लेखक: श्री नरेश मिश्र
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साधो, हमने एक खौफनाक सपना देखा । सपने में संसद को देखना अच्छा लगा । फिर बकरीद की बकरमण्डी नजर आयी । वहाँ बकरे ऊंचे दामों बिक रहे थे । कुछ बकरों को सजा संवार कर बढ़िया चारा देकर काफी तदुंरूस्त बनाया गया था । उनके दाम लाख का आंकड़ा छू रहे थे । ऑंख खुली तो हमारी अक्ल शीर्षासन करने लगी । बकरमण्डी का संसद से कोयी रिश्ता जोड़ना हमारे बूते की बात नहीं थी । फिर विकीलीक्स का खुलासा सामने आया । संसद का हंगामा बेहद दिलचस्प था । हमारी अक्ल के ऊसर में हरियाली नजर आयी । पहली बार लगा कि हॉं ! संसद और बकरमण्डी के बीच गहरा रिश्ता है । सांसद बकरे भी बिकते है, अलबत्ता उनका दाम करोड़ों में आंका जाता है ।
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अब भ्रष्टाचार और खरीद फरोख्त के जरिए संसद में बहुमत बनाये रखने और नोट-गड्डियों पर सरकार चलाने की चैम्पियनशिप पर गौर करें तो सारी दुनिया में इस ट्रॉफी पर कांग्रेस का मौरूसी कब्जा नजर आता है । नोट के बदले वोट, नोट के बदले बहुमत कायम करने की कला में कांग्रेस को महारत हासिल है । दुनिया का कोयी लोकतंत्र उसे चुनौती नहीं दे सकता । नरसिंहराव ने झारखण्ड के गुरूघंटाल को नोट के जरिए पटाया तो अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने अपना कमाल दिखाया । सरकार तो दोनो बार बच गयी लोकतंत्र का सिर शर्म से झुक गया, यह दीगर बात है । राजनीति का एक फार्मूला बेहद कामयाब और जाना पहचाना है । आप शर्मोहया छोड़ दें तो कोई माई का लाल आपको हरा नहीं सकता ।
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विकीलीक्स के खुलासे की कुछ कहीकत चौंकाने वाली हैं । खरीद के वक्त राष्ट्रीय लोकदल के सांसदों का दाम प्रतिसांसद दस करोड़ लगाया गया लेकिन भाजपा के सांसदों में हर एक को सिर्फ तीन करोड़ दिये गये । सांसदों का दाम भी उनकी साख और चरित्र के मुताबिक लगया जाता है । कांग्रेसी खरीदारों को जिन सांसद बकरों पर यकीन था कि वे इस शर्मनाक लोकतंत्र की दहलीज पर कुर्बान हो जाने में कोयी गुरेज नहीं करेंगे उन्हें पूरे दाम दिये गये । भाजपाईयों पर यकीन नहीं था इसलिये उन्हें सिर्फ तीन करोड़ मिले । कांग्रेसी दलाल सौदेबाजी में माहिर हैं । वे जानते हैं कि कौन सा सौदा सिर चढ़ेगा और किसमें दग-दग हो सकती है ।
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सियासी दलालों का अंदाज गलत साबित नहीं हुआ । आखिरकार भाजपाई सांसदों ने लोकसभा के अंदर नोटों की गड्डियां लहरा कर बहुमत का स्वाद कसैला कर दिया लेकिन स्पीकर की कुर्सी पर कम्युनिस्ट नेता दादा सोमनाथ चटर्जी विराजमान थे । कम्युनिस्टों को जानने वाले बेहतर समझते हैं कि वे सियासी बेईमानी और गुण्डागर्दी में माहिर होते हैं (आने वाले पं0 बंगाल के चुनाव के लिये कम्युनिस्ट पार्टियॉं और उनके गुण्डे आजकल बंग्लादेश से स्मगल हुये हथियार बड़ी मात्रा में खरीद रहे हैं) । दादा ने नोटों की गड्डियों को दरकिनार कर