विदेशी निवेशको के अनुकूल नीति निर्माण से भारत का विकास
भारत की विकास दर कम हो रही है ,रुपया अपनी लाइन छोड़कर गिर रहा है ,देश में विदेशी भण्डार
घट रहा है,विदेशी निवेशक अपना पैसा निकाल रहे हैं ,ग्लोबल मंदी चल रही है .ऐसे में विकास की
जरुरत है इसलिए हमें विदेशी निवेशको के अनुकूल नीति निर्माण करना पडेगा!!!
क्या खूब तर्क दिये जा रहे हैं .एक तरफ भारत को युवाओं का देश कहा जा रहा है जिनके नॉलेज
पावर की विश्व में धाक है ,विश्व शक्तियां बौखला रही है .भारत का युवा वर्ग उर्जाशील है जिसमे अनंत
संभावनाए भरी पड़ी है .विश्व भारत की युवा शक्ति के आगे नतमस्तक है .आज विश्व अपने उद्धार के
लिये भारतीयों की ओर ताक रहा है और विडम्बना ही कही जायेगी कि भारत अपने विकास के लिये
विदेशियों की ओर ताक रहा है.
देश के रोजगार विदेशी लुटेरो के हाथ में सौपे जा रहे हैं,हर क्षेत्र में अपने विकास के लिये हमे
विदेशियों की आवश्यकता है ,विदेशी पूंजी की आवश्यकता है .क्या विदेशी निवेशक भारत में अपनी पूंजी
लुटाने के लिए आ रहे हैं?क्या विदेशी निवेशक हमे सहयोग करने आ रहे हैं?विदेशी निवेशक सिर्फ भारत
में पैसा बनाने आ रहे हैं ताकि वे खुद और उनका देश समृद्ध हो सके .क्या ये बात हमारे नीति नियन्ता
नही समझते हैं? हमारे नीति नियन्ता को खुद अपने में ही विश्वास नहीं है और ना ही देश की जनता पर .
क्या हम 125 करोड़ लोग बुद्धिहीन हैं? देश की सरकार को भ्रम है कि उनकी उदारीकरण की नीति से ही
देश आगे बढेगा .देश यदि विदेशियों के कारण ही आगे बढ़ सकता था तो मैं स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग
लेने वाले सभी भारतीयों को क्या समझा जाए जिन्होंने अपना सर्वस्व मातृभूमि के लिए अर्पण कर
दिया था .अगर विदेशी व्यापारी ही अच्छे थे तो उनको क्यों खदेड़ा गया ?
देश का एक ऐसा भी प्रधानमंत्री था जिसने देश के दुश्मनों से लोहा लेने तथा अनाज की कमी के चलते
खुद दिन में एक समय ही भोजन लेने का निर्णय किया और उनके निर्णय को जान पूरा देश उनके साथ
आ खड़ा हुआ और देश के हर नागरिक को भोजन मिले इसलिए सप्ताह में एक दिन व्रत रखने के निर्णय
पर सारा देश पहुंच गया ,उस समय के प्रधान मंत्री भीख का कटोरा लेकर विश्व में नही निकले थे .देश की
तकलीफ को देश में ही देशवासियों के साथ सुलझाया .
अफसोस ...कि हमारे नीति नियन्ता अपनी ही प्रजा की ताकत को कम समझ कर देश को कमजोर
कर रहे हैं .पढ़े--लिखे युवा हैं मगर सरकार के पास कोई योजना नहीं की उनके ज्ञान का सदुपयोग कर
सके ,युवा काम को तरस रहे हैं मगर बेरोजगार फिर रहे हैं .देश का किसान मेहनत करने के लिए तत्पर
है मगर उसको अच्छे बीज ,खाद,पानी की उपलब्धता नहीं। देश का व्यापारी उद्यम को तैयार है मगर
उसको उचित सुविधाए उपलब्ध नहीं .देश का मजदुर पसीना बहाने को तैयार है मगर खाली हाथ बैठा है।
इस देश में क्या नहीं है ,सब कुछ है यदि नहीं है तो दूरदर्शी सोच और देश प्रेम की भावना से लबालब
नेतृत्व .
शेयर बाजार विदेशी निवेशको से चल रहा है,उद्योग में भी विदेशी निवेश ,सेवा के क्षेत्र में विदेशी निवेश,
अब तो गली-गली की खुदरा दुकाने भी विदेशी निवेश से चलेगी .यदि सब कुछ विदेशियों को ही करना
है तो हम भारतीय क्या सपना देंखे ? अपने पुरुषार्थ के बल पर भाग्य के विधान को बदल देने की असीम
क्षमता रखने वाले भारतीय विदेशी दुकानों के नौकर बन जिन्दगी गुजारेंगे .
रुपया विश्व बाजार में गिरता है तो हमारी सरकार उसको उठाने के लिए विदेशी सहयोग मांगती
है।नयी टेक्नोलॉजी के लिये सरकार विदेशियों के मुंह ताकती है .उन्नत बीज और खाद के लिए विदेशियों
पर निर्भर रहना है, क्यों है आज मेरे महान हिन्दुस्थान की ये तस्वीर ?
कौन बदलेगा इस तस्वीर को ? ......क्या उदारीकरण के पक्षधर तथाकथित बुद्धिजीवी ? विदेशी निवेश
पर आधारित वर्तमान आर्थिक नीति और उसके नियन्ता? पद लोलुप राजनेता ?भ्रष्ट और कामचोर बनता
जा रहा सरकारी कार्यकारी वर्ग ?
इस देश का उद्धार कभी भी विदेशी निवेश से नहीं होगा ,इस देश की तक़दीर को बदलना है तो उसके
लिए देश के किसान का साथ लेना होगा,देश के मजदुर को साथ लेना होगा,देश की युवा शक्ति का उपयोग
करना होगा ,देश के उद्योगपतियों के अनुकूल नीति निर्माण करना होगा .......
No comments:
Post a Comment