30.9.20

अंसल ग्रुप के वाइस चेयरमैन सहित पांच के खिलाफ रंगदारी की रिपोर्ट दर्ज

खबर मेरठ से है.  अंसल ग्रुप के वाइस चेयरमैन सहित पांच के खिलाफ रंगदारी की रिपोर्ट दर्ज हो गई है. इस प्रकरण की विस्तार से चर्चा मेरठ के स्थानीय अखबारों ने की है. 

गाँधी दर्शन और भाषा समस्या

डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'

विचारों की परिपक्वता, विस्तार का आभामंडल, सत्य के लिए संघर्ष, सत्य कहने के कारण नकारे जाने का भी जहाँ भय नहीं, अहिंसावादी दृष्टिकोण, उदारवादी रवैय्या, आर्थिक सुधारों के पक्षधर और अंग्रेजों से लोहा लेने में जिन व्यावहारिक कूटनीतिक तरीकों को अपना कर राष्ट्र के स्वाधीनता समर में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्माण करने वाले श्वेत धोतीधारी, हाथों में एक लाठी लेकर स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने का जज़्बा रख अंग्रेजी हुकूमत को कुछ हद तक झुका कर भारत की स्वाधीनता की दुन्दुभि बजा कर विश्व के सामने अहिंसा के रास्तों का प्रदर्शन करने वाले योद्धा के रूप में स्वीकार्यता प्राप्त बापू के अविचल संघर्ष प्रणम्य हैं।

पटना से संचालित News One 11 का MD बदतमीजी पर उतारू


बिहार चुनाव को लेकर राजधानी पटना में जैसे चैनल खुले वैसे ही बंद होने का भी सिलसिला लगातार जारी है। लेकिन इन सबके बीच अब चैनल मालिकों की बदतमीज़ी भी खुल कर सामने आने लगा है। इसी खुलते और बंद होते चैनलों के बीच में एक चैनल है News One 11. ये चैनल खुलने के साथ ही कई बड़े सपनों को लेकर सामने आया था।  

बुजुर्गवारों को दया नहीं, दुलार चाहिए

मनोज कुमार
आप देश की राजधानी दिल्ली में रहते हों, या मायानगरी मुंबई में, आप इंदौर में रहते हैं, मैं भोपाल में रहता हूं. कोई किसी शहर में रहता हो लेकिन अपने अपने शहर से गुजरते हुए किसी वृद्धाश्रम से आपकी मुलाकात जरूर होती होगी. किसी शहर में दो-एक तो किसी शहर में आबादी के मान से कुछेक और बड़ी संख्या में वृद्धाश्रम. वैसे ही जैसे आपके-मेरे शहर में मंदिर-मस्जिद-गुरुद्धारा-चर्च आदि-इत्यादि हुआ करते हैं. वृद्धाश्रम और धार्मिक स्थलों में एक बारीक सा फर्क है. धार्मिक स्थलों के पास से गुजरते हुए मत्था टेक लेते हैं अपने लाभ-शुभ की कामना के साथ लेकिन दो मिनट के लिए भी हमारे पांव वृद्धाश्रम पर नहीं ठिठकते हैं. टिके भी तो क्यों? जिन्हें हमने बेकार और बेकाम बनाकर घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया है, वो हमारे किस काम के? उनसे कौन सी लाभ-शुभ की कामना करें? ऊपरवाले का एक अनजाना सा जो भय हमारे दिलो-दिमाग में है, वह डर अपने बूढ़े मां-बाप से कब का खत्म हो चुका है. यह एक हकीकत है हमारे उस भारतीय समाज की जहां हम ‘वसुधै कुटुम्कम्ब’ की बातें करते नहीं थकते हैं लेकिन अपने ही घर के कुटुम्ब को बिखरने से रोक नहीं पाते हैं.

IJU press statement on UP government’s insurance coverage to journalists

Indian Journalists Union (IJU) welcome the announcement by the Uttar Pradesh government on 25 September of health insurance cover of Rs 5 lakh for accredited journalists in the state every year and a grant of Rs 10 lakh in case of death due to coronavirus.

