यह अलग पछुआ हवा इस देश में क्यों बह रही ,
रस मलाई आज अपने को जिलेबी कह रही ।
और शीला की जवानी चीखती है दर-ब-दर ,
चाहती पर हाथ आने से किसीके रह रही ।
और कलियों की फिकर ऐ अकबरे आलम करो
अब अनाराली ज़रा करने को डिस्को चह रही ।
हिंद दुनिया में तुम्हारी हया की जो शान थी ,
नींव उसकी हिल रही , देखो इमारत ढह रही ।
1.4.12
रसमलाई
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