भड़ास के यशवंत सिंह के बारे में पढ़ कर ऐसा लगा की की जैसे कोई अपने ऊपर ही गंदगी फेंक कर अट्टहास कर रहा है , लिखने वाले प़र तरस भी आया और स्वनामधन्य सज्जन प़र हंसी भी आई , किसी को जानने के लिए उस से मिलने की ज़रूरत नहीं होती , उसके लेल्हन से रूबरू होना ही पर्याप्त होता है .
भड़ास की सामग्री ही भड़ास के बारे में बताने के लिए काफी होती है और साथ ही उसके संपादक के बारें में भी .
लेखक को लगता है की आज के समाचारपत्रों और चैनलों के बारे में अपर्याप्त ज्ञान है . की वो कैसे संचालित किये जाते है .
अगर भड़ास ने सहायता के नाम प़र कोई मदद ली भी तो कौन सा जुर्म किया , इस की तो भड़ास ने खुले आम अपील कर रखी है .
एक नेक काम करने वाले के रास्ते में ऎसी दिक्कतें पैदा करना , निहित स्वार्थ वालों के पसंदीदा शगल होता है .
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2 comments:
i agree with u
मुझे पता नहीं किस सन्दर्भ में ये बातें हो रही हैं.
पर में तो यशवंत जी का जबरदस्त फेन हूँ . और उनके इस कार्य से बहुत प्रभावित हूँ .
इस भड़ास से मुझे बहुत मित्र मिले हैं . तेजवानी जी उसमें सबसे ऊपर हैं.
उनकी वजह से मुझे अपनी भड़ास निकलने का एक मंच मिला है.
यशवंत जी हम खुल्ले में आपके साथ हैं .
अशोक गुप्ता
दिल्ली
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