Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

13.11.10

हंगामा है क्यों बरपा

बुधवार को भोपाल की किसी सभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सर संघचालक माननीय श्री कुप्प सी सुदर्शन ने यूपीये अध्यक्ष सोनिया गाँधी को लक्ष्य कर
दो तीन आरोप जड़े और पुरे देश में लाखों स्थानों पर उनका पुतला फूंक दिया गया| हमारे देश के माननीय सांसदों और सम्माननीय नेताओं ने उन्हें मानसिक रूप
से दिवालिया तक कह दिया|यह सब करते हुए ब्रिटिशकालीन पुरातत्व विभाग के गणमान्य संरक्षकों को यह भी विस्मृत हो गया की स्पेक्ट्रम घोटाले में आरोपित
अपने माननीय मंत्री का ये लोग कितनी बेशर्मी से बचाव कर रहे हैं? कांग्रेस के महासचिव और मिडिया प्रभारी जनार्दन द्विवेदी ने ”पुरातत्व संग्रहालय से निकले
इस शख्स के प्रति’ जो भाषा इस्तेमाल की उसके बारे में भारतीय जनता के मन में संघ अथवा भाजपा के प्रति कुछ धारणा बनी हो या न बनी हो कांग्रेस के बारे
में एक धारणा अवश्य बन गयी की कांग्रेस को चाहे जो कुछ भी बोलो या न बोलो सोनिया को अवश्य बख्श दो| स्पष्ट है की जम्हूरियत अथवा लोकतंत्र को कांग्रेस
के लोग सोनिया गाँधी के श्री चरणोँ मेँ समर्पित कर चुके हैँ और वे उनके बारे मेँ किसी भी टिप्पणी को न तो बर्दाश्त कर सकते हैँ और न ही टिप्पणीकार को अपना पक्ष रखने का कोई अवसर दे सकते हैँ।
संस्कृति और सभ्यता को अपने पैरोँ तले कुचल देने वाले गाँधी और नेहरु के मानस पुत्रोँ की भाषा शैली स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक क्या रही है ? यह सर्वविदित है।जब भरी आमसभा मेँ लोकतंत्र की निर्माता और निर्देशिका ने एक लोकतंत्रात्मक ढंग से चुने गये मुख्यमंत्री को मौत का सौदागर कह कर पुकारा था, तब यह कौन सी मर्यादित भाषा शैली थी? जब भरी आमसभा मेँ लोकतंत्र के पटकथा लेखक ने संघ और सीमी को एक ही तरह का आतंकवादी संगठन करार दिया था, तब वह कौन सी मर्यादित भाषाशैली थी? जब भरी आमसभा मेँ लोकतंत्र के अभिनेता ने देश के समस्त संसाधनोँ पर एक वर्ग विशेष का हक जताया था, तो वह कौन सी मर्यादित भाषाशैली थी? जब भरी आमसभा मेँ लोकतंत्र के विपणन – प्रभारी ने सभी हिन्दुओँ को बर्बर आतंकी कह कर पुकारा था और समग्र भगवा जीवन पद्धति को नृशंस हत्यारा कहा था, तो वह कौन सी मर्यादित भाषा शैली थी? जब आतंकी हमले के समय, पत्रकारोँ के सामने लोकतंत्र के शब्द शिल्पी प्रत्येक पाँच मिनट मेँ अपना सूट-बूट कस रहे थे, तो वह कौन सा मर्यादित आचरण था? जब भरी आमसभा मेँ लोकतंत्र के अल्पसंख्यक चरित्र ने हेमंत करकरे की शहादत को हिन्दू आतंकवादियोँ का कृत्य बताया था, तो वह कौन सी मर्यादित भाषा थी? जब पहले ही आम चुनाव मेँ गली – गली मेँ ‘गाँधी के हत्यारोँ को वोट देना पाप है’ जैसे आधारहीन नारे लगाये जाते थे, तो वह कौन सा मर्यादित आचरण था? जब हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय सम्प्रभुता को ताक पर रखकर, भारत माता के ही एक हिस्से को लक्ष्य करते हुये ‘जिस जमीन पर घास का एक टुकड़ा नहीँ उगता, उसके बारे मेँ क्योँ चर्चा की जाय’ जैसा वाक्य बोला था, तो वह कौन सा मर्यादित आचरण था? जब बिना किसी ठोस कारण के मात्र राजनैतिक प्रतिद्वन्दिता के वशीभूत होकर राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर राष्ट्रीय आपातकाल ठोँक दिया गया था, तो यह कौन सा मर्यादित कदम था? जब शहीदोँ की शहादत को भूलकर दिग्गी राजा आजमगढ़ मेँ घड़ियाली आँसू बहा रहे थे और मगरमच्छोँ के आँसू पोँछ रहे थे, तो यह कौन सा मर्यादित आचरण था? जब हमारे देश की प्रभुसत्ता काश्मीर मेँ हुर्रियत और गिलानी के कदमोँ तले रौँदी जा रही थी, तो यह कौन सी मर्यादा थी?
कुप्प सी सुदर्शन ने जो कुछ भी कहा, भावना के वशीभूत होकर कहा।वे किसी संसद मेँ नहीँ बोल रहे थे, जो उनपर असंसदीय शब्दोँ के बोले जाने का आरोप लगे।वर्तमान मेँ न तो माननीय सुदर्शन जी पर संघ का कोई दायित्व है और न ही भाजपा की ही उन पर कोई जिम्मेदारी है,उन्होंने जो कुछ भी कहा एक सामान्य नागरिक की हैसियत से कहा और मैंने ऊपर जो भी उदहारण दिए हैं,वे जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के हैं|कहा भी गया है ‘यथा राजा तथा प्रजा’ जब हमारा नेतृत्व ही भ्रष्ट होगा तो नागरिक किस मर्यादा का अनुसरण करेंगे? और यहाँ तो ‘एक होई तो कही समुझाओं,कुपही में यहाँ भंग पड़ी बा’ की तर्ज पर क्या राजा क्या प्रजा सभी चकरघिन्नी नाच रहे हैं,एकदम से नाच बलिये नाच की माफिक|
विरासत में ही हमारे मुंह में इतना जहर ठूंस दिया गया है की अब नेतृत्व को आम नागरिकों से अच्छे आचरण की उम्मीद त्याग देनी चाहिए|यदि आप हमारे मुंह पर तमाचा जड़ने का साहस करते हैं तो आपको भी मुक्का सहने को तैयार रहना चाहिए|यदि आप किसी के विरुद्ध तीखी शब्दावली का प्रयोग करते हैं तो आप को अपने कानों को वज्र बनाना पड़ेगा|किसी ने कुछ भी बोला और आपने उसके कर्यालय को फूंक दिया ‘यह तो बड़ी नाइंसाफी है रे’ इस तरह का आचरण मेरी समझ से परे है|
यह तो एक बानगी भर है..अगर गाँधी और नेहरु के मानस पुत्रों के चरित्र का फुर्सत से पोस्टमार्टम किया जाय तो ३६५ दिन में ३६५० ऐसे मामले प्रकाश में आयेंगे जब इनके किसी न किसी राष्ट्रिय अथवा राज्यस्तरीय नेता ने पानी पी पी कर संघ,भाजपा,हिन्दू,राष्ट्र और यहाँ तक की संविधान तक की खिल्ली न उड़ाई हो,जी भर कर गरियाया न हो| अब अगर…..’हौ इहै एक इच्छा,अरमान एतना बाकी, तू हमरी ओर ताका,हम तोहरी ओर ताकी’ ही वर्तमान राजनीती का यथार्थ है तो “हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है, लूटा तो नहीं हमने,चोरी तो नहीं की हैं” इस तरह की स्थिति पैदा करने के जिम्मेदार तो आप ही हो|

