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11.1.11

हे प्रभु!अब आप भी नहीं पहचान सकते


दुनिया बनाने वाले वैसे तो हो सकता है की आपको मेरी बात पर बिस्वास न हो लेकिन मुझे पूर्ण विस्वास है की अगर आप को कुछ पल के लिए इस सृष्टी पर कदम रखना पड़े तो संभव है की आपको अपने ही द्वारा रचित सुन्दर सी ब्यवस्था को पहचानने में थोड़ी सी दिक्कतों का सामना करना पड़े और अगर किसी भी तरीके से आप इसे पहचानने में कामयाब भी हो जाते है तो संभावना ज्यादा है की इसकी रचना करने पर एक मिनट के लिए अपने आप को कोसने से नहीं रोक पायें!
अब आप कहेंगे की ये कैसे जब सब हमने ही बनाया है तो फिर पहचानने में कैसी दिक्कत भला अपनी ही बनायीं चीज को कोई कैसे भूल सकता है और यही शायद लोग भी कहते है तो फिर खुद ही देख लीजिये,चलो माना की जिस धरती पर सुनहरा जीवन आपने संभव किया उसे आज भी धरती के नाम से ही जाना जाता है पर आपने उसके टुकडे नहीं किये थे लेकिन आज इस धरती के पता नहीं कितने टुकडे कर दिए गए है और सभी टुकड़ों को एक अलग नाम से जाना जाता है और सबके मालिक अलग-अलग है,सबकी ब्य्वस्थाये भी अलग-अलग ही हैं,यहाँ तक की एक दुसरे के रेखा के अन्दर घुशने से पहले तमाम कागजी प्रक्रियायों को पूरा करना पड़ता है तथा बिना इन प्रक्रियायों के गैर क़ानूनी माना जाता है यानि संभव है की आपको अपनी ही बनायीं धरती को पहचानते वक्त भ्रमण करने पर पासपोर्ट व हर एक देश से अनुमति लेनी पड़े!
चलिए अब अगर इतना सब कुछ करने में सफलता पा भी लेते है तो भी मुश्किलें कम नहीं होंगी आपने जिन प्रकिर्तिक चीजों को उत्पन्न किया था उसे भी पहचानने में अनेकों मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि अब यहाँ प्राकृतिक चीजों को आर्टिफिशियल रूप देकर घरों में इस्तेमाल किया जाता है इसके लिए भले ही प्राकृतिक चीजों का लुप्तीकरण हो जाय इससे इन्शान को कोई मतलब नहीं उसे तो बस मशीन की ब्यवस्था चाहिए,यहाँ आपको बहार तो नहीं लेकिन अब अधिकतर घरों के बाथरूम में आर्टिफिशियल झरने देखने को मिल सकते है,और हाँ एक बात और आने के लिए मौषम की चिंता तो बिलकुल भी मत कीजिये और जाड़ा गर्मी बरसात कभी भी धरती पर कदम रख दीजिये आपको जाड़ा में पानी गर्म और गर्मी में बर्फ मिलेगा और बर्षा के मौषम को इसको तो आप महशुश भी नहीं कर पाएंगे,घरों से बाहर जितनी गर्मी या फिर ठंढी होगी उससे कही अधिक घरों के अन्दर ठंढी या गर्मी का एह्शाश होगा आपको,पेड़ों के पत्ते भले ही न हिलें लेकिन मशीनी पत्ते हिलते आपको जरुर नजर आयेंगे,ये सब मशीन का कमाल है और तो और अब खेती भी इन्शान और जानवर नहीं बल्कि मशीन ही किया करते है,खेती तो खेती यहाँ तक की इन्शानों के अधिकतर कार्य जिसमे बच्चों के पढने और खाना बनाने से लेकर दवाएं करने और बनाने तक का काम भी अब मशीन ही किया करते हैं अब तो किसानों द्वारा वर्षा का इंतजार नहीं करना पड़ता जब चाहे जैसे चाहे जितना चाहे अपने मन मुताबिक इन मशीनों के द्वारा खेतों को लबालब कर लिया जाता है यानि प्रकिर्त के साथ खिलवाड़ कर इसे लुप्त करने की कोशिश की जा रही है! ये अलग की बात है की इसके बावजूद भी आपकी संस्तुति अपना महत्व खूब रखती है यानि कुल मिलाकर अब लगभग हर जगह आपको मशीनों के ऊपर आश्रित इन्शान ही देखने को मिलेंगे!
