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मैं गत २० दिनों से ब्लॉग्गिंग की दुनिया से नदारद था। कारण था - मेरे अनुज की अकाल मृत्यु। मेरा अनुज "दीपक" मेरी मझली बुआ जी का ज्येष्ठ पुत्र था तथा मुझसे ३ वर्ष छोटा था। उसकी मृत्यु ने मुझे कुछ बिन्दुओं पर सोचने पर मजबूर कर दिया। जो मैं आप के साथ बाँटना चाहता हूँ।
१* सूनी देहरी: - बताता चलूँ मेरी बुआ जी का देहावसान छ: वर्ष पूर्व हुआ था उस समय दीपक मात्र सोलह वर्ष का किशोर था। बुआ जी के दो पुत्र और तीन पुत्रियाँ है। सबसे नन्ही बेटी मात्र एक वर्ष की थी।
अब सामने दो समस्याएं थी -
एक बच्ची का ख्याल कौन रख्खेगा? और दूसरी घर कौन संभालेगा?
नतीजा किशोर दीपक का विवाह करवा दिया गया।
२* दीपक का विवाह: - जिन परिस्थितयों में हुआ शायद कारण उचित हो। पर दीपक उस समय नाबालिग था, वह शारीरिक तथा मानसिक रूप से परिपक्व नहीं था। उस समय वह १२वी का छात्र था। विवाह होने से ना केवल उसके भविष्य की गति पर विराम लग गया बल्कि उसकी नयी नवेली मात्र १५ वर्षीय पत्नी की जिम्मेदारी का अतिरिक्त बोझ भी पड गया। उसे अपने "भविष्य को ताक पर रखकर" कमाने के लिए "दिल्ली" जाना पड़ा। क्या यह उचित था? क्या दीपक से साथ इंसाफ किया गया? मैंने उस समय भी बहुत कोशिश की थी पर बड़ों के विचारों के आगे मेरी आवाज को दबा दिया गया था। बेचारा दीपक, भविष्य के लिए उसने क्या क्या सपने देखे होंगे उसे सब-कुछ कुर्बान करना पड़ा।
मैं आप से पूछता हूँ - क्या बच्ची तथा घर की जिम्मेदारी मिल कर नहीं उठाई जा सकती थी?
पर ऐसा नहीं हुआ।
३* १८ वर्षीय विधवा: - दीपक की अकाल मृत्यु ने उसकी पत्नी को बदहवास सा बना दिया है। उसकी हालत क्या होगी आप स्वयं अंदाजा लगा सकते है। मैं सिर्फ इतना कहूँगा की मैं उसकी हालत को उल्लेखित नहीं कर पाउँगा। पागलों जैसा ब्यवहार है उसका, हर आहट पर चौक जाना, शायद उसे अभी भी लगता है की दीपक वापस ज़रूर आएगा। यहाँ पर बताना चाहूँगा की दीपक की एक नन्ही सी परी "दिब्यांशी" भी है।
क्या होना चाहिए दीपक की पत्नी तथा उसकी परी का भविष्य? हमारे समाज के विद्वान पंडितों ज्ञानी का कहना है की हमारी संस्कृति के अनुसार एक विधवा को उसी घर में रहकर अपने ससुर, ननद और देवर का ख्याल रखना चाहिए। मैं आपसे पूछता हूँ - क्या यह उचित होगा? हम एक बार दीपक से साथ अन्याय कर चुके हैं क्या हमे अपनी गलतियों की पुनरावृति कर लेनी चाहिए? क्या यह उचित न होगा की दीपक की पत्नी जो की मात्र अठ्ठारह वर्ष की है, जिसने मात्र तीन वर्षों में ही पूरी जिंदगी जी ली, इन तीन वर्षों में वह बच्ची से ज़वान हुई, फिर माँ बनी और अब विधवा, का पुनर्विवाह कर दिया जाये। ताकि वह अपनी जिंदगी खुशहाल ढंग से जी सके। मेरी आवाज को बल दें ताकि मैं इन घिसे-पिटे रीति रिवाजों के चंगुलों से एक मासूम को आज़ाद करा सकूँ।
आपका मनीष सिंह "गमेदिल"
6.10.10
दोषी कौन............... हम या हमारी संस्कृति?
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12 comments:
आपने सही लिखा है एक बार जो गलती हई उसकी पुनरावृति नही होनी चाहिए इस तरह की बातों का परिवार में विरोध आवश्यक है इस तरह के परिवारों में यह सब होता है। उन्हे समझाये। सबसे अहम बात उस विधवा का जो आज एक बच्चे के मां भी है तथा उम्र भी अभी ज्यादा नही यदि वह चाहे तो दूसरा विवाह कर सकती है ताकि उसे सुरक्षा मिले पर सही परिवार व सही व्यक्ति मिले वरना तो पुनर्विवाह भी उसकी स्थिति में कुछ सुधार नही ला सकता ।
सुनीता शर्मा जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ.....
