लोकतान्त्रिक ब्यवस्था होने की वजह से देश के अन्दर हमेशा जनता को अपने अधिकारों का प्रयोग करने का स्वर्णिम अवसर समय समय पर मिलता ही रहता है अब इसमें जनता कभी केंद्र के लिए तो कभी अपने प्रदेश के लिए अपने मत का प्रयोग करती है,जनता का चुनाव करने काम यहीं तक ख़तम नहीं हो जाता छेत्रिय और फिर ग्राम पंचायत(प्रधानी)टाईप के बहुत से चुनाव को पूर्ण करके जनता के द्वारा अपने एक मात्र वोट डालने जैसे प्रावधान को पूरा किया जाता है! दरअसल ये(जनता के द्वारा जनता के लिए जनता का शाशन) ब्यवस्था तो किसी भी देश को सुचारू और निस्पछ तथा जनता के पसंद का शासन के लिहाज से बेहद सुन्दर दिखता है, ये ब्यवस्था शायद सिर्फ इसी लिए है की जनता अपने अनुसार कौन सही और कौन गलत का निर्णय कर एक उपयोगी ब्यक्तित्व को चुने जो वाक्य्यी देश या अपने छेत्र के विकाश के लिए कुछ कर गुजरने की हिम्मत रखता हो और जो वाक्य्यी अपनी छेत्र व देश की जनता के समस्यायों से परचित हो और हकीकत में उससे लड़ने में सछम या फिर लड़ता हो!
पर हकीकत तो ये है की जनता को अपने मत का सम्पूर्ण अधिकार तो है लेकिन बावजूद इसके देश की मासूम जनता को चुनाव के अंतिम समय तक उसे कन्फ्यूज/गुमराह करने का काम जारी रखा जाता है चुनाव प्रचार तो ठीक है लेकिन चुनाव के प्रचार में सिर्फ अपनी बड़ाई और बाकि सबकी बुराई ये कहाँ तक एक देश व छेत्र के विकास के लिए उचित है,एक ब्यक्तित्व जो शायद हकीकत में नेता की उपाधि दिए जाने के योग्य है और जिसको खुद जनता चिल्ला चिल्ला कर कह रही हो की यही नेता है और जिसने भले ही पांच साल तक ईमानदारी से अपने शाशन को चलाया हो और अपने कार्यकाल का पूरा समय सिर्फ जनता की छोटी बड़ी समस्यायों के निवारण में ही बिताया हो,अपने छेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्यों को किया हो शायद जिसे अपने लिए चुनाव प्रचार भी करने की जरुरत न हो और सिर्फ अपने कार्यकाल में किये गए कार्य के बल पर ही चुनाव जितने की अपेछा रखता हो,जिसे शायद उसके किसी से कहने की बजाय उस छेत्र की जनता के साथ साथ पुरे देश की जनता उसके कार्यकाल के शासन के बारे में खुद ही बोल या मह्सुश कर रही हो,अब ऐसे में चुनाव के येन मौके पर उसके विरोध में विपछि पार्टियों द्वारा चुनाव के अंतिम दौर तक उसके खिलाफ जबरदस्ती शब्द ढूंढ़ ढूंढ़ कर बोलना कहाँ तक देश के हित में है! चुकी देश में लोकतान्त्रिक शाशन की ब्यवस्था है और यहाँ सभी इन्शान को अपनी मर्जी से बोलने की स्वतंत्रता व अपने विचार को रखने अधिकार प्राप्त है! आज हर एक नेता अपने आप को देश का सच्चा सेवक ही कहता है लेकिन चुनाव प्रचारों में शायद किसी एक विकाश करने वाले ब्यक्तित्व के विरोध में जबरदस्ती कुछ भी इधर उधर बोलना तो कुछ लोग अपनी शान ही समझते है ये कहाँ तक उचित है,किसी योग्य पुरुष को सत्ता में न आने देने के लिए मुहीम चलाना कहाँ की देश सेवा है! शायद जनता को इसी चीज से बचाने के लिए कुछ वर्ष पहले से चुनाव आयोग ने चुनाव के कुछ घंटे पहले प्रचार को बंद कर देने का प्रावधान बना दिया ताकि जनता को कुछ घंटे तो शांस मिल सके