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10.3.12

Osteogenetic Imperfacta


कल दोपहर की बात है श्री अशोक गुप्ता जी का फोन आया। वे उनके गुरूजी से मिलने बीकानेर जा रहे थे। उनके साथ कोई सज्जन भी सफर कर रहे थे जिनकी बेटी को ऑस्टियोजेनेटिक इम्पर्फेक्टा रोग था। उन्होंने पूछा कि क्या इसमें अलसी काम करेगी। मैंने कहा कि हड्डियों को ताकत तो देगी ही सही। ऐसा मुझे किसी ने कहा था कि बीकानेर में कोई गुरूजी मेरे परचे बांट रहे हैं। इसलिए मैंने गुप्ताजी से यह भी कहा कि शायद आपके गुरूजी वहां अलसी का प्रचार कर रहे हैं और मेरे ब्रोचर बांट रहे हैं। बात सच निकली और बीकानेर पहुँच कर उन्होंने परम आदरणीय गुरूजी से मेरी बात भी करवाई और आशीर्वाद भी दिलवाया। आज सुबह में सोच रहा था कि स्तन कैंसर पूरा हो गया अब क्या लिखूँ, कुछ समझ नहीं आ पा रहा था और ऑस्टियोजेनेटिक इम्पर्फेक्टा ही लिख डाला जो मैं गुप्ताजी को ही समर्पित करता हूँ।  

ऑस्टियोजेनेटिक इम्पर्फेक्टा
ऑस्टियोजेनेटिक इम्पर्फेक्टा एक विरला रोग है। रोग नहीं बल्कि एक अभिशाप है और जीवन मुसीबतों की पिटारा बन कर रह जाता है। फिर भी साहसी लोग जीवन को सार्थक बना ही लेते हैं और हंसते-हंसते जीते चले जते हैं। भंगुर अस्थि रोग (Brittle Bone Disease) या लोबेस्टिन सिंड्रोम के नाम से  भी जाने वाला यह  रोग जन्मजात अस्थि रोग है। यह रोग टाइप-1 कॉलेजन प्रोटीन को बनाने वाले जीन में आई विकृति के कारण होता है जो अस्थि निर्माण के लिए आवश्यक होता है। अधिकतर रोगी इस विकृत जीन को  अपने माता-पिता से प्राप्त करते हैं, लेकिन कुछ में अन्य कारणों से जीन बिगड़ जाता है।

प्रमुख लक्षण
इसका मुख्य विकार हड्डियों का कमजोर होना है, जिसके कारण कई तरह के अस्थि-विकार होते हैं। रोगी प्रायः छोटे और ठिगने होते हैं।  मुख्य लक्षण निम्न होते हैं।
·         आँखों का श्वेतपटल (sclera) नीला या सलेटी ( blue-gray sclera) हो जाता है– यह रोग श्वेतपटल के पतला होने के कारण अन्दर की नीली शिराओं की हल्की छाया उसे नीली-सलेटी रंगत प्रदान देती है। 
झील सी नीली विकृत आँखें
·         अस्थि-विभंजन  अर्थात हड्डियों का बार-बार टूटना
·         बहरापन   (deafness)
·     हाथों और पैरों की हड्डियां में झुकाव या टेढ़ापन आ जाना
·         कूबड़ निकल आना (Kyphosis)
·   मेरुदण्ड का लहर खा जाना या टेढ़ा-मेढ़ा हो जाना (Scoliosis)
मेरुदण्ड का लहर खा जाना
टाइप-1 कॉलेजन अस्थि-बन्ध (ligaments) के बनने में भी मदद करता है, इसलिए जोड़ ढीले पड़ जाते हैं, पैर टेढ़े-मेढ़े हो जाते है। दांतों का विकास भी ठीक नहीं हो पाता है और दांत कमजोर व भंगुर हो जाते हैं।  
श्रेणियां
इस रोग की आठ श्रेणियां वर्णित की गई हैं।
श्रेणी I
टेढ़े-मेढ़े पैर

इसमें कॉलेजन तो सामान्य होता है परन्तु बनता कम मात्रा में है। यह थोड़ा कम गंभीर रोग है, धीरे-धीरे बढ़ता है, न रोगी मरने देता है और न खुशी से जीने देता है। इसमें किशोरावस्था तक हल्के से आघात से बार-बार अस्थि-विभंजन (Bone Fracture) होता रहता है। लेकिन युवावस्था के बाद हड्डियों के टूटने का क्रम बहुत कम हो जाता है। ढीले जोड़, मेरुदण्ड का लहर खा जाना, ठिगनापन, तिकोना चेहरा, पेशियां कमजोर पड़ना, आंखों का बाहर निकलना, आँखों का श्वेतपटल नीला पड़ना, श्रवण-ह्रास, कमजोर और भगुर दांत अन्य प्रमुख लक्षण हैं।

