हवा जब चली धूल झक्कड़ उड़ाती ,
तो खोया हुआ नौजवाँ याद आया ।
गुजरा हुआ एक सफ़र याद आया ,
बहारों का वो कारवां याद आया ।
कहाँ तक है पसरा समय का समंदर ?
जो बचपन में खोया कहाँ याद आया !
मगर जो तेरे साथ हमने सजाये थे ,
सपनों का वो गुलिस्ताँ याद आया ।
चले तो गए पर मुझे तेरा दामन
यहाँ याद आया ,वहां याद आया ।
मेरे आंसुओं के समंदर में डूबा
वो दिल का मुकम्मल जहाँ याद आया ।
हवा जब चली धूल-झक्कड़ उड़ाती
तो खोया हुआ नौजवाँ याद आया ।
गुजरा हुआ एक सफ़र याद आया ,
बहारों का वो कारवां याद आया ।
9.2.11
बहारों का वो कारवां याद आया
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