अरुणकांत जोगी भिखारी तुम हो कौन অরুণকান্তি কেগো যোগী ভিখারী।
नीरव हास्य लिए तुम द्वार पर आये নীরবে হেসে দাঁড়াইলে এসে
प्रखर तेज तव न जाए निहारी প্রখর তেজ তব নেহারিতে নারি।
रास-विलासिनी मई आहिरिणी রাস-বিলাসিনী আমি আহিরিণী
तव श्यामल-किशोर-रूप ही पहचानूं শ্যামল-কিশোর-রূপ শুধু চিনি
आज अम्बर में ये कैसा ज्योति पुंज है पसरा অম্বরে হেরি আজ একি জ্যোতি-পুঞ্জ?
हे गिरिजापति गिरिधारी तुम हो कहाँ হে গিরিজাপতি! কোথা গিরিধারী।
इस गीत को सुनने के लए यहाँ चटकाएं
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