28.9.20

जसवंत सिंह का जाना एक गरिमामयी राजनीतिक सितारे का अवसान

-निरंजन परिहार

जसवंत सिंह चले गए। वर्तमान राजनीति के सबसे बुद्धिजीवी और प्रखर राजनेता थे। अटलजी की सरकार में वित्त, विदेश और रक्षा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय इस भूतपूर्व सैनिक ने कोई यूं ही नहीं संभाल लिए थे। लेकिन राजनीति का दुर्भाग्य देखिए कि बीजेपी की स्थापना में जिनकी अहम भूमिका रही, जीवन भर बीजेपी में जिन्होंने औरों की उम्मीदवारियां निर्धारित की, उसी बीजेपी में 2014 की मोदी लहर में उनके घोषित अंतिम चुनाव में भी टिकट काट दिया। और यह हद थी कि अटलजी, आडवाणीजी व बीजेपी के खिलाफ बकवास करनेवाले सोनाराम को कांग्रेस से लाकर बीजेपी से लड़ाया गया। निर्दलीय जसवंत सिंह चुनाव हारे, जीवन से भी हारे और गंदी राजनीति से भी। भले ही कुछ लोगों की आत्मा को जीते जी शांति मिल गई। लेकिन समूचे देश को निर्विवाद रूप से जिन नेताओं पर गर्व और गौरव होना चाहिए, उस गरिमामयी राजनीति के सर्वोच्च शिखर पर जसवंत सिंह का नाम चमकीले अक्षरों में दमक रहा है।

रिपब्लिक में पत्रकार नहीं, जोकर और एक्टर भर दिए गए हैं

रिपब्लिक का जोकर प्रदीप बोला- चाय बिस्किट वाले हैं मुंबई के पत्रकार,  जोकर को मीडियाकर्मियों ने धुना...  देश के मुख्यधारा के इलेक्ट्रानिक मीडिया में अब पत्रकार नहीं हैं। पत्रकार रूपी एक्टर और जोकर भर गए हैं। अधिकांश न्यूज चैनलों के एंकर और पत्रकार सर्कस के जोकर लगते हैं, क्योंकि अब न्यूज चैनलों का फंडा पत्रकारिता करना नहीं है, बल्कि जनता का इंटरटेंनमेंट करना है। 

त्रिवेंद्र चचा, क्या गरीब के बच्चे को डाक्टर बनने का हक नहीं?

- क्या प्राइवेट मेडिकल कालेज में भी अमीर का बच्चा और सरकारी में भी अमीर का बच्चा ही पढ़ेगा डाक्टरी?
- बांड सिस्टम समाप्त कर गरीबों के डाक्टर बनने का सपना चकनाचूर


कोरोना काल में मनुष्य जाति को स्वास्थ्य और स्वच्छता कर्मियों की अहमियत का आभास हो गया है। उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। पहाड़ चढ़ने को कोई डाक्टर तैयार नहीं है। कोरोना महामारी के दौरान अधिकांश लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी है। मध्यम और गरीब वर्ग के लाखों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। व्यवसाय भी प्रभावित हैं। ऐसे में गुजर-बसर की चुनौती है। प्रदेश सरकार दून और हल्द्वानी मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की फीस चार लाख रुपये प्रति साल वसूल रही है। अब ऐसे में क्या कोई गरीब का बच्चा डाक्टर बन सकेगा? यह सवाल किसी के भी जेहन में आ सकता है। सवाल यह है कि जब कोई डाक्टर बनने के लिए 50 लाख से एक करोड़ रुपये खर्च करेगा तो वो क्यों पहाड़ चढ़ेगा? क्या प्राइवेट मेडिकल कालेज में भी अमीर का बच्चा पढ़ेगा और सरकारी में भी वही पढ़ेगा? गरीबों के सपनों का क्या होगा।

हाजी यूनुस और जियाउर्रहमान में हो सकता है मुकाबला !

 गठबंधन पर टिकीं बुलंदशहर के मुस्लिम समाज की निगाहें

बुलंदशहर | यूपी में विधानसभा उपचुनाव का बिगुल फुंक चूका है | भाजपा ने तैयारियां तेज कर दी है | बसपा, सपा और रालोद ने भी अपने अपने आंकड़े बिठाने शुरू कर दिए हैं | कांग्रेस भी उपचुनाव लड़ने को तैयार है | यूपी में उपचुनाव की तिथियों की घोषणा होना बाकी है लेकिन जिले का सियासी तापमान है है |

24.9.20

‘माल’ से मालामाल सिनेमा की थाली!

