गीता - निराशा और असफलता से मुक्ति की गाथा
हम दौ बाते सहने में असमर्थ होते है -पहली वस्तु दु:ख और दूसरी असफलता .इन दोनों ही परिस्थियों में
व्यक्ति टूट जाता है ,उसे हर अगला कदम हताशा से भरा लगता है .जब भी व्यक्ति हताश होता है तो उसे
दुनिया के सभी रंग फीके लगते है ,उसे अपने जीने का मौह भी नहीं रहता है.
निराशा और असफलता में साम्यता - व्यक्ति के निराश होने और असफल होने के विभिन्न कारण हो
सकते हैं लेकिन इन परिस्थियों में साम्यता भी है .जब भी हम इन परिस्थितियों से गुजरते है तब हमें
अपना लक्ष्य बहुत दूर लगता है ,हमारी चेतना कुंठित हो जाती है,विवेक काम करना बंद कर देता है ,मन
ऐसे समय में आँसू ही बहाता है .इन परिस्थियों से सहज रूप से कैसे बचे ?किन सिद्धांतो से जिए की हम
पर बुरा समय अपना प्रभाव न दिखा पाये. इसका सही उत्तर है" श्रीमद भगवद गीता "
हम दौ बाते सहने में असमर्थ होते है -पहली वस्तु दु:ख और दूसरी असफलता .इन दोनों ही परिस्थियों में
व्यक्ति टूट जाता है ,उसे हर अगला कदम हताशा से भरा लगता है .जब भी व्यक्ति हताश होता है तो उसे
दुनिया के सभी रंग फीके लगते है ,उसे अपने जीने का मौह भी नहीं रहता है.
निराशा और असफलता में साम्यता - व्यक्ति के निराश होने और असफल होने के विभिन्न कारण हो
सकते हैं लेकिन इन परिस्थियों में साम्यता भी है .जब भी हम इन परिस्थितियों से गुजरते है तब हमें
अपना लक्ष्य बहुत दूर लगता है ,हमारी चेतना कुंठित हो जाती है,विवेक काम करना बंद कर देता है ,मन
ऐसे समय में आँसू ही बहाता है .इन परिस्थियों से सहज रूप से कैसे बचे ?किन सिद्धांतो से जिए की हम
पर बुरा समय अपना प्रभाव न दिखा पाये. इसका सही उत्तर है" श्रीमद भगवद गीता "
गीता पर चर्चा से पहले हम यह समझ ले की असफलता क्यों मिलती है?
असफल होने के कारण -
१.कमजोर इच्छा शक्ति का होना -हमारे में प्रबल इच्छा होनी चाहिए ,जैसे अन्तरिक्ष में उपग्रह को स्थापित
करते समय उसकी उड़ान की तीव्रता प्रबल रखी जाती है .तोप से निकलने वाला गोला भी प्रबल गति के
कारण सटीक स्थान पर मार करता है ,ठीक इसी तरह इच्छा शक्ति भी प्रबल होनी चाहिये.
२.बार -बार बदलता लक्ष्य - हम जब अपना लक्ष्य तय करते है उसके बाद उसका पीछा करने में पूरी तरह
एकाग्र नहीं रहते ,थोड़ी सी भी लक्ष्य में बाधा दिखाई देने पर हम उस लक्ष्य को छोड़ नया लक्ष्य तय कर
लेते हैं जबकि होना यह चाहिये की लक्ष्य पर पहुँचने के लिए एक योजना के असफल होने पर दूसरी
योजना का क्रियान्वन .
३.विषय वस्तु पर कमजोर पकड़- हम गहन अध्यन के बिना ही किसी काम को शुरू कर देते हैं ,हम
प्राप्त सूचनाओं का विश्लेकष्ण नहीं करते हैं और विपरीत परिणाम प्राप्त करते हैं.
४.ढिंढोरा पीटना - आपकी योजना बहुत गुप्त रहनी चाहिये जब तक की आपका काम ख़त्म होने को
नहीं आ जाता ,मगर व्यक्ति अपने ही मन्त्र को अपनी ही योजना को बडाई मारने के लालच में उगल
देता है और असफल हो जाता है.
