भारत एक संघीय राज्य है या दूसरे शब्दों में कहें तो राज्यों का संघ है.जिसकी राजधानी दिल्ली में है.दिल्ली में संघीय सरकार यानी केंद्र सरकार के प्रधान प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री रहते हैं जो गरीबों के प्रति बड़े दयालु होने का दिखावा करते रहते हैं.ये लोग उनके लिए नित नई योजनाएं बनाते और घोषित करते रहते हैं.ऐसा होना भी चाहिए.जो गरीब हैं उनकी अतिरिक्त मदद अवश्य की जानी चाहिए.लेकिन वही केंद्र सरकार आजादी के बाद से ही चाहे केंद्र में जिसकी भी सरकार रही हो;गरीब राज्य बिहार को प्रताड़ित करने में लगी रही है.यह दोहरी नीति क्यों?गरीबों की मदद करो लेकिन गरीब राज्यों को और गरीब बना दो.इस तरह समाप्त होगी गरीबी?
बिहार की राजनीतिक रूप से प्रबुद्ध-जनता इस केंद्र सरकार की देशविरोधी नीतियों को शुरू में ही समझ गई थी.तभी तो २००९ के लोकसभा चुनावों में बिहारियों ने केंद्र की यूपीए सरकार के खिलाफ जनादेश दिया था.आज पूरा भारत जहाँ उन चुनावों में अकर्मण्य और भ्रष्ट यूपीए को वोट देने को लेकर खुद के विवेक पर ही शर्मिंदा है,बिहारियों को अपने चुनावी विवेक पर गर्व है.फ़िर भी कांग्रेस को उम्मीद थी कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं की नौका पर सवार होकर वह बिहार चुनाव की वैतरणी पार कर लेगी;नहीं तो पार्टी की हालत में कुछ तो सुधार होगा ही.इसलिए तब दंडस्वरूप किसी भी बिहारी को आजादी के बाद पहली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में भले ही स्थान नहीं दिया गया हो,बिहार को मिलनेवाले फंड व बिजली के कोटे में कोई गंभीर कटौती नहीं की गई.
लेकिन जबसे बिहार विधानसभा चुनावों में यूपीए की पहले से डूबती-उतराती लुटिया डूब गई है;केंद्र जैसे पूरे बिहार की जनता को इसके लिए दण्डित करने पर तुल गया है.होना तो यह चाहिए कि राज्यों को सहायता वहां स्थापित सरकारों के प्रदर्शन के आधार पर देना चाहिए या फ़िर गरीबी को आधार बनाया जाना चाहिए.साथ ही जनसंख्या भी एक महत्वपूर्ण वास्तविकता है.इस समय इन तीनों ही मानदंडों पर बिहार खरा उतरता है.इसलिए सहायता राशि प्राप्त करने वाले राज्यों की सूची में उसका स्थान सबसे ऊपर रहना चाहिए.बिहार लम्बे समय तक देश की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला राज्य रहा है.आज भी वह तीसरा स्थान रखता है.लेकिन न ही तब बिहार की विशाल जनसंख्या के हितों का खयाल रखा गया और न ही अब रखा जा रहा है.
जब केंद्र सरकार गरीबों के लिए कोई योजना लाती है तब यह सोंचकर कि ये लोग बांकियों से प्रतियोगिता में नहीं टिक सकते इसलिए बराबरी पर लाने के लिए अन्य लोगों से इतर इनकी मदद करना उसका धर्मं बनता है.आज जब बिहार जो देश का सबसे गरीब राज्य है और विकास की दौड़ में सबके साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने को बेताब है;तो इसकी योजना राशि और बिजली कोटे में कटौती की जा रही है.बिहार में बदले माहौल से उत्साहित होकर बड़े-बड़े उद्योगपति आने और उद्योग स्थापित करने को उत्सुक हैं.मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जो पटना के आसपास के क्षेत्रों में जमीन भी खोज रहे हैं.अगर वे आ गए तो बिना बिजली के कैसे फैक्टरी चलाएंगे,दीया या ढिबरी से?दूसरी ओर बिहार के किसान भी पिछले दो सालों से सूखा झेल रहे हैं.उनके लिए तो बिजली के कोटे में कमी बिजली गिरने के ही समान है.