अपने सच्चे नेता का चुनाव करने के लिए जो हकीकत में विकाश करने के गुण रखता हो,ऐसे में शायद आज कोई इस प्रकार का प्रावधान होना बेहद जरुरी आवश्यक जान पड़ता है की किसी भी चुनाव के दौरान हर एक नेता को किसी भी चुनावी रैली में सिर्फ अपने बारे में या अपने पार्टी के बारे में ही कहने भर की ही छुट हो अब इसमें चाहे वो अपने या अपने पार्टी के बारे में बड़ाई करे या बुराई ये उसके ऊपर निर्भर करता है,लेकिन किसी दुसरे नेता या पार्टी के बारे में बोलने का अधिकार बिलकुल जायज नहीं लगता क्योंकि अगर एक पहलु (जिसमे किसी शाशन के गलत सही कारनामे को जनता के बीच रखने) के दृष्टी से ये सही है तो दुसरे पहलु में ये बिलकुल ही बेकार नजर आता है क्योंकि आजकल ये आसानी देखा जा सकता है की अगर एक ब्यक्तित्व कितना भी इमानदार व विकास करने वाला या उसने कार्यकाल में जबरदस्त विकास कार्य क्यों न हुआ हो लेकिन विपछि पार्टी का नेता हमेशा उसकी बुराई करने में ही लगा रहता है यानि विपछि पार्टियों द्वारा उस ब्यक्तित्व के सही कारनामो को कोसो दूर रख कर चुनाव प्रचार किया जाता है,शायद ऐसा करने से जनता गुमराह भी हो सकती है जबकि ऐसा करने से किसी एक विशेष वर्ग पर इसका प्रभाव निश्चित ही पड़ता है! अब हकीकत में यहाँ ऐसे तो सारे ब्यक्तित्व या नेता है नहीं जो किसी नेता के बारे में बोलते समय पार्टी या पछ/विपछ को ध्यान में रख कर न बोलते हों अगर किसी के बारे में निस्पछ तरीके से सिर्फ उसके ब्यक्तित्व को ध्यान में रख कर बोला जाय तो शायद इससे बेहद देश की और जनता की सेवा और कुछ नहीं हो सकती लेकिन ऐसा कहीं कहीं शायद ही देखने को मिल जाय,सो इस लिए हर एक नेता को सिर्फ उसे अपने या अपने पार्टी तक के ही बारे में ही बोलने का अधिकार शायद बेहद आवश्यक सा लगता है! हर एक नेता व पार्टी को दुसरे और अपने बीच आंकलन करने वाला काम सीधे जनता के ही ऊपर छोड़ देना चाहिए क्योंकि शायद जनता बेहद उचित आंकलन कर सकती है और आज की जनता उसके छेत्र के लिए बेहतर कौन का चुनाव करने में सझम है!
2 comments:
देश की जनता को अशिक्षित रखने का षड़यन्त्र रचा ही इसीलिये गया था कि उसे आसानी से गुमराह किया जा सके.
dhermesh ji,jahan taq aapka kahna ye hai ki netaon ko kevel apne karya v karyapranali ke bare me bolne ka adhikar mile sahi hai kintu ye aap galat kah rahe hain ki janta bholi hai aur vah netaon dwara gumrah ki jati hai galat hai,kyonki aaj ki janta bahut jagrook hai aur kuchh had taq yadi kaha jaye bhrasht hai to galat nahi hoga kyonki kisi bhi swachh chhavi wale vyakti ka chunav jeetna isi liye mushkil hai kyonki janta vyaktigat swarthon me ulajh kar desh hit ko nakar deti hai.abhi hal me hue panchayat chunavon me ye bat aam taur par sunai de rahi hai ki janta ne pratyashiyon se lekar sharab ke bhandar bhar liye hain.fir paise dekar apna kam janta karati hai.aur aage kya kahoon jab apna sikka hi khota ho....
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