सिनेमावालों की इज्जत की पूंजी चौराहों पर नीलामी के इंतजार में है। क्योंकि उनकी दमित कामनाएं दुर्गंध की नई सड़ांध रच रही है। चेहरों से नकाब उतर रहे हैं। सिनेमा की सारी सच्चाई समझने के बावजूद जया बच्चन सिनेमा को चरित्र प्रमाणपत्र बांट रही हैं। भुक्तभोगियों में भन्नाहट है। गटर की सफाई इसीलिए जरूरी है।

-निरंजन परिहार

सिनेमा की गंदगी के नालों में बह रही बदबू लगातार नाक पकड़े रहने को मजबूर कर रही है। ड्रग्स व नशे को कारोबार के बाद अब निर्देशक अनुराग कश्यप द्वारा देह शोषण किए जाने का मामला गरम है। यहां किसी अभागी युवती के देह का दोहन मूल विषय नहीं है। मूल विषय है सिनेमावालों के अंत:करण में छिपी बैठी वासना का। वह वासना, जो दमित कल्पनाओं को आकार देने के लिए काम देने के बहाने किसी जरूरतमंद को बिस्तर पर बिछाने के सपने सजाती हैं,  और जीवन की खुशियों और तकलीफों को धुंए में उड़ाने को जिंदगी का अनिवार्य अंग मानती है।  इसी कामना की कसक में सुशांत सिंह राजपूत कोई दुर्भाग्यवश मरा हुआ पात्र नहीं, बल्कि एक पूरा धारावाहिक कथा बन जाता है। जिसे पूरा देश और दुनिया तीन महीने से लगातार देखते रहने और उसी में उलझे रहने को शापित है।

22.9.20

हरिवंश की गलती

 गुमराह राजनीति का चाौका छक्का से आम जनता हतप्रभ


किसानों का हित कहकर लोकसभा में पारित विधेयक राज्यसभा में पास होने आया। अवश्य आना चाहिए। सदन तो ऐसे विधेयक को पारित करने या लौटाने के लिए ही है। सुधार कर पुनः राज्यसभा से पारित करवाया जा सकता था। वोटिंग का अधिकार एवं मांग भी उचित ही है। क्योंकि केवल सत्ता पक्ष ही किसानों का हितकर है ऐसा तो संविधान में नहीं लिखा हुआ है। इसलिए विपक्ष की बातों को भी सुना जाना चाहिए। लेकिन उपसभापति हरिवंश की राजनीतिक चाल सबकों हतप्रभ कर दिया। जब उन्होंने चालाकी से विधेयक को पारित करने के लिए विपक्ष के मांग को तव्वजों नहीं दिया।

19.9.20

सच्चे पत्रकार और साहित्यकार होते हैं वास्तविक जनप्रतिनिधि

डॉ. सन्तोष कुमार मिश्र

 
साहित्य और पत्रकारिता का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है।यदि पत्रकारिता तथ्यों एवं विचारों को उदघाटित करती है तो साहित्य अमूर्त भावों और विचारों को अभिव्यक्ति देता है।दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।पत्रकारिता को साहित्य की एक विधा कहना गलत नहीं होगा।खुशवंत सिंह,कुलदीप नैयर,विद्यानिवास मिश्र,अज्ञेय, मनोहर श्याम जोशी और वर्तमान में हृदयनारायण दीक्षित ,वेदप्रताप वैदिक जैसे लोगों की लंबी परम्परा है जिन्होंने लेखक और पत्रकार के श्रेष्ठ दायित्वों का समान रूप से निर्वहन किया है।कुछ समय पूर्व तक पत्रकारिता में प्रवेश के लिए यह जरूरी था कि व्यक्ति का लगाव साहित्य की तरफ हो लेकिन आज ऐसा नहीं है।तकनीक के प्रयोग और पैसे की चमक ने पत्रकारिता को तुलनात्मक रूप से साहित्य से ज्यादा लोकप्रियता का माध्यम बना दिया।फलतःसाहित्य और पत्रकारिता के बीच पहले जैसा रिश्ता नहीं रहा।आज दोनों पर एक दूसरे की उपेक्षा का आरोप लगता है।

