why devotees also get problems ! भक्तों को भी कष्ट क्यों आते हैं .
आज कल मेरे मन में यह प्रश्न बहुत बार आता है .
भक्तों को भी कष्ट क्यों आते हैं .
कई लोगों से बात हुई ,
कई ने कहा : भगवान परीक्षा लेता है ,
इसमें दम नहीं , क्योंकि परीक्षा तो वो लेता है जो जनता नहीं है, मगर भगवान तो सर्वज्ञ हैं .
कई कहते हैं पूर्व जन्मों के कर्म के कारण .
इसमें दम नहीं , क्योंकि हमारे शाश्त्रों के अनुसार , भगवान का नाम लेते ही सारे, करोडो जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं .
और प्रहलाद , पांडव जैसे तो केवल भक्त हैं , भगवान के नजदीक् हैं , फिर भी कष्ट क्यों !
और चलो कारण पता नहीं चल पा रहा तो , यदि कोई उपाय हो तो भी बताएं .
क्या कोई मेरी सहायता करेगा !
हरी बोल
जय श्री कृष्ण
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कुछ समय पहले भी ये अपील लिखी थी :
प्रिय मित्रों ,
अभी , एक ग्रुप
why lord gives lot of pain out of "His Mercy"
यानि भगवान इतना कष्ट क्यों देते हैं , कृपालु होकर भी ,
कुछ लोगों ने अपने अपने विचार लिखे, जो अंग्रेजी में हैं , फिर भी मैं वो विचार यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ.
इस विषय में मेरे कुछ विचार निम्नलिखित हैं.
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दुःख के बारे में मेरे विचार :
कई बार मेरा भी मन किया कि एस प्रश्न पर भगवान को घेरा जाये .
पर जब भी इन कष्टों और उसकी कृपा में तुलना कि तो कष्टों में भी कृपा के दर्शन हुए , और मुकदमा सुनने से पहले ही ख़ारिज हो गया .
फिर भी ये तो जानना ही पड़ेगा कि आखिर दुःख हैं क्या ?
हमारे मन के विपरीत जो भी बात हो , वो हमें दुःख नज़र आती है ,
बच्चे को चोकलेट न दिलाएं तो दुःख है , जबकि माता-पिता को मालूम है कि कितनी चोकलेट कब दिलानी है .
कई बार किसी के कार्य को देख कर हमें उस पर दया व् दुःख होता है : बच्चे का व्रण कटवाने के लिए
माँ बच्चे को डाक्टर के पास ले जाती है और व्रण कटते समय बच्चे का दुःख देखा नहीं जाता .
बच्चे के लिए माँ रात में उठ कर खाना बनाती है और हमें लगता है ये तो
माँ के प्रति अत्याचार है , मगर वह अत्याचार तो नहीं होता .
इन परिपक्ष्य में तो दुःख के मायने पहले ढूढने पड़ेंगे , क्योकि दुःख-सुख तुलनात्मक हैं.
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मगर मेरा खुद का supplementary (पूरक प्रश्न ) यह है , कि
चलो औरों को तो विभिन्न कारणों से कष्ट मिलता है , पर भक्तों को भी क्यों .
जैसे प्रहलाद गर्भ से ही भक्त थे , देवकी , वासुदेव उनके माता पिता थे , द्रोपदी उनकी संबन्धिनी भी थी
पांडव उनके मित्र एवं संबंदी थे , और तो और सुदामा तो उनके हाथ में हाथ दाल कर घूमते थे , क्या भगवान का
स्पर्श भी उनके कष्ट दूर करने में असमर्थ था .
इस ग्रुप के मोडरेटर ने बहुत सुंदर बात लिखी है कि कृपया वही लोग इस वार्ता में शरीक हों जो हिंदू धर्म के
अनुसार , शाश्त्रनुसार ही लिख सकते हों .
मन चाही बातें तो हज़ार , लाख हैं .
भक्तों को भी कष्ट क्यों आते हैं .
कई लोगों से बात हुई ,
कई ने कहा : भगवान परीक्षा लेता है ,
इसमें दम नहीं , क्योंकि परीक्षा तो वो लेता है जो जनता नहीं है, मगर भगवान तो सर्वज्ञ हैं .
