सुन सको तो सुनो नारी का संताप सुनो
लक्ष्मण ने उर्मिला को छोड़ा भात्र प्रेम के लिए कभी
उतरा भी ना था हाथों से, मेहंदी का रंग अभी
क्या गलती थी उसकी उसने प्रेम कि रीत निभाई थी
पर रघुवंशियों को उस पर तनिक दया ना आई थी
पति वियोग में लुटा दी उसने जवानी सारी
गर रावन था अत्याचारी तो उर्मिला भी थी अत्याचारों की मारी....
सुकुमारी उर्मिला के, मन की करुण पुकार सुनो
सुन सको तो सुनो नारी का संताप सुनो...
चली पति के साथ वन में तब सुकुमारी सीता भी थी
जनक के घर जन्मी राजकुमारी पुष्प बेल सी प्रीता ही थी
रावण कि वाटिका में रहकर भी किया पत्नी धर्म का पालन
एक धोबी के कहने भर पर छोड़ना पड़ा घर आँगन
मर्यादा पुरुषोत्तम कि पत्नी होने का दाम चुकाया था
सारा जीवन सीता माँ ने वन में ही तो बिताया था
निर्जन में ,अकेलेपन में गूंजती सीता कि चीत्कार सुनो
सुन सको तो सुनो नारी का संताप सुनो...
वैदेही ने अपने मन को पांच पतियों में बाटा था
अपने को सही कहने वाला सारा समाज तब कहाँ था ?
माँ ने अनजाने में कह दिया पांचो भाई बाँट लो
पत्नी को पांचो ने बांटा ये कैसा हिस्सा - बांटा था ?
पांच पति मिलकर भी तब ना उसकी लाज बचा पाए
थे दुर्बुद्धि या मुर्ख जो पत्नी का दाव लगा आए
अपनी अस्मिता के लिए रोती पांचाली के मन कि बात सुनो
सुन सको तो सुनो नारी का संताप सुनो...
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2 comments:
achchha hai |
dhanyawad ravikar ji
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