अमृतरस ब्लॉग से रात में अक्सर रात में अक्सर मेरी खिडकी से एक साया उतर कमरे की हवा में घुल जाता है| आने लगती है गीली माटी की गंध और आँखे मेरी फ़ैल जाती है छत पर जहाँ से अपलक निहारता है मुझे मेरा वृद्ध स्वरुप| रात में अक्सर जब लोग घरों के दरवाजे बंद कर देते हैं तब खुलता है एक द्वार कलमबद्ध करता है कुछ जंग खाए कुंद दिमाग के जज्बात और मलिन यादों के चलते जो अक्सर रह जाते हैं शेष | रात में अक्सर याद आता है वो सफर जो सफर नहीं था था एक ठहराव खुशियों का खिलखिलाती ताज़ी कुछ हंसी जैसे किसी काले टोटके ने रोक ली हो और मुस्कुराता चेहरा धूमिल हो डूब जाता है आँखों के सागर में | रात में अक्सर जब शिथिल हो कर गिर जाती है थकान शांत बिस्तर में रात उंघने लगती है तब पर तन्हाइयां उठ कर जगाने लगती हैं और कानाफूसी करती है कानों में नीलाभ चाँद देर रात तक खेला करता तारों से| द्वारा -डॉ नूतन डिमरी गैरोला सभी चित्र नेट से … उन सभी का आभार जिनकी ये पेंटिंग / तस्वीरें हैं .. "अमृतरस" ब्लॉग से डॉ नूतन डिमरी गैरोला |
4.8.11
रात में अक्सर - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
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2 comments:
ज़िन्दगी का यथार्थ दर्शाती शानदार अभिव्यक्ति।
very nice .
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