मेदिनीनगर सेन्ट्रल जेल में 13 सितंबर से कैदी भूख हड़ताल पर

रूपेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार


महान क्रांतिकारी यतीन्द्र नाथ दास के शहादत दिवस यानि कि 13 सितम्बर से झारखंड के मेदिनीनगर सेन्ट्रल जेल के कैदी 5 सूत्रीय एजेंडे पर भूख-हड़ताल पर बैठे हुए हैं।

एजेंडा है-

अमिताभ जी, आप बोलिए......


 
अमिताभ जी आप बोलिए.... क्युकी सब ही तो बोल रहे हैं....आप कैसे नहीं बोलेंगे.....बोलिए, क्युकी ध्रतराष्ट्रवादी चाहते हैं, कि आप भी बोले.....देश की सबसे बड़ी समस्या पर आप कैसे नहीं बोलेंगे.......रिया, कंगना पर कुछ तो बोलिए, जिससे कुछ ध्रत राष्ट्रवादी योद्धाओं की टीआरपी बनी रहे..... नहीं तो वे इसी में टीआरपी बना लेंगे कि आप बोल नहीं रहे......अब ये मत सोचिए कि लोग इतना बोल चुके हैं, सब ऊब गए हैं, अब बोलकर क्या तूल देना..... तूल दीजिए, यही तो साहब के वफादार चाहते हैं, आप बोलिए......और सुनिए, क्या बोलिएगा...?

17.9.20

जब तक अपराध प्रमाणित न हो तब तक मीडिया द्वारा किसी को भी अपराधी कहना अपराध है




मीडिया ट्रायल से व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है  
मीडिया ट्रायल से न्यायपालिका की कार्यशीलता प्रभावित होती है
सुशांत केस में लव एंगल बना मीडिया के लिये TRP बढ़ाने का जरिया
आज की पत्रकारिता वॉच डॉग से बनी लैपडॉग
टेलीविजन न्यूज़ चैनल नैतिकता और मूल्यों को छोड़कर बाजारीकरण का एक रूप बन रहे
मुख्यधारा की मीडिया लोगों को वास्तविक मुद्दों से कर रही गुमराह
आज की मीडिया बनी सत्ताधारियों के हाँथो की कठपुतली  
मीडिया स्वयं की स्वतंत्रता का कर रहा गलत उपयोग
प्रिंट मीडिया आज भी लोगों के हित के लिये काम कर रही है

कवि नरेश सक्सेना द्वारा साहित्य सभा का उद्घाटन



हिन्दू कालेज में हिंदी दिवस पर वेबिनार

दिल्ली। 'मातृभाषाओं में पढ़े-समझे बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। रटी हुई भाषा में रटे हुए विचार ही आएँगे, वहाँ मौलिक और नये विचार पैदा नहीं हो सकते।' सुप्रसिद्ध हिंदी कवि नरेश सक्सेना ने उक्त विचार  हिन्दू कालेज की हिंदी साहित्य सभा का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किए। सभा द्वारा आयोजित वेबिनार में लखनऊ से जुड़े कवि सक्सेना ने हिंदी की वर्तमान स्थिति के प्रति चिंता और दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी आज तक ज्ञान की भाषा नहीं बन पाई, साथ ही कोई भी भारतीय भाषा ज्ञान की भाषा नहीं बन सकी।