कई कहते हैं पूर्व जन्मों के कर्म के कारण .
इसमें दम नहीं , क्योंकि हमारे शाश्त्रों के अनुसार , भगवान का नाम लेते ही सारे, करोडो जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं .
और प्रहलाद , पांडव जैसे तो केवल भक्त हैं , भगवान के नजदीक् हैं , फिर भी कष्ट क्यों !
और चलो कारण पता नहीं चल पा रहा तो , यदि कोई उपाय हो तो भी बताएं .
क्या कोई मेरी सहायता करेगा !
हरी बोल
जय श्री कृष्ण
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कुछ समय पहले भी ये अपील लिखी थी :
जब भगवान कृपालु हैं तो दुनिया में कष्ट क्यों
प्रिय मित्रों ,
अभी , एक ग्रुप
gita-talk@yahoogroups.com में बड़ा ही दिमाग को आन्दोलित कर देने वाला प्रश्न पढ़आ |
यानि भगवान इतना कष्ट क्यों देते हैं , कृपालु होकर भी ,
इस विषय में मेरे कुछ विचार निम्नलिखित हैं.
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दुःख के बारे में मेरे विचार :
कई बार मेरा भी मन किया कि एस प्रश्न पर भगवान को घेरा जाये .
पर जब भी इन कष्टों और उसकी कृपा में तुलना कि तो कष्टों में भी कृपा के दर्शन हुए , और मुकदमा सुनने से पहले ही ख़ारिज हो गया .
फिर भी ये तो जानना ही पड़ेगा कि आखिर दुःख हैं क्या ?
हमारे मन के विपरीत जो भी बात हो , वो हमें दुःख नज़र आती है ,
बच्चे को चोकलेट न दिलाएं तो दुःख है , जबकि माता-पिता को मालूम है कि कितनी चोकलेट कब दिलानी है .
कई बार किसी के कार्य को देख कर हमें उस पर दया व् दुःख होता है : बच्चे का व्रण कटवाने के लिए
माँ बच्चे को डाक्टर के पास ले जाती है और व्रण कटते समय बच्चे का दुःख देखा नहीं जाता .
बच्चे के लिए माँ रात में उठ कर खाना बनाती है और हमें लगता है ये तो
माँ के प्रति अत्याचार है , मगर वह अत्याचार तो नहीं होता .
इन परिपक्ष्य में तो दुःख के मायने पहले ढूढने पड़ेंगे , क्योकि दुःख-सुख तुलनात्मक हैं.
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मगर मेरा खुद का supplementary (पूरक प्रश्न ) यह है , कि
चलो औरों को तो विभिन्न कारणों से कष्ट मिलता है , पर भक्तों को भी क्यों .
जैसे प्रहलाद गर्भ से ही भक्त थे , देवकी , वासुदेव उनके माता पिता थे , द्रोपदी उनकी संबन्धिनी भी थी
पांडव उनके मित्र एवं संबंदी थे , और तो और सुदामा तो उनके हाथ में हाथ दाल कर घूमते थे , क्या भगवान का
स्पर्श भी उनके कष्ट दूर करने में असमर्थ था .
इस ग्रुप के मोडरेटर ने बहुत सुंदर बात लिखी है कि कृपया वही लोग इस वार्ता में शरीक हों जो हिंदू धर्म के
अनुसार , शाश्त्रनुसार ही लिख सकते हों .
मन चाही बातें तो हज़ार , लाख हैं .
1 comment:
sukh dukh ko samaan maankar jo vyakti nishkaam bhaav se apne sabhi karm ishwar ko samarpit karte huye karta hai usko koi kasht nahi hota hai . sadhaaran bhakt aisa nahi kar paata aur wo dukh ko dukh maan baithta hai aur sukh se prasann ho jaata hai . geeta ka yahi saar hai.
likha hai -
sukh dukhe same kritwa
laabhaalaabhau jayaajayau .
tato yuddhaay yujyasw
naiwam paapamavaapsyasi ..
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