श्रेणी II

यह बहुत गंभीर रोग है। इसमें विकृत टाइप-1 कॉलेजन बहुत कम  मात्रा में बनता है। इसके अधिकांश रोगी एक साल में ही श्वसन-पात (Respiratory_failure) या मस्तिष्क में रक्तस्राव के कारण मर जाते हैं। इसमें फेफड़े भी विकसित नहीं हो पाते हैं और कई श्वसन-विकार होते हैं। बार-बार अस्थि-विभंजन और कई तरह की विकलांगता होती है।

श्रेणी III

कमजोर, टूटे और भंगुर दांत

यह भी गंभीर रोग है। इसके रोगी जल्दी मृत्यु को प्राप्त नहीं करते हैं। इसमें विकृत टाइप-1 कॉलेजन  पर्याप्त मात्रा में बनता है।  इसके प्रमुख लक्षण बार-बार अस्थि-विभंजन, ढीले जोड़, मेरुदण्ड का लहर का जाना, विकलांगता, बौनापन, तिकोना चेहरा, पेशियां कमजोर पड़ना, आंखों का बाहर निकलना, स्क्लीरा का नीला पड़ना, श्रवण-ह्रास, कमजोर और भगुर दांत आदि हैं। कभी-कभी तो शिशु में जन्म के समय ही हड्डियां टूटी मिलती हैं। कई बार रोगी का जीवन पहियेदार कुर्सी तक सिमित होकर रह जाता है।

श्रेणी IV

बेडौल बेशक्ल पैर

उग्रता में यह रोग श्रेणी I और श्रेणी III के बीच का माना गया है। इसमें भी विकृत टाइप-1 कॉलेजन  पर्याप्त मात्रा में बनता है।  इसके लक्षण भी वही हैं।  लेकिन स्क्लिरा के रंग में बदलाव नहीं आता है।

श्रेणी V

यह रोग श्रेणी IV के समान ही है लेकिन इसमें विशिष्ट प्रकार के " mesh-like " ऊतक होते हैं।    

श्रेणी VI

यह रोग श्रेणी IV के समान ही है लेकिन इसमें विशिष्ट प्रकार के "fish scale" ऊतक होते हैं।    

तिकोना चेहरा
निदान और परीक्षण
·         आँखों की स्क्लीरा  में नीलापन
·         अस्थिक्षय ( osteoporosis) होने से बार-बार छोटे से आघात से हड्डी टूट जाना
·         त्वचा की जीवोति जांच (Biopsy)
·         खून का डी.एन.ए. परीक्षण
जटिलताएं
·         श्रवण ह्रास (श्रेणी और III)
·         हृदयपात (श्रेणी II)
·         श्वसन विकार और निमोनिया - छाती की भित्ती और अस्थियों  में आये विकार के कारण
·         सुषुम्ना नाड़ी और मस्तिष्क-स्तंभ विकार (Spinal cord or brain stem problems)
·         स्थाई विकलांगता
उपचार
कुल मिला कर इस रोग का कोई स्थाई उपचार नहीं है। सिर्फ दर्द और अन्य जटिलताओं को कम करने का प्रयास किया जाता है। बिसफोस्फोनेट्स प्रजाति की दवाओं से हड्डियां मजबूत होती हैं और हड्डियां को दर्द और टूटने जैसे लक्षणों में फायदा होता है। इसके लिए शिरा द्वारा पेमिड्रोनेट दिया जाता है। मात्रा  4.5-9 मिलिग्राम/किलो/वर्ष के हिसाब से रखी जाती है। मुँह से दी जाने वाली बिसफोस्फोनेट्स दवाओं के नतीजे ज्यादा अच्छे नहीं रहे हैं। राइजड्रोनेट से कुछ उम्मीद जगी है। गर्भावस्था में भ्रूण में अस्थिमज्जा प्रत्यारोपण पर भी कार्य चल रहा है।
उपचार में कैलशियम, विटामिन-डी और ओमेगा-3 वसाअम्ल बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। इनके महत्व को कभी नजर अन्दाज नहीं करना चाहिये।
व्यायाम और फिजियोथेरेपी से बहुत लाभ मिलता है और पेशियां मजबूत होती हैं। गंभीर रोगियों की हड्डियों में धातु की छड़ियां डाल दी जाती हैं, जिससे हड्डियों को सम्बल मिलता है और उनमे झुकाव, टेढ़ापन या टूटने का खतरा कम हो जाता है। ब्रेस भी हड्डियों और जोड़ों को सहारा देते हैं। विकलांगता को ठीक करने के लिए कई तरह के शल्य किये जाते हैं। जैसे-जैसे रोगी बड़ा होता है, शारीरिक विकृति के कारण कई तरह की दिक्कतें और हीन-भावना आती है। इनसे मुक्त होने के लिए मनोचिकित्सक और सामाजिक सेवाकर्मी उनकी मदद करते हैं।

 

2 comments:

Shalini kaushik said...

upyogi post jiske liye aap jane jate hain.aabhar.

https://worldisahome.blogspot.com said...

आदरणीय डा साहिब ,

आपने यह लेख मुझे समर्पित लिखा है , पर आप स्वयं तो पुरे ही मानवता को समर्पित हैं .

जय अलसी माता