16.9.20

जनता की नजरों में योगी सरकार की ‘रेटिंग’ अच्छी नहीं

अजय कुमार,लखनऊ

अफरशाही के सहारे उत्तर प्रदेश की ‘तकदीर और तस्वीर’ बदलने का सपना देख रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने ‘मिशन’ में कितना कामयाब या नाकामयाब रहे यह तो वह ही जानें, लेकिन आमजन की नजर में प्रदेश के विकास और कानून व्यवस्था को लेकर योगी सरकार की ‘रेटिंग’ बहुत अच्छी नहीं है। सड़कों और बिजली व्यवस्था का बुरा हाल है। कानून व्यवस्था के मामले में भी योगी सरकार विपक्ष के निशाने पर है।कोरोना महामारी जो पहले पहल यूपी में नियंत्रित दिख रही थी,वह बेकाबू होती जा रही है। कोरोना से निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के सिस्टम में लोच ही लोच नजर आ रहा है।कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता होगा, जब समय पर इलाज नहीं मिल पाने के कारण कोरोना पीड़ितों को जान से हाथ नहीं छोना पड़ जाता हो। अस्पताल की चैखट पर पहुंचने के बाद भी मरीज को घंटों इलाज नहीं मिले तो इससे शर्मनाक स्थिति और कोई हो नहीं सकती है। जिनी अस्पताल लूट का अड्डा बन गए हैं।

तीन साल से मनरेगा श्रमिकों को नहीं मिली मजदूरी, किया ब्लॉक का घेराव

श्रमिक भरण-पोषण योजना का एक भी किश्त मजदूरों को नहीं मिला




वाराणसी : रोहनियां/ आराजी लाइन (दिनांक-16 सितंबर 2020 बुधवार) तीन साल से राजातालाब तहसील क्षेत्र के मरूई गांव के श्रमिकों को मनरेगा से मजदूरी नहीं मिली। इससे वह भुखमरी की कगार पर आ गए हैं। श्रमिकों ने ब्लॉक प्रमुख से मजदूरी दिलाए जाने की मांग की।

और कितना पतन बाकी है पत्रकारिता का? एंकरों के भौंकने और रिपोर्टरों के रेंकने का दौर

निरंजन परिहार-

हमारे हिंदुस्तान में न्यूज़ टेलीविजन आज पत्रकारिता नहीं, सिर्फ तमाशा है या मदारी का खेल है। क्‍योंकि खबर आज यह नहीं है कि दिल्‍ली से दूर देश के दिल में कहीं क्‍या कुछ खास हो रहा है। बल्कि खबर यह है कि रिया घर से कब निकलनेवाली है और शौविक कहां सोता है। खबर यह है कि तीन महीने पहले मरे हुए एक अभागे सुशांत को तीन साल पहले खाना कौन खिलाता था। और उस खाने में क्या क्या मिलाता था। यह सब इसलिए नहीं है कि आज चैनलों के पास कोई और खबर नहीं है। दरअसल, खबर इसलिए नहीं है क्योंकि खबर की जरूरत को चैनलों ने महसूस करना छोड़ दिया है। यहां सिर्फ होड़ है, आगे निकलने की। दरअसल, संवाद संवेदना से जन्म लेता है और संवेदना सरोकार की संवाहक है। लेकिन जब संवाद, संवेदना और सरोकार सारे ही समान रूप से धंधे की धमक में धराशायी हो जाएं, तो जो पतित परिदृश्य पैदा होता है, वही आज हम सब देख रहे हैं।  

मीडिया विश्‍लेषकों और मीडिया में अब भी आस्‍था रखने वाले हमारे मित्रों से अनुनय विनय है कि, कृपया पत्रकारीय नैतिकता को परंपरागत नज़रिए से देखने के बजाय ताक पर रखकर सुशांत सिंह की मौत के मातम को मजाक बनता देखते रहिए। क्योंकि मीडिया अब मिशन नहीं, कमीशन हैं। खबर अब सूचना और जानकारी नहीं,  एक धमकता हुआ धंधा है। इसलिए, प्रिंट हो या टीवी, मीडिया में अब हर खबर वहां केवल नफे और नुकसान की अवधारणा का आंकलन है। बाजारवाद ने मीडिया को धंधे में ढाल दिया है। ऐसा ही होता है, सेवा का कोई स्वरूप या मिशन, जब धंधे का रूप धर ले, तो सरोकारों की मौत बहुत स्वाभाविक है। इसीलिए, आज टीवी चैनलों की, चैनलों के एंकरों और एंकरों से बात कर रहे रिपोर्टरों की हालत क्‍या है? दिल पर हाथ रखकर पूछिए, कि क्‍या उन्‍हें सूचना व संवाद का माध्यम कहा जा सकता है? 

