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4.8.11

मेरे हालात .........|


रात ढलती गयी
श्याह होता रहा
याद में उन दिनों के
मै रोता रहा
अब तो कहने को कोई
न अपना रहा
अपनी पलकों को मै तो
भिगोता रहा
रात ढलती गयी ..............रोता रहा
मै गुनाहगार हूँ
लोग कहते है ये
पर हुआ क्या है मुझसे
बताये कोई
हर फकत हर घड़ी
अपनी तन्हाई को
मोतियों कि लड़ी में
पिरोता रहा
रात ढलती गयी..........रोता रहा |
सारा दुश्मन जमाना है
आब तो मेरा
हूँ लुटेरा ये मुझपर तो
इल्जाम है
मुझको इल्जाम देकर
वो खुश है बहुत
लोग हँसते रहे
और मै रोता रहा
रात ढलती गयी ..........रोता रहा |
मनीष पाण्डेय

2 comments:

ana said...

bahut sundar prastuti

Roshi said...

sunder prastuti...