पुनर्विवाह आवश्यक है.....अगर हम सिर्फ अपने लिए अपने माँ बाप के बनाये और करोडो सालो पुराने रीति रिवाज तोड़कर शादी करते आ रहे है तो क्या २ मासूमो कि जिंदगी बचने के लिए पुनर्विवाह गलत कार्य है? नहीं...उनका विवाह किसी योग्य लड़के से कर दिया जाना चाहिए...बस...२ बार जिंदगी खराब हो चुकी तीसरी बार मत खराब कीजिये..अगर उनका विवाह करके उनकी जिंदगी का न सुधार गया तो सारे घर वालो पर ३ हत्याओ का पाप आएगा..देखा जाए तो दीपक के मौत के जिम्मेदार भी यही लोग है..कितनी घटिया बात है न? समाज में? एक तरह अगर उसकी माँ जिन्दा होती तो बच्ची को वो खुशी खुशी अपने घर बुलाती..घुमाती टहलाती..लोरी सुनाते..लेकिन वही रिश्तेदार...परिवार वाले..अपने अपने पल्लू झाड़ते हुए सारे जिम्मेदारी मासूम दीपक के सर दाल दिए..दीपक कि तो जान चली गई..लेकिन अब इन दोनों कि ऐसी हालत का जिम्मेदार कौन है? सर्कार कितने कैम्पेन चलीती है? बाल विवाह रोका जाये..लेकिन आप जैसे बुध्हिजीवी भी यह सब नहीं रोक सके..क्या कहा जाए? उन सबकी इस हालत के कुछ जिम्मेदार आप भी है..आप भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड सकते...क्युकी उन्ही रिस्तेदारो में आप भी आते है..जहा तक देखा जाये तो आपकी उम्र २२-२३ साल है..अगर आप अविवाहित है तो आप भी उनसे विवाह कर सकते है...अपने घर वालो से विचार विमर्श करके...आप उनके माँ-बाप कि सेवा के साथ उनके छोटी बहन-और उसके परिवार कि भी जिंदगी बचा सकते है..लेकिन आप हर्गित ऐसा नहीं करेंगे महाशय.क्युकी आपकी नजरो में वो एक विधवा है.है कि नहीं? अगर आप यहाँ आवाज उठा रहे है तो क्या सिर्फ नाम कमाने के लिए? या फिर अच्छे काम्मेंट्स के लिए? क्या सहानुभूति उसकी तरफ से आप बटोरना चाहते है?? असले मर्द है? अगर आप सच में पुनर्विवाह के समर्थक है तो उचित होगा आप स्वय शादी करले..आपकी जिंदगी के साथ उनके परिवार कि भी जिंदगी सवार जायेगी.. shravan shukla
जब पति मरता है तो पत्नी को विधवा बना दिया जाता है लेकिन जब पत्नी मरती है तो पति दूसरी शादी कर सकता है, यह कैसी विडम्बना है, एक करे तो पुन्य एक करे तो पाप, यह कुरीति हमारे हिन्दू समाज में ही है, समय रहते इसमें बदलाव जरुरी है. पढ़े-लिखे सभ्य समाज को आगे बढ़कर इसमें पहल करनी चाहिए.
अजय केशरी
https://samaytimes.blogspot.com
मनीष जी.क्या आपमें हिम्मत है? मुझे तो यही लगा..पिछले ४ घंटो से सिर्फ आपके इसी नोट के बारे में सोच रहा हू..कि आप रिश्तेदार है,, एक दुसरे को जानते भी है,,सबका सहारा भी बन सकते है..आप कई जिन्दगिया बचा सकते है...अगर आप इस नाके काम को करते है तो..निश्चित ही इससे समाज में एक बहुत ही अच्छा सन्देश जाएगा..मेरा आह्वान है आप आगे बढ़ो..प्लीज़ -
http://jeewaneksangharsh.blogspot.com/
manish ji aapka camment nahi aaya..bahut bura laga yah jaankar ki aapbhi un sabme shaamil hai..yaha is lokh ko sirf masala banane ke liye ikha hai or kuch nahi...aakhir tumhe kya hak hai unki is shtiti ko ujagar karne ki? tumme jab himmat nahi hai unka haath thaamne ki....kyu aap baat karte hai vidhwa punarvivaah ki? bataiye..insaaniyat par ek karz rahega aapka agar aap bhadas par likhna chhod denge..aisi ochhi harkato ko kya samjha jaaye???
wow.great.......to yaha apni kirkiree se bachne ke liye yah sab?????
