जबसे तुमने मुह मोड़ा है
सूना सा हर त्यौहार रहा
जब प्रेम की कसमे टूट गई तो
सात वचनों का क्या आधार रहा ?
तुम्हरे संग सावन सावन था
तुम्हरे संग फागुन था फागुन
जब से विरहन का रंग चढ़ा
भाए न अब कोई मौसम
जब तेरे प्रेम का रंग नहीं तो
सिन्दूर का रंग उजाड़ रहा
जब प्रेम की कसमे टूट गई तो
सात वचनों का क्या आधार रहा ?
पूरी कविता पढने के लिए क्लिक करें
सूना सा हर त्यौहार रहा
जब प्रेम की कसमे टूट गई तो
सात वचनों का क्या आधार रहा ?
तुम्हरे संग सावन सावन था
तुम्हरे संग फागुन था फागुन
जब से विरहन का रंग चढ़ा
भाए न अब कोई मौसम
जब तेरे प्रेम का रंग नहीं तो
सिन्दूर का रंग उजाड़ रहा
जब प्रेम की कसमे टूट गई तो
सात वचनों का क्या आधार रहा ?
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1 comment:
तुम्हरे संग सावन सावन था
तुम्हरे संग फागुन था फागुन
जब से विरहन का रंग चढ़ा
भाए न अब कोई मौसम
जब तेरे प्रेम का रंग नहीं तो
सिन्दूर का रंग उजाड़ रहा
जब प्रेम की कसमे टूट गई तो
सात वचनों का क्या आधार रहा ?
बेहतरीन मार्मिक प्रसंग छूती रचना जीवन के जगत के .
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