५.समय सीमा नहीं बनाना -व्यक्ति अपना लक्ष्य तय कर लेता है ,बढ़िया योजना बना लेता है और
क्रियान्वन भी शुरू कर देता है मगर समय सीमा नहीं रखने से समय ही उस योजना को चाट जाता है.
६.स्वयं का गलत मूल्यांकन -हर आदमी दूसरों का मूल्यांकन बहुत मितव्ययता से करता है मगर खुद
का मूल्यांकन बढ़ चढ़ कर करता है और मुझे सब कुछ आता है, का भ्रम पाल लेता है ,इस गलती का
परिणाम असफल बना देता है.
७.पूर्वाग्रह - व्यक्ति जो पूर्वाग्रह में जीता है ,मन ही मन प्रश्न करता है और मन ही मन से जो उसे उचित
लगे वह उत्तर गढ़ लेता है ,ऐसे व्यक्ति सत्य को परखना ही नहीं चाहते और असफल जीवन जीते हैं.
८.बिना विचारे काम करना - हम समय ,परिस्थिति ,स्थान ,सहयोगी और प्रतिस्पर्धी को समझे बिना
काम कर लेते हैं और असफल होकर रोते रहते हैं.
९.अनुत्साह और आलसीपन -जब भी हमारा उत्साह कमजोर पड़ जाता है या हम काम के प्रति सजग
नहीं रहते तब हम अवश्य ही काम बिगाड़ लेते हैं .
१०.अकर्मण्यता और टालमटोल - करने योग्य काम को नहीं करना और न करने योग्य काम करने से
या फिर कर्तव्य कर्म को टालते रहने से हम असफल हो जाते हैं .
कैसे सफलता की तरफ ले जाती है भगवद गीता
भगवद गीता निराशा से मुक्त कर देती है ,हर श्लोक अपने आप में परिपूर्ण है .महाभारत में कृष्ण सिर्फ
सारथि धर्म को ही निर्वाह करते हैं ,मतलब यह की यदि मनुष्य प्रबल आत्मविश्वास से कर्म करने के
पग भरता है तो प्रकृति उसका मार्गदर्शन करने के तैयार रहती है ,जरुरत है मजबूती से खडा होने की .
गीता "मेरापन " और " हमारा पन" यानि स्वार्थ तथा एकता की भावना के हानि और लाभ को दिखाती
है.गीता दैवीय गुणों के विकास का मार्ग दिखाती है .गीता कर्म के हर अंग की विवेचना तर्क संगत रूप
से करती है,गीता नीति को स्थापित करवाती है ,गीता अन्याय से लड़ने की शक्ति देती है ,गीता प्रेम के
रूप का सूक्ष्मता से वर्णन करती है .गीता सच्चे वैराग्य में जीना सिखाती है ,गीता मृत्यु के भय से
मुक्त करती है ,गीता निराशा को सहज ही तौड़ देती है .गीता कठिन परिस्थियों से संरक्षण करना सिखाती
है .गीता व्यवस्था सिखाती है .इतनी बड़ी कौरव सेना से जीतना कोई आसान काम नहीं था लेकिन सही
व्यवस्था से बड़े बड़ों पर काबू पाया जा सकता है .
गीता की व्याख्या ,टीका जरुर पढ़े .आप किसी भी धर्म के हो मगर जीवन को सच्चे अर्थ में जीना चाहते हैं
तो विभिन्न विद्वानों द्वारा की गयी गीता की व्याख्या को पढ़े ,समझे और अमल करे .सी राजगोपालाचारी
विनोबा,गांधी सभी दिग्गज स्वतंत्रता सेनानियों पर श्रीमद भगवत गीता का गहरा प्रभाव था
हम अपने अमूल्य ग्रन्थ का बार बार मनन करे और निराशा से मुक्त हो सफल जीवन जिये.
1 comment:
आपको गीता जयंती की हार्दिक बधाई.
आपसे गीता जी के विषय में कुछ मार्गदर्शन चाहता हूँ. यदि आपका संपर्क न. मिलेगा तो आपका बहुत बहुत कृपा .
अशोक गुप्ता
दिल्ली
९८१०८९०७४३
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