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9.8.11

चुप-चुप है .............. | कविता

चुप-चुप है .............. | कविता:
चुप-चुप है मौन प्यार ,खिल खिल जाए बहार
जब जब होवे दीदार ,तुम बस कोई नहीं


ये क्या मौसम का हाल ,क्या है ये वक्त की चाल
क्यों है इश्क में बेहाल ,हम-तुम और कोई नहीं


कशमकश मेरे मन में,समाई हो तुम धड़कन में
टूट न जाए ये बंधन ,तेरे बगैर बस कोई नही


धरती चाँद और ये गगन ,कर दूं मैं तुझे समर्पण 
सूना था दिल का आँगन ,तुम-ही-तुम कोई नही 

2 comments:

Dr.R.Ramkumar said...

bat kahte kahte chup ho gaye.
janab khan kho gaye ?

संध्या शर्मा said...

धरती चाँद और ये गगन ,कर दूं मैं तुझे समर्पण...

बहुत खूब... सुन्दर रचना...