इस सदी का दूसरा दशक अपने साथ विभिन्न देशों में लम्बे समय से अपरिवर्तित सत्ता को बदलने तथा भ्रष्टाचार एवं अन्य सामाजिक बुराइयों को दूर करने की इच्छा शक्ति लेकर आया है | ट्यूनीशिया से शुरू हुई क्रांति की आग ने मिस्र, यमन, लीबिया आदि देशों में जनसामान्य की सत्ता परिवर्तन की चाह को साहस द्वारा पूरा करने की प्रेरणा दी | इनमें से कुछ देशों में ये क्रांतियाँ स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों से सफल हुई वहीँ कुछ राष्ट्रप्रमुखों ने दमन की नीति चलते हुए अभी तक सत्ता नहीं छोड़ी है |
अपने भारत देश में भी वर्तमान समय की सर्वप्रमुख समस्या भ्रष्टाचार जोकि हमारे देश को टेबल के नीचे से एवं लिफाफों के के अन्दर से महात्मा गाँधी के मुस्कुराते हुए चहरे के साथ खोखला कर रही है, के खिलाफ अप्रैल माह में अन्ना हजारे जी के नेतृत्व में सरकार के समक्ष लोकपाल विधेयक के प्रस्ताव के लिए आन्दोलन किया गया| सरकार द्वारा अन्ना की सभी प्रमुख मांगे मान लिए जाने के बाद यह अनुभव हो रहा था की इस बीमारी का प्राथमिक इलाज सही हो रहा है | परन्तु अब तो अन्ना ही यह कहने लगे हैं के सरकार ने हमारे साथ धोखा किया है |
अब इसके बाद जून में बाबा रामदेव अनशन पर बैठते हैं | वह व्यक्ति जिसने कई सालों से योग तथा प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद के प्रचार - प्रसार के द्वारा लाखों लोगों को स्वास्थ्य लाभ कराया है वह अब विदेशों से काले धन को देश में लाकर उसे राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने सहित अन्य कई राष्ट्रहित की मांगों को मनवाने के लिए रामलीला मैदान में अपने समर्थकों समेत अनशन पर बैठता है |
केंद्र सरकार बाबा रामदेव के प्रभाव और उनके समर्थकों की बड़ी संख्या को देखते हुए और अन्ना हजारे के अनशन के प्रभाव से सीख लेते हुए अनशन शुरू होने के एक दिन पहले बाबा रामदेव को मनाने के लिए अपने चतुर एवं कुटिल मंत्रियों को उनके पास भेजती है, बैठक के बाद यह बात सामने आती है की अधिकतर मुद्दों पर सहमति बन गयी है परन्तु सभी बातों को न माने जाने के कारण बाबा रामदेव अनशन करेंगे | अगले दिन पुनः बाबा और केन्द्रीय मंत्रियों में बातचीत होती है और शाम तक बाबा की सभी बातें मांग लिए जाने की सूचना प्राप्त होती है लेकिन साथ ही साथ बड़े ही नाटकीय रूप से एक चिट्ठी प्रकट होती है जिसमें बाबा रामदेव द्वारा अनशन शुरू करने के एक दिन पहले ही 2-3 दिन के के अन्दर ही आन्दोलन ख़त्म करने की घोषणा सरकार के समक्ष की जाती है |
पिछले एक हफ्ते से चल रहे सभी नाटकीय एवं नकारात्मक घटनाक्रम का मूल यह चिट्ठी ही है | हांलाकि यह बात तो निश्चित है बाबा रामदेव अपनी बाहरी वाणी के द्वारा जितने ईमानदार, एवं आदर्श व्यक्तित्व होने की बात करते हैं अपनी मन की वाणी में वे वैसे नहीं है तभी तो उनके खिलाफ बहुत सी बातें उठती है परंतु फिर भी उन्होनें एक अच्छे कार्य के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए हैं | ऐसे में बाबा के साथ केंद्र सरकार का ऐसा बर्ताव निःसन्देह अंग्रेज़ जमाने की याद दिलाता है | जहां सिब्बल जैसे अनुभवी एवं कुटिल मंत्रियों का समूह हो वहाँ बाबा का उनके बहकावे में आकर चिट्ठी दे देना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं है | लेकिन इस चिट्ठी की घटना ने इस संगठित आन्दोलन को पूरी तरह से बिखेर दिया है, इतिहास में ऐसी अनेक संस्मरण हैं जब किसी एक घटना ने पूरे आन्दोलन को नाकाम कर दिया हो | भारतीय इतिहास में 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है, इस क्रांति का तत्कालीन कारण चर्बीयुक्त कारतूस थे जिसके कारण सैनिकों में असंतोष हो जाने के कारण क्रांति नियत समय के पहले ही शुरू हो गयी | क्रांति का नियत समय से पहले शुरू होना भी क्रांति के असफल होने के प्रमुख कारणों में से एक था | इसी प्रकार भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई लड़ाई भी चिट्ठी प्रकरण के बाद से दिशाहीन हो गयी है |
बाबा रामदेव एवं सरकार की मंशा क्या है और कौन कितना दोषी है, इन विचारों को छोड़ते हुए हमें ये सोचना चाहिए 4-5 तारीख की दरम्यानी रात को जो भी हुआ वह कितना सही था | यदि बाबा ने सरकार के साथ धोखा किया था तो सरकार को तार्किक बिन्दुओं को आधार बना कर बाबा पर कार्यवाही करनी चाहिए थी | परन्तु सरकार ने बाबा का समर्थन करने वाले हजारों लोगों को बेरहमी के साथ रामलीला मैदान के पंडाल से बाहर करवा दिया | वे न तो सरकार की चालाकी समझते थे और न ही बाबा रामदेव की चालाकी को, वे तो मात्र इस आशा में अनशन में बैठे थे की इन मांगों को मान लिए जाने उनका जीवन बेहतर होगा और हम नई पीढ़ी को एक अच्छा भविष्य देकर जायेंगे | बाबा रामदेव के समर्थक देश के अलग - अलग भागों से आये थे इसलिए ऐसे बहुत कम खुशनसीब लोग ही रहे होंगे जिनका घनिष्ठ परिचित दिल्ली में रहा हो और वे वहां आसरा पा सके हों |ऐसे में आंसू गोले और डंडों की मार झेलने के बाद निश्चित ही वह रात उनके लिए बहुत ही भयावह रही होगी |
सरकार और दिल्ली पुलिस इस मामले में बहुत ही बचकाने से तर्क दे रही है | इस घटना के बाद सरकार के सभी मंत्री रामदेव बाबा को गलत साबित करने में जुट गए हैं | लेकिन सर्वाधिक चिंतनीय बात तो यह है की सात दिनों से अनशन पर बैठे बाबा के गिरते स्वास्थ्य के बावजूद सरकार आँख मूंदे बैठी है |
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