4 comments:

Shikha Kaushik said...

manog ji sawal iska nahi ki kisne kab kya bola tha.sawal yah hai ki kisi mahila ke khilaaf is tarah ke aarop lagakar k.sudarshan jaise neta kya sidhh karna chahte? kya is tarah ke bayan soniya ji ki lokpriyata ko kam kar sakte hai? kam-se kam main to aisa nahi sochti.

Manoj Kumar Singh 'Mayank' said...

aadarniy shikha ji, kya sabhi mamlon ka hal sirf stri aur purush ke antrsambandh hain? kya antraatma naam ki koi chij nahin hoti?jab prshan is desh se juda ho to khamosh kaise raha ja sakta hai? sudarshan ji ne jo kuch bhi kahan main usase sahmat nahin hoon.fir vartman me vah to ek samany se nagrik hain..iske viprit sonia ek mahila hone ke saath hi ek prbhawshali mahila hain. upa ki adhyksh hai....kya lokpriyta hi sat aur asat ka mandand hona chahiye?

K M Mishra said...

मनोज जी सादर वंदेमातरम ! कांग्रेस के मुंह से नकाब खींचने वाली पोस्ट के लिये धन्यवाद आपको ।

Manoj Kumar Singh 'Mayank' said...

वन्देमातरम मिश्रा जी,
आपका कोटिश आभार...इस तरह का प्रयास आपकी तरफ से भी किया जा रहा है...इश्वर करे की यह प्रयास अगले चुनाव में अपना चोखा रंग दिखाए|जय भारत,जय भारती