केंद्र सरकार की बिहार के प्रति नीति उसी तरह की है जैसे कोई माँ अपनी बीमार संतान की देखरेख-दवादारू में और भी कटौती कर दे.फ़िर तो वह संतान मरेगी ही न.अगर दुर्भाग्यवश आप लेट से चाल रही ट्रेन में कभी चढ़े होंगे तो देखा होगा कि रेलवे कंट्रोल उसके परिचालन में और भी देर करती जाती है.कुछ इसी तरह का रवैया केंद्र का बिहार और बिहारियों के प्रति है.यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे पास गुजरात की तरह संसाधन नहीं है.नहीं तो हमारे मुख्यमंत्री भी नरेन्द्र मोदी की तरह सीना ठोंककर कहते कि हे केंद्र सरकार!तुम अपना पैसा और बिजली अपने पास रखो.मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.लेकिन केंद्र सरकार की प्रतिशोधात्मक नीतियों के चलते न राधा को नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी.
यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार के सौतेले रवैये के चलते पिछड़ा बिहार विकास की दौड़ में और भी पिछड़ जाएगा.आज भी नीचे से नंबर एक है कल भी नीचे से ही नंबर एक रहेगा.बिहार सरकार को बुद्धिस्ट देशों और विश्व बैंक आदि से सीधे धन प्राप्त करने के प्रयास बढ़ा देने चाहिए और मान लेना चाहिए कि केंद्र से कुछ भी नहीं मिलनेवाला.यह केंद्र सरकार वैसे भी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है और उसे राज्यों में भी भ्रष्ट मुख्यमंत्री चाहिए,नीतीश जैसा आदमी नहीं.साथ ही दो-दो बार बिहार में धोबिया पछाड़ खाकर भी या तो उसके होश ठिकाने नहीं आए हैं या फ़िर आघात से उसका दिमाग सन्तुलन ही गड़बड़ा गया है.अगले लोकसभा चुनाव में यह न सिर्फ बिहार में बल्कि पूरे भारत में मुंह की खानेवाली है.वो कहते हैं न कि मतदाता (भगवान) के घर में देर है अंधेर नहीं है.अगर बांकी भारत की लगातार तीसरी बार की मूर्खता से अगले चुनावों में भी यह सरकार जीत गई तो भी कोई बात नहीं.बिहार के पास आज भी बहुत शक्ति है;युवा शक्ति और श्रम शक्ति.जरूरत बस इसका योजनाबद्ध और ईमानदार तरीके से इस्तेमाल करने की है.मुझे पूरा भरोसा है कि आज नहीं तो कल एक दिन वह जरूर आएगा जब हम भी केंद्र से गुजरात सरकार की तरह यह कह सकेंगे कि तुम हमसे हो हम तुमसे नहीं.चाहे उस समय केंद्र और राज्य में किसी की भी सरकार हो.
बिहार की राजनीतिक रूप से प्रबुद्ध-जनता इस केंद्र सरकार की देशविरोधी नीतियों को शुरू में ही समझ गई थी.तभी तो २००९ के लोकसभा चुनावों में बिहारियों ने केंद्र की यूपीए सरकार के खिलाफ जनादेश दिया था.आज पूरा भारत जहाँ उन चुनावों में अकर्मण्य और भ्रष्ट यूपीए को वोट देने को लेकर खुद के विवेक पर ही शर्मिंदा है,बिहारियों को अपने चुनावी विवेक पर गर्व है.फ़िर भी कांग्रेस को उम्मीद थी कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं की नौका पर सवार होकर वह बिहार चुनाव की वैतरणी पार कर लेगी;नहीं तो पार्टी की हालत में कुछ तो सुधार होगा ही.इसलिए तब दंडस्वरूप किसी भी बिहारी को आजादी के बाद पहली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में भले ही स्थान नहीं दिया गया हो,बिहार को मिलनेवाले फंड व बिजली के कोटे में कोई गंभीर कटौती नहीं की गई.
लेकिन जबसे बिहार विधानसभा चुनावों में यूपीए की पहले से डूबती-उतराती लुटिया डूब गई है;केंद्र जैसे पूरे बिहार की जनता को इसके लिए दण्डित करने पर तुल गया है.होना तो यह चाहिए कि राज्यों को सहायता वहां स्थापित सरकारों के प्रदर्शन के आधार पर देना चाहिए या फ़िर गरीबी को आधार बनाया जाना चाहिए.साथ ही जनसंख्या भी एक महत्वपूर्ण वास्तविकता है.इस समय इन तीनों ही मानदंडों पर बिहार खरा उतरता है.इसलिए सहायता राशि प्राप्त करने वाले राज्यों की सूची में उसका स्थान सबसे ऊपर रहना चाहिए.बिहार लम्बे समय तक देश की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला राज्य रहा है.आज भी वह तीसरा स्थान रखता है.लेकिन न ही तब बिहार की विशाल जनसंख्या के हितों का खयाल रखा गया और न ही अब रखा जा रहा है.
