यहां हर रात उजाले से विदा लेती है,
हर इक राह मुसाफिर से जुदा होती है।
सुबह से शाम तक तनहाइयों का मेला है,
कहीं खामोशियां आकाश से बरसती हैं।।- अतुल
हर इक राह मुसाफिर से जुदा होती है।
सुबह से शाम तक तनहाइयों का मेला है,
कहीं खामोशियां आकाश से बरसती हैं।।- अतुल
1 comment:
Dude, you you must be a writer. Your text is so great.
From Great talent
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