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7.10.10

अकेलापन

पलकें झुका कर अपनी मैं
आपकी दुआ करती थी,
मेरी हर इबादत आपके ही
नाम हुआ करती थी.

आस रहती थी कि हो आपके
मुस्कराहट का दीदार,
आप समझ नहीं पाए कितना
गहरा था मेरा प्यार.

आँखों बोल रही थीं
लफ़्ज़ों से क्या करती बयाँ,
आपकी अहमियत कैसे बताती
दूरी जो थी इतनी अपने दरमियाँ.

मासूम दिल को डर यही था
शीशे सा नाज़ुक रिश्ता ना टूटे,
थी हलकी सी बंधी आपसे जो
दिल की मेरी वो डोर ना छूटे.

पर इंतज़ार की मुझे अब
आदत सी हो गयी है,
बेचैन दिल को ख़ामोशी से
चाहत सी हो गयी है,
उनके  ना आने की अब 
शिकायत भी नहीं रही,
क्यूंकि अकेलेपन से अब
मोहब्बत सी हो गयी है.

       ---अनु कमलाकर

2 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

is akelepn ki is adaa ke to bs hm fen ho gye bhaayi bhut khub nye andaaz men nye alfaazon men akelepn kaa izhaar kiya he mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पर इंतज़ार की मुझे अब
आदत सी हो गयी है,
बेचैन दिल को ख़ामोशी से
चाहत सी हो गयी है,
उनके ना आने की अब
शिकायत भी नहीं रही,
क्यूंकि अकेलेपन से अब
मोहब्बत सी हो गयी है.

बहुत खूबसूरती से लिखे हैं एहसास