हम में से बहुत सारे साथी खबरों की दुनिया के पुराने बादशाह हैं – और उन्होंने संस्कार, सरोकार व संवाद की पत्रकारिता की है। कोई प्रिंट में तो कोई टीवी में, और कोई अपनी तरह दोनों में काम का अनुभवी है। सो, हम सबके लिए सोचने, समझने और  दिमाग लगाने के बजाय इस पूरे परिदृश्‍य से गायब हो जाने का वक्त है। चुप्पी साधकर इस दौर के गुजरने का इंतज़ार करने का वक्त है। हम, जो दो – ढाई दशक से ज्यादा वक्त पुराने पत्रकार हैं, हम सबके अतीत और वर्तमान के बीच बाजारीकरण की एक दीवार खड़ी हो गई है। सन 2000 के पहले की और उसके बाद की पत्रकारिता में जो खाई कुछ ज्यादा ही गहरा गई है, उसकी गहराई को सिर्फ सिर्फ एंकरों के ‘भौंकने’, रिपोर्टरों के ‘रैंकने’ और खबरों को खत्म हो जाने नज़रिये से देखिए। पत्रकारिता के पतित होते इस परिदृश्य में, पवित्र और पावन पत्रकारिता तलाशेंगे, तो तकलीफ ही मिलेगी। और कुछ नहीं मिलनेवाला। फिर भी मिले, तो बताना ! 

14.9.20

मीडिया का चरित्र भी जीडीपी की तरह माइनस में जा चुका है


आज भारत कोरोना केसेस के मामले में दूसरे नंबर पर आ गया है। रोज 1000 मौतें हो रही हैं । लेकिन कोरोना को लेकर मीडिया में सन्नाटा है। अब कोई तब्लीगी एंगल भी नहीं मिल रहा है।  अब तो  पूरा देश रियामय  हो चुका है।  रिया के गाड़ी के पीछे हांफते हुए भागता  रिपोर्टर दुनिया का सबसे लाचार इंसान मालूम पड़ता है। काश कि कोई ऐसी टेक्नोलॉजी आ जाती जिससे कि रिपोर्टर का माइक बंद शीशे के अंदर घुस जाता या फिर उसे  मिस्टर इंडिया  वाली  शक्ति मिल जाती  तो  वह गाड़ी के अंदर घुस कर  सीधे रिया की गोद में बैठ जाता। बड़े दुख की बात है की हमारे इंजीनियर अभी ऐसी तकनीक ईजाद नहीं कर पाए हैं।

भूल जाइए कि सब कुछ फिर पहले जैसा हो जाएगा... !


देश के आर्थिक हालात बेहद खराब हैं। सुधरने की गुंजाइश कम है। करोड़ों लोग बेकार और बेरोजगार बैठे हैं। भूल जाइए कि जिंदगी फिर गुलजार होगी। इसलिए, जो कुछ आपके पास है उसे बचाकर रखिए, आगे काम आएगा।  अगर आप सोच रहे हैं कि कोरोना की वैक्सिन के आते ही सब कुछ फिर से ठीक हो जाएगा, तो भूल जाइए। हालात सुधरने में पांच साल से भी ज्यादा का वक्त लग सकता है।

-निरंजन परिहार

अखिलेश यादव के रास्ते पर तेजस्वी यादव

अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह तो चुनाव से दूर रखा था तो तेजस्वी ने लालू को पोस्टरों से ही कर दिया गायब


नई दिल्ली/पटना। क्या बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के रास्ते पर चल रह रहे हैं। उत्तर प्रदेश में वर्चस्व में आते ही अखिलेश यादव ने पार्टी के खेवनहार रहे अपने पिता को साइड लाइन किया था। उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर ही रहते हुए अपने पिता को पार्टी का संरक्षण बनाकर एक तरह से पार्टी से साइड लाइन कर दिया था। हालांकि अखिलेश यादव ने पोस्टरों से अपने पिता का फोटो नहीं हटाया बल्कि उनके कद को भुनाया। मुलायम सिंह यादव के साइड लाइन करने के पीछे भी मुलायम सिंह के समय के दागी नेताओं को दरकिनार कर सपा की छवि को निखारना बताया गया था।

नए समीकरण मासिक पत्रिका अब नए समीकरण समाचार पत्र

आगरा। नए समीकरण मासिक पत्रिका, कमला नगर, आगरा अब नए समीकरण समाचार पत्र होने जा रहा है।

पत्रकारों के साथ पुलिस के व्यवहार पर जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया ने उठाए सवाल?

सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों व डीजीपी से की अपील

देश के अंदर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया की स्थिति दिन पर दिन खराब होती जा रही है पत्रकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं देश में कई पत्रकारों की हत्या कर दी गई देशभर में पत्रकारों ने इसको लेकर बड़ा विरोध दर्ज किया  उसके बावजूद यह हमले कम नहीं हो रहे हैं इसी को लेकर जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया ने मोर्चा खोल दिया है पत्रकारों के हित में काम करने वाले जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया ने पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग की है इसको लेकर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और नेता विपक्ष को पत्र भी लिखे जा चुके हैं पत्रकारों को भयमुक्त पत्रकारिता करने के लिए पत्रकार सुरक्षा कानून इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है लगातार ग्राउंड रिपोर्ट करने जा रहे पत्रकारों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सरकारी कार्यालय और पुलिस विभाग में भी पत्रकारों के साथ सही सुलूक नहीं हो रहा है।

साक्षात्कार के बदलते मायने

vijay kumar
 
बचपन से ही लेखन का शौक रखने और पत्रकारों के रुतबे को देखते हुए मुझे पत्रकारिता में अपना भविष्य नजर आने लगा। इसलिए मैंने कानपुर विश्वविद्यालय से अच्छे अंकों में पत्रकारिता की डिग्री ली। एक वरिष्ठ पत्रकार ने सुझाया कि दूरदर्शन से इंटर्नशिप करने के बाद आपको काफी अवसर मिलेंगे। मैंने उनकी बात मानकर इंटर्नशिप पूरी की और फिर निकल पड़ा नौकरी की तलाश में। शायद ही कोई चैनल और समाचार पत्र बचा होगा जहाँ मैंने अपना जीवनवृत्त (बायोडाटा) न दिया हो। संस्थान के गेट पर पहुंचते ही सिक्यूरिटी गार्ड ने ही साक्षात्कार ले लिया कि किसके माध्यम से आए हो। जवाब में कोई संदर्भ (रेफरेंस) न मिलने पर वह कह देता कि आपको काॅल किया जाएगा। लेकिन मजाल है कि कहीं से साक्षात्कार के लिए बुलावा आता।

कांग्रेस में नई जान फूंकने की कोशिश में सोनिया

सोनिया गांधी कोई खतरा मोल नही लेना चाहती। उन्होंने मजबूत नेता की शैली में पार्टी को नई शक्ल देना शुरू कर दिया है। वे बीमार हैं, लेकिन उन्हें पता है कि कांग्रेस चलाना उनकी जिम्मेदारी भी है और मजबूरी भी। क्योंकि उनसे मजबूत नेता पार्टी में कोई और नहीं है और राहुल गांधी के लिए सीढ़ी उन्हें ही बनानी होगी।

 -निरंजन परिहार

कांग्रेस के पास श्रीमती सोनिया गांधी से बड़ा और पार्टी की गरिमा बढ़ानेवाला कोई दूसरा धीर गंभीर नेता नहीं है, और जाहिर है कि वे अपनी इस महिमा को अच्छी तरह समझती भी हैं। इसलिए उन्होंने बीमार होने और विदेश जाने की तैयारी में होने के बावजूद बहुत तेजी से उन सारों के पर कतर दिए हैं, जो पार्टी को आंख दिखाते रहे हैं और जिनकी वजह से पार्टी को विवादों में आना पड़ा है। इसीलिए राजस्थान के दो नेताओं का राजनीतिक कद बड़ा करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती गांधी ने 11 सितंबर की रात को पार्टी के समर्पित नेताओं को हैसियत बख्श दी, तो कई नेताओं को उनकी औकात दिखा दी। किसी को नई जिम्मेदारी सौंपी, तो पुनर्गठन में महत्वपूर्ण पदों पर राहुल गांधी के विश्वस्त नेताओं को अहमियत देकर संदेश भी दे दिया कि अब चलेगी तो उन्हीं की।