माननीया सुनीता और मोनिका जी, आपके विचारों से मुझे नयी स्फूर्ति का अनुभव हुआ है धन्वायद आपका। सुनीता जी बताना चाहूँगा शायद हमे परेशानी तब नहीं आती ज़ब आपका परिवार आपके साथ हो वो आपकी मनोदशा और आपकी विचार धारा में आपका सहयोग करे। पर यहाँ स्थिति उलट है मुझे ना केवल समाज के ठेकेदारों को ज़वाब देना है वरन इस विरोध में मुझे अपने ही परिवार का सामना करना पड़ रहा है। मैं अभी उचित समय की प्रतीक्षा में हूँ जब सवयं दीपक की पत्नी से इस बारे मैं बात करूँ। क्यूँ की कुछ करने से पहले मुझे उसकी भी राय जानना ज़रूरी है।
माननीय श्रवन शुक्ल जी, आपकी प्रतिक्रिया शायद उचित हो। पर आपको बताना चाहूँगा की कल में नेट पे मौजूद नहीं था मैं दीपक के घर गया था। आपको क्या लगता है यह सब मैंने अपने स्वार्थस्वरूप लिखा है या फिर लिख ने के बाद आपकी प्रतिक्रिया का इन्तेजार कर रहा था? जो सुझाव आपने दिए है इस मुद्दे पर पहले से ही मेरे अपने घर में कोलाहल मचा हुआ है। क्यूँ की दीपक मुझ से उम्र में छोटा था इस रिश्ते से उसकी पत्नि मेरी बहू लगती है आज तक मैंने उसका चेहरा तो क्या उसके पैरों का रंग तक नहीं देखा। फिर भी मैंने अपने माँ और पिता जी के सामने अपने लिए प्रस्ताव रखा था। तो मेरे ही घर में विरोधाभास शुरू हो गया। क्यूँ की मेरी मंगनी हो चुकी है ,लेकिन में हार नहीं मानूंगा क्यूँ की मेरे उपर दीपक का कर्ज है अभी मैंतो सिर्फ उचित समय का इंतजार कर रहा हूँ जब सवयं दीपक की पत्नी से इस बारे मैं बात करूँ। क्यूँ की कुछ करने से पहले मुझे उसकी भी राय जानना ज़रूरी है।
एक और बात मैं इस घटना को ब्लॉग पर नहीं लाना चाहता था, पर क्या करूँ मेरे विचारों के विरोध में जब मैंने सवयं अपने ही घर वालों को पाया। तो मैं विचलित हो गया और अपने आपको अकेला पाकर कही मैं कमजोर न पड़ जाऊ इसी लिए... मैं इसे ब्लॉग पे ले आया।
खैर आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद्
आपका मनीष सिंह
मनीष जी. अगर आपने वाकई में ऐसा किया है तो मै आपको बधाई देना चाहता हू..एक बात और,आप हार मत मानना भाई..अगर आप ही हार गए तो आपके साथ कई जिन्दगिया भी हार जायेगी..आप बधाई के पात्र है..मै अभी तक सिर्फ बात में डूबा हुआ जो कुछ भी कहा हू उसके लिए क्षमाप्रार्थी हू....आप जो कर रहे है बिलकुल सही कर रहे है...और हा.रही बात बहु की तो यह भी एक कुप्रथा ही है..पुरानो में लिखा है अगर आप एक मासूम की रक्षा करने के लिए १०० रक्षाशो को मारते है तो आपपर पाप नहीं लगेगा..यही बात यहाँ भी ठहरती है. मै आपके साथ हू..कहने को तो मेरी उम्र अभी १९ साल है लेकिन मै अपने पूरे गाव का दादा जी लगता हू..सब दादा जी प्रणाम बोलते है..मुझे शर्म की अनुभूति होती है जब हमारे गाव के विद्वान हमारे सामने सर झुकाते है ....यहाँ बहु वाला मसला आप अपने दिल से निकल दे बेहतर होगा.और अपने घरवालो को बैठकर यही बात समझाए..उम्मीद है कोई न कोई रास्ता आप जरुर पा लेंगे..
आपका शुभचिंतक
श्रवण शुक्ल
shravan.kumar.shukla@gmail.com
बड़ी दुखद घटना घटित हुई है।...अब?...उत्तम यही होगा कि दीपक की पत्नी का दूसरा विवाह कर देना चाहिए, ताकि उसका और बच्ची का भविष्य संवर सके।
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