknown said...

इस लेख को पढ़कर ऐसा लगता है की पत्रकार महोदय ने इसे आँखें मूँद कर लिखा है. यकीन नहीं आता की सुनी सुनाई बातों के आधार पर पत्रकार महोदय ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की सत्ता पर आखिरी कील ठोकने की बात कैसे कह डाली. वो इसलिए क्योंकि जितनी भी बातें इस लेख में उठाई गयी हैं, उनसे ऐसा आभास होता है की यह कोई लेख नहीं बल्कि उत्तराखंड की विधान सभा में विपक्ष द्वारा उठाये गया आधारहीन मुद्दों का सारांश हो.
पत्रकार महोदय का नाम ज्यादा सुना सुना सा नहीं लगता. लेकिन उनकी भटकती कलम ने एक झटके में अपने आका का परिचय करवा दिया है. मैं यहाँ लेख से ज्यादा पत्रकार महोदय का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि तथ्यविहीन, आधारहीन और पूरी तरह से दिग्भ्रमित करने वाले इस लेख
में चर्चा करने लायक कुछ है नहीं. लेख में दिया गया हर कथित तथ्य या तो अफवाहें हैं और या तो सोची समझी दुष्प्रचार नीति. ऐसे में इस तरह का लेख लिखने वाले व्यक्ति पर चर्चा करना खासा रोचक है.

बहरहाल मैं इस लेख में दिए गए आकड़ो की सच्चाई भी संक्षिप में बताना चाहूँगा, क्योंकि इस लेख को पढने वाले अन्य बंधुजन अंधी पत्रकारिता को ही सच न समझ बैठे...

--पत्रकार बंधू, आपको शायद मालूम होगा कि इस वक़्त प्रदेश के युवाओं की सबसे बड़ी ज़रूरत रोज़गार है. लेकिन शायद आप ये भूल गए अथवा आपको भुला दिया गया कि निशंक सरकार ने राज्य के इतिहास में पहली बार बेरोजगारों के लिए नौकरियों का खजाना खोल दिया है. राज्य में पहली बार सरकारी नौकरी में उम्र सीमा ३५ से बढाकर ४० साल कर दी गयी है.
--सरकारी नौकरी के लिए होने वाली परीक्षा में उत्तराखंड से सम्बंधित प्रश्न पूछे जायेंगे.
--१२ हज़ार नौकरिया खोली जा रही हैं.
-- आपने १ मासिक पत्रिका में सफल मुख्यमंत्रियों के लिए कराये गए सर्वे में डॉ निशंक को कोई स्थान न दिए जाने कि बात कही है... बंधू क्या आप ये भूल गए हैं कि देश के वित्त मंत्रालय ने विकासशील राज्यों में उत्तराखंड सरकार को देश में तीसरे स्थान पर रखा है?

to be continue...

Unknown said...

इस लेख को पढ़कर ऐसा लगता है की पत्रकार महोदय ने इसे आँखें मूँद कर लिखा है. यकीन नहीं आता की सुनी सुनाई बातों के आधार पर पत्रकार महोदय ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की सत्ता पर आखिरी कील ठोकने की बात कैसे कह डाली. वो इसलिए क्योंकि जितनी भी बातें इस लेख में उठाई गयी हैं, उनसे ऐसा आभास होता है की यह कोई लेख नहीं बल्कि उत्तराखंड की विधान सभा में विपक्ष द्वारा उठाये गया आधारहीन मुद्दों का सारांश हो.
पत्रकार महोदय का नाम ज्यादा सुना सुना सा नहीं लगता. लेकिन उनकी भटकती कलम ने एक झटके में अपने आका का परिचय करवा दिया है. मैं यहाँ लेख से ज्यादा पत्रकार महोदय का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि तथ्यविहीन, आधारहीन और पूरी तरह से दिग्भ्रमित करने वाले इस लेख
में चर्चा करने लायक कुछ है नहीं. लेख में दिया गया हर कथित तथ्य या तो अफवाहें हैं और या तो सोची समझी दुष्प्रचार नीति. ऐसे में इस तरह का लेख लिखने वाले व्यक्ति पर चर्चा करना खासा रोचक है.
बहरहाल मैं इस लेख में दिए गए आकड़ो की सच्चाई भी संक्षिप में बताना चाहूँगा, क्योंकि इस लेख को पढने वाले अन्य बंधुजन अंधी पत्रकारिता को ही सच न समझ बैठे...
--पत्रकार बंधू, आपको शायद मालूम होगा कि इस वक़्त प्रदेश के युवाओं की सबसे बड़ी ज़रूरत रोज़गार है. लेकिन शायद आप ये भूल गए अथवा आपको भुला दिया गया कि निशंक सरकार ने राज्य के इतिहास में पहली बार बेरोजगारों के लिए नौकरियों का खजाना खोल दिया है. राज्य में पहली बार सरकारी नौकरी में उम्र सीमा ३५ से बढाकर ४० साल कर दी गयी है.
--सरकारी नौकरी के लिए होने वाली परीक्षा में उत्तराखंड से सम्बंधित प्रश्न पूछे जायेंगे.
--१२ हज़ार नौकरिया खोली जा रही हैं.

क्रमश------

Unknown said...

