बहुलवाद का भारत में एक महान परम्परा रहा है । और हम भारतीयों के लिए कोई नयी चीज नहीं है | हमारा इतिहास बहुत से ऐसेपरम्पराओ से भरा पड़ा है | भला हम वसुधैव कुटुम्बकम को कैसे भूल सकते है ये उस समय कहा गया था जब सारी दुनिया सभ्यता की ककहारा पढ़ रही थी तभी से हमने सारे विश्व को एक परिवार माना था | प्राचीनभारत में भले ही वैदिक धर्म मुख्य धर्म थालेकिन समय के साथ कितने ही हमारे महापुरुषों ने अपनी अपनी विचारधाराओ को लोगो के सामने रखा है और वो नए धर्म कोहमने हमेशा स्वागत किया है और कई राजाओ ने तो इन्हें संरक्षित घोषित कर रखा था |
प्राचीन भारत में जब वैदिक धर्म अपने उत्कर्ष पर था तभी भारत में दो नए धर्मो का उदय हुआ और वो आगे चलकर पुरे दक्षिणऔर पूर्व एशिया में फ़ैल गया यह वही समय था जब यूनान में सुकरात और येरुसलम में महात्मा यीशु को अपने नए विचारधाराओकी कीमत जान दे कर चुकानी पड़ी | भारत बहुत से धर्मो के लिए आश्रय भी साबित हुआ और दुनिया के तकरीबन सारे धर्म यहाँएक साथ शांति के साथ मनाया जाता था | चाहे वो यहूदी धर्म हो या महर्षि जरथुस्त्र के द्वारा पारसी धर्म हो सभी धर्म भारत आयेऔर कभी भी इन धर्मो ने यहाँ प्रतिरोध या दमन का सामना नहीं करना पड़ा | फारस में जब इस्लामिक धर्म अपने उदय पर था तबवह के पुराने पारसी धर्म का जबरदस्त हिंसक दमन हुआ और कुछ पारसी अपने जहाजो पर सवार होकर गुजरात और महाराष्ट्र मेंशरण लिया और ये धर्म आज अपने मूल स्थान इरान से बिलुप्त होने के कगार पर है लेकिन भारत में यह धर्म अभी भी फल फुलरहा है|
बहुत सारे लोगो का मानना है की इस्लाम भारत में उस समय आया जब मोह्हमद - बिन कासिम ने सिंध को फतह किया था लेकिन ये सरासर गलत बात है इस्लाम उससे पहले ही भारत आ चूका था और दक्षिण भारत के इलाके खास कर केरल में यह पहले ही अरब व्यापारियों के माध्यम से आ चूका था | और उसके बाद अरब और तुर्क शासक
अपने साथ इस्लाम को यहाँ लाये और यहाँ भी इस्लाम खूब फला फुला | धर्म ही नहीं हमने तो दुसरो के कलाओ का भी बहुत क़द्र किया है इसी लिए आपको अगर उतर भारत में अफगान और ईरानी स्थाप्य कला मिलेगी तो दक्षिण भारत के कुछ स्मारक आपको रोमन स्थाप्य कला की झलक दिखाते है |
अपने साथ इस्लाम को यहाँ लाये और यहाँ भी इस्लाम खूब फला फुला | धर्म ही नहीं हमने तो दुसरो के कलाओ का भी बहुत क़द्र किया है इसी लिए आपको अगर उतर भारत में अफगान और ईरानी स्थाप्य कला मिलेगी तो दक्षिण भारत के कुछ स्मारक आपको रोमन स्थाप्य कला की झलक दिखाते है |
वर्तमान में भी भारत की छवि पुरे विश्व में एक ऐसे भारत की है जहा भिन्न भिन्न समुदाय, धर्मं के लोग एक साथ शांति और भाईचारे के साथ रहते है और आपको यहाँ हर धर्मं के प्रार्थना स्थल मिल जायेंगे अभी हाल में ही संपन्न हुए राष्ट्रमंडल खेलो में जहाप्राचीन भारत की झलक योग और ताप द्वारा दिखाया गया वही मध्य कल का झलक सूफी नृत्यों और गान के जरिये भी सारेविश्व को यहाँ के महान सभ्यता का सन्देश दिया गया | अनेक संस्कृतियों और भाषाओ के चलते हमारे देश में अनेकता में एकतावाली बात दिखती है और बहुलवाद का ऐसा सुंदर उदहारण शायद ही कही और मिले
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4 comments:
क्या इसे भीड़ वाद भी कह सकते हैं ! (जो भरात में है , क्योकि इसमें कोई अनुशाशान नहीं है .
देखिये सर जी हम इसे कुछ भी कह सकते है चूँकि भीड़ की परिभाषा भी कुछ ऐसा ही होता है की बिना दिमाग या बिना उदेश्य की इक्कठी संख्या और दोष इसमें भीड़ की नहीं बल्कि उनकी हैं जिनको चुन के हम भीड़ वो भी बिना दिमाग की भीड़ होने का संज्ञा हासिल करते है
में आपसे सहमत हूं ओझा जी
नमस्ते जी
बहुत बहुत धन्यावद और कृपया आप मुझे जी न बोले मैं आपसे बहुत ही छोटा हूँ आपके बेटे के जैसा सो आप आगे से जी न बोले
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