जब केंद्र सरकार गरीबों के लिए कोई योजना लाती है तब यह सोंचकर कि ये लोग बांकियों से प्रतियोगिता में नहीं टिक सकते इसलिए बराबरी पर लाने के लिए अन्य लोगों से इतर इनकी मदद करना उसका धर्मं बनता है.आज जब बिहार जो देश का सबसे गरीब राज्य है और विकास की दौड़ में सबके साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने को बेताब है;तो इसकी योजना राशि और बिजली कोटे में कटौती की जा रही है.बिहार में बदले माहौल से उत्साहित होकर बड़े-बड़े उद्योगपति आने और उद्योग स्थापित करने को उत्सुक हैं.मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जो पटना के आसपास के क्षेत्रों में जमीन भी खोज रहे हैं.अगर वे आ गए तो बिना बिजली के कैसे फैक्टरी चलाएंगे,दीया या ढिबरी से?दूसरी ओर बिहार के किसान भी पिछले दो सालों से सूखा झेल रहे हैं.उनके लिए तो बिजली के कोटे में कमी बिजली गिरने के ही समान है.
केंद्र सरकार की बिहार के प्रति नीति उसी तरह की है जैसे कोई माँ अपनी बीमार संतान की देखरेख-दवादारू में और भी कटौती कर दे.फ़िर तो वह संतान मरेगी ही न.अगर दुर्भाग्यवश आप लेट से चाल रही ट्रेन में कभी चढ़े होंगे तो देखा होगा कि रेलवे कंट्रोल उसके परिचालन में और भी देर करती जाती है.कुछ इसी तरह का रवैया केंद्र का बिहार और बिहारियों के प्रति है.यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे पास गुजरात की तरह संसाधन नहीं है.नहीं तो हमारे मुख्यमंत्री भी नरेन्द्र मोदी की तरह सीना ठोंककर कहते कि हे केंद्र सरकार!तुम अपना पैसा और बिजली अपने पास रखो.मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.लेकिन केंद्र सरकार की प्रतिशोधात्मक नीतियों के चलते न राधा को नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी.
यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार के सौतेले रवैये के चलते पिछड़ा बिहार विकास की दौड़ में और भी पिछड़ जाएगा.आज भी नीचे से नंबर एक है कल भी नीचे से ही नंबर एक रहेगा.बिहार सरकार को बुद्धिस्ट देशों और विश्व बैंक आदि से सीधे धन प्राप्त करने के प्रयास बढ़ा देने चाहिए और मान लेना चाहिए कि केंद्र से कुछ भी नहीं मिलनेवाला.यह केंद्र सरकार वैसे भी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है और उसे राज्यों में भी भ्रष्ट मुख्यमंत्री चाहिए,नीतीश जैसा आदमी नहीं.साथ ही दो-दो बार बिहार में धोबिया पछाड़ खाकर भी या तो उसके होश ठिकाने नहीं आए हैं या फ़िर आघात से उसका दिमाग सन्तुलन ही गड़बड़ा गया है.अगले लोकसभा चुनाव में यह न सिर्फ बिहार में बल्कि पूरे भारत में मुंह की खानेवाली है.वो कहते हैं न कि मतदाता (भगवान) के घर में देर है अंधेर नहीं है.अगर बांकी भारत की लगातार तीसरी बार की मूर्खता से अगले चुनावों में भी यह सरकार जीत गई तो भी कोई बात नहीं.बिहार के पास आज भी बहुत शक्ति है;युवा शक्ति और श्रम शक्ति.जरूरत बस इसका योजनाबद्ध और ईमानदार तरीके से इस्तेमाल करने की है.मुझे पूरा भरोसा है कि आज नहीं तो कल एक दिन वह जरूर आएगा जब हम भी केंद्र से गुजरात सरकार की तरह यह कह सकेंगे कि तुम हमसे हो हम तुमसे नहीं.चाहे उस समय केंद्र और राज्य में किसी की भी सरकार हो.
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