-- आपने १ मासिक पत्रिका में सफल मुख्यमंत्रियों के लिए कराये गए सर्वे में डॉ निशंक को कोई स्थान न दिए जाने कि बात कही है... बंधू क्या आप ये भूल गए हैं कि देश के वित्त मंत्रालय ने विकासशील राज्यों में उत्तराखंड सरकार को देश में तीसरे स्थान पर रखा है?
--जिन पवार प्रोजेक्ट कि बात आप कर रहे हो वो रद्द हो चुके हैं... कृपया अपडेट रहा करें.
-- निशंक ही पहले ऐसे मुख्यमंत्री है जिन्होंने राज्य हित में उत्तर प्रदेश के सात परिसम्पतियों का बंटवारा करने कि और पहल कि और मायावती जी से मुलाकात कि. नतीजा ये है कि इस मुद्दे पर सार्थक बात चल रही है.
-- विकास कि सोच को लेकर जिस राजनेता का लोहा विपक्षी भी मानते हैं, आप उनको किस अधर पर झुठलाना चाहते हैं?
-- वो मुख्यमंत्री निशंक ही थे जिन्होंने अपनी कुशल वित्तीय प्रबंधन के बल पर २५०० करोड रुपये के वित्तीय भार के बावजूद भी वर्ष २०१०-२०११ में करमुक्त बज़ात दिया, साथ ही दैनिक वस्तुओं से वित हटाया.
-- डॉ निशंक की योग्यता को देखते हुए केंद्रीय योजना आयोग ने जिस तरह १००० करोड़ के अतिरिक्त आर्थिक सहायता और फिर ६८०० करोड रूपए की वार्षिक योजना मंजूर की..... क्या इसे आप झुटला पाएंगे?
-- आप पहले पत्रकार होंगे जिन्होंने महाकुम्भ के आयोजन को असफल करार दे डाला... जिस आयोजन को दुनिया भर की मीडिया ने हैरत भरी नज़रों से देखा... ६ करोड़ से ज्यादा लोग जिसके साक्षी हैं... और जिसे केंद्र की कांग्रेस सरकार ने तक सराहा.... उसे आप कैसे झुटला सकते हैं?

क्रमश------

Unknown said...

-- शायद आपको दिल्ली में चल रहे कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन सफल नज़र आ रहा होगा... क्योंकि आपके देखने का नजरिया दुनिया से जुदा है...
-- आपके लेख को पढ़कर कई बार अहसास होता है की आप मीडिया के पहरुए बनकर नहीं बल्कि किसी राजनीतिक दल में शामिल होने से पहले यह लेख लिख रहे हैं.
-- आपको महाकुम्भ पर आपति है, आपको विकास के तरीके पर आपत्ति है, योजना आयोग पर आपत्ति है, पार्टियों के फैसले पर आपत्ति है, किसीको सम्मान मिलने पर आपत्ति है...आपको सच्चाई लिखने पर आपत्ति है......... आखिर कोई चीज़ है जिस पर आपको आपत्ति नहीं..?
-- आपने अपने आखिरी पंक्ति में लिखा है की... "आंकड़ों के आधार पर बाजीगरी दिखाने का खेल निशंक, उत्तर प्रदेश के समय से बखुूबी जानते हैं।"... लेकिन पत्रकार महोदय शायद आप ये भूल गए हैं कि १ कुशल पत्रकार भी जब कोई लेख लिखता है तो उसे भी आकड़ो का ख्याल रखना चाहिए. क्योंकि सच्चाई, आकड़ो में ही कही जाती है .... अफवाहों पर विश्वाश करके नहीं....
-- आप जैसे पत्रकार ही, निजी स्वार्थों और मिलीभगत करके विकास के रस्ते पर आगे बढ़ते राज्य को ताबूत में तब्दील करना चाहते हैं... अरे नारायण जी अगर पत्रकारिता में रहते हुए आपकी ऐसी ही सोच है तो मीडिया छोड़ कर राजनीति में क्यों नहीं आ जाते..... राजनीति में आप जैसे लोग खूब चलेंगे.

क्रमश------

Unknown said...

अंत में मैं bhada4media ब्लॉग से भी गुज़ारिश करनी है कि कृपया किसी को बदनाम करने वाले ऐसे एकतरफा लेख न छापें... क्यूंकि ऐसे लेखों से आप चंद लोगों कि प्रशंशा तो पा सकते हैं... लेकिन सच्चे और इमानदार लोगों का अप पर से भरोसा उठ जायेगा... क्योंकि दोनों पक्षों को देखकर संतुलित लेखन ही पत्रकारिता है......
मुझे नहीं जानता कि आप मेरी इस प्रतिक्रिया को ब्लॉग पर स्थान देंगे या नहीं.... लेकिन १ बार विनती जरूर करूँगा.... बाकी आपकी इच्छा... आखिर आप लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ जो ठहरे... आप जो करेंगे अच्छा ही करेंगे.....
मैं कोई पत्रकार नहीं.... और न ही समाज के तथाकथित विद्वान वर्ग से हूँ... मैं तो सिर्फ देवभूमि का आम आदमी हूँ ... हो सके तो मेरी इस प्रतिक्रिया को अपने ब्लॉग में स्थान दें.... मजबूरीवश नहीं भी दे पाइयेगा तो कोई बात नहीं.... वैसे भी आम आदमी कि सुनता कौन है.... ?
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रोहन पाण्डेय
हृषिकेश
उत्तराखंड
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