अब इतने के बाद भी आप कहेंगे की इन सबको छोड़ो इस दुनिया में जीवन यापन करने वाले प्राणियों को तो आसानी से पहचाना ही जा सकता है तो आपको बता दूँ की इस भ्रम में तो आप न रहिये तो ठीक क्योंकि शायद सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना आपको यहीं इसी छेत्र को पहचानने में करना पड़ सकता है तो चलिए थोडा आगे बढ़ते हैं अब आप ही देख लीजिये आपने जिन प्राणियों को जीवन यापन और अपने द्वारा रचित सुन्दर से सृष्टी को आगे बढ़ाने हेतु इस धरती पर भेजा था उनमे इन्शान से लेकर जानवर पशु पछि तक सब एक साथ प्रेम भाव से एक साथ रहते खाते पीते व जीते थे लेकिन अब यहाँ आपस में ही एक दुसरे को खाया पिया जाता है जिसमे जानवर इन्शान को कम बल्कि इन्शान ही जानवर को ज्यादा खाते हैं जहाँ एक तरफ जानवर होते हुए भी जानवरों ने आपस में प्रेम भाव को बरक़रार रख्खा है वहीँ दूसरी तरफ एक समझदार और सामाजिक प्राणी होते हुए भी इन्शानो के अन्दर इसकी कमी और हिंसा की बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है यहाँ अब लगभग इन्शान एक दुसरे को देखना तक पसंद नहीं करते! चलिए इसी धरती के अन्य टुकड़ों की जिक्र किये बिना भारत के नाम से जाना जाने वाले देश की बात की जाय तो इसे पहचानने में आपको और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है जिस देश का मुख्य धन संस्कार है आज वहीँ इसकी कमी देखने को मिल सकती है आज अधिकतर दार्शनिक स्थलों व सड़कों से लेकर महानगरों के साथ साथ गाँव तक लगभग हर जगहों पर मनुष्यों में लड़का और लड़की को पहचानना काफी मुश्किल हो ही सकता है आज जहाँ एक तरफ अधिकतर लड़कियों को कम कपड़ों के साथ-साथ पैंट और शर्ट ही पसंद है वहीँ दूसरी तरफ ठीक इनके विपरीत लड़के लड़कियों के तरह बालों को बड़ा कर घुमने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं,ठीक ऐसे ही आप यह देख कर थोडा भौचक्का में पड़ सकते है की जिस देश को माता की संज्ञा दी जाती है आज वहां हकीकत में माताओं को कितना कस्ट उठाना पड़ता है जिसका प्रमाण आज देश में बढ़ रहे ब्रिधा आश्रम हैं,हाँ जहाँ एक तरफ आपको सरकारी से ज्यादा प्राइवेट दफ्तरों के साथ साथ लगभग हर छेत्र में लड़कियों को ज्यादा ज्यादा मात्रा में सीटों पर काम करते देख थोड़ी ख़ुशी मिल सकती है वहीँ दूसरी तरफ बेरोजगारी की मार झेल रहे लड़कों को पहचानने में बिना किसी मुश्किल के इनके दुखों को सुनकर थोडा दुःख भी हो सकता है अब चाहे इसमें इनके किस्मत का दोष कहा जाय या फिर कुछ और ये तो आप ही जाने,आगे हो सकता है की लगभग हर एक नुक्कड़ चौराहों पर उपस्थित भिंड में आपकी कथाओं और आपके कर्मो के अनुसरण और चर्चा के बजाय ज्यादा से ज्यादा संख्या में शीला की जवानी की चर्चा के साथ ही मुन्नी बदनाम हुई सुनाई दे दे, इसी क्रम में जहाँ एक तरफ जातिवाद की गन्दी राजनीत और रिजर्वेसन के आड़ में कुछ जातियों का जबरदस्त शोषण भी आपको आसानी से देखने को मिल सकता है वहीँ दूसरी तरफ अब यहाँ सिर्फ पत्नियों/महिलाओं का ही नहीं बल्कि क़ानूनी दाव पेच की आड़ में मर्दों/पुरुषों का भी शोषण होते देखा जा सकता है,ठीक इसी क्रम में जहाँ एक तरफ मोबाइल व बात करने के लिए काल रेट आपको सस्ते में मिल सकता है वहीँ दूसरी तरफ थकने पर एक कप चाय पिने के लिए आपको अछि खासी कीमत चुकानी पड़ सकती है क्योंकि चीनी,गैस के दाम आसमान जो छु रहे हैं,यहाँ आप को याद दिला दूँ की इस देश में अब बच्चों को दूध से पहले हाथ में मोबाइल थमा दिया जाता है क्योंकि यही सस्ता है,हाँ एक बात और ईमानदारी से चर्चित देश में घोटालों की कोई भी कमी नहीं है और अगर बिस्वास न हो तो किसी भी सरकारी दफ्तर के अन्दर घुश कर देख लेना खुद बा खुद पता चल जायेगा! हाँ अगर अब भी आप अपने धरती को आसानी से पहचान सकते है तो एक बार कोशिश करके देख लीजिये,आपका स्वागत है!

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