ब्रेकिंग न्यूज के दौर में हिन्दी पर ब्रेक

मनोज कुमार

 
ब्रेकिंग न्यूज के दौर में हिन्दी के चलन पर ब्रेक लग गया है. आप हिन्दी के हिमायती हों और हिन्दी को प्रतिष्ठापित करने के लिए हिन्दी को अलंकृत करते रहें, उसमें विशेषण लगाकर हिन्दी को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बताने की भरसक प्रयत्न करें लेकिन सच है कि नकली अंग्रेजियत में डूबे हिन्दी समाचार चैनलों ने हिन्दी को हाशिये पर ला खड़ा किया है. हिन्दी के समाचारों में अंग्रेजी शब्दों की भरमार ने दर्शकों को भरमा कर रख दिया है. इसका एक बड़ा कारण यह है कि पत्रकारिता की राह से गुजरते हुए समाचार चैनल मीडिया में बदल गए हैं. संचार या जनसंचार शब्द का उपयोग अनुचित प्रतीत होता है तो विकल्प के तौर पर अंग्रेजी का मीठा सा शब्द मीडिया तलाश लिया गया है. अब मीडिया का हिन्दी भाव क्या होता है, इस पर चर्चा कभी लेकिन जब परिचय अंग्रेजी के मीडिया शब्द से होगा तो हिन्दीकी पूछ-परख कौन करेगा. हालांकि पत्रकारिता को नेपथ्य में ले जाने में अखबार और पत्रिकाओं की भी भूमिका कमतर नहीं है.

13.9.20

भारत में अधिकतर पुलिस जातिवादी और सांप्रदायिक है

-एस.आर. दारापुरी 

दिसंबर 2018 में, महाराष्ट्र के एक पुलिस अधिकारी भाग्यश्री नवटेके की एक वीडियो रिकॉर्डिंग वायरल हुई, जिसमें वह दलितों और मुसलमानों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने और उन्हें प्रताड़ित करने के बारे में डींग मारते हुए दिखाई दे रही है। उसने जो कहा वह भारत के पुलिस बल में सामाजिक पूर्वाग्रहों की एक कच्ची लेकिन सच्ची तस्वीर का प्रतिनिधित्व करता है।

ग्लोबल टाइम्स, चीन और भारत



चीन और भारत का सीमा विवाद कोई नया नहीं है। 1962 में चीन-भारत के बीच हुए युद्ध में जिस तरह से चीन ने भारतीय जमीन पर कब्‍जा जमाया था, उसे लगता है कि वह इससे आगे होकर 21वीं सदी के उभरते और वैश्‍विक  हुए भारत की जमीन भी अपने कब्‍जे में कर लेगा ।  वस्‍तुत: यही वजह है कि एक तरफ रुस में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई और वे सीमा पर शांतिवार्ता की चर्चा कर रहे थे, ठीक उसी समय में  चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स धमकी दे रहा था कि अगर युद्ध हुआ तो भारत हार जाएगा।

11.9.20

रजोनिवृत्ति - एक स्वाभाविक परिवर्तन



महिलाओं में जब मासिकधर्म पूरी तरह से समाप्त हो जाता है तब उसे  रजोनिवृत्ति कहते हैं। रजोनिवृत्ति 45 से 55 साल के बीच की उम्र में होता है। रजोनिवृत्ति होने पर स्त्री के शरीर में शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के पविर्तन हो जाते हैं। रजोनिवृत्ति वह पड़ाव है जिसमें एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन का स्तर कम हो जाता है।

क्या हमें जानकारी है कि अमेरिका में इस वक्त क्या चल रहा है ?

-श्रवण गर्ग

आज से केवल छप्पन दिनों के बाद भारत सहित पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाली घटना के परिणामों को लेकर अब हमें भी प्रतीक्षा करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। इस बात पर दुःख व्यक्त किया जा सकता है कि मीडिया ने एक महत्वपूर्ण समय में जनता का पूरा ध्यान जान बूझकर ग़ैर ज़रूरी विषयों की तरफ़ लगा रखा है।इस बातचीत का सम्बंध अमेरिका में तीन नवम्बर को महामारी के बीच एक युद्ध की तरह सम्पन्न होने जा रहे राष्ट्रपति पद के चुनावों और जो कुछ चल रहा