दिया और वे यूपीए सरकार को बहुमत दिला कर माने । नोटों की गड्डियां लहराने वाले मायूस हो गये । मामले की जांच के लिये जेपीसी की रस्म निभाई गयी । इस बारात के दूल्हे जाने माने कांग्रेसी किशोर चंद देव थे । उन्होंने जांच को इस तरह घुमाया कि नोटों की गड्डी लहराने वालों का फटकार सहनी पड़ी । उन पर आरोप लगाया कि उन्हें रिश्वत दी गयी थी तो उन्होंने पुलिस या सीबीआई से इसकी शिकायत क्यों नहीं की । अब यह बताने की जरूरत नहीं कि पुलिस कांग्रेस की चाकर है और सीबीआई उसकी रखैल । रखैल और चाकरों के भरोसे कोयी अक्ल से खारिज सांसद ही रह सकता था ।
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देश की सर्वोच्च सम्प्रभू संस्था ने ही स्याह को सफेद कर दिखाया तो बेचारी पुलिस और सीबीआई की क्या औकात । बहरहाल, विकीलीक्स के खुलासे ने नोट की गड्डियां लहराने वाले भाजपाई सांसदों को क्लीनचिट दे दी । कम से कम वे गुनहगार नहीं थे । जो समाजवादी गुनाहगार थे वे आज भी कांग्रेस की ऑंखों के तारे बने हुये हैं । अमर सिंह तो अपने किये की सजा पा गये । कहते हैं भयंकर पाप की सजा मिलते देर नहीं लगती । दलाली की वार्ता चलाने वाले रेवती रमण सिंह सजा पाने वालों की कतार में हैं । उन्हें भी देर सवेर करनी का फल भुगतना ही पड़ेगा । मुलायम सिंह सजा भुगत रहे हैं । केन्द्र सरकार की नजरे इनायत से वे अभी तक आय के ज्ञात स्रोतों से ज्यादा सम्पत्ति इकट्ठी करने के मामले में बचते रहे हैं । बकरे की मॉं कितने दिन खैर मनायेगी । समाजवाद के नाम पर देश में माफियातंत्र चलाने वाले किसी दिन बेनकाब होंगे । लोकतंत्र के वोटरों के हाथ में ऊपर वाले की लाठी है, यह चलती है तो इसमें आवाज नहीं होती ।
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गरज यह कि विकीलीक्स के खुलासे पर सवालिया निशान लगा कर कांग्रेस बहुत दिन तक बेपरदा होने से बच नहीं सकती । एक प्रधानमंत्री ने देश की साख बचाने के लिये सोने की खेप गिरवी रखी थी, कांग्रेसियों ने तो देश की सम्प्रभुता को ही अमरिका के हाथ गिरवी रख दिया । चन्द्रशेखर सोने की खेप गिरवी रखने के लिये मजबूर थे, कांग्रेस के सामने कोयी मजबूरी नहीं थी । जिस पार्टी का बीज ही गुलामी के माहौल में बोया गया हो वह ताउम्र गुलाम रहने मे ही अपनी शान समझती है । विकीलीक्स खुलासे का अमरीकी सरकार ने भी खण्डन नहीं किया । उसका कहना है कि ऐसे गोपनीय सरकारी दस्तावेजों के राज खुलने से अमरीका की छवि धूमिल हुयी है । अब इतना तो जाहिर हो गया कि हमारे महान लोकतंत्रात्मक गणराज्य की नकेल अमरीका के हाथ है । यूपीए सरकार की हालत देखकर तरस खाने के सिवाय और कुछ नहीं किया जा सकता ।
22.3.11
जग बौराना: लोकतंत्र की बकरमण्डी
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1 comment:
प्रिय मित्र,
सुप्रभातम्।देश की सम्प्रभुता को गिरवी रखने वाली कांग्रेस पर गालियोँ से सजी एक कविता डाल दिया है।आदरणीय नरेश जी को भी बता दीजिएगा।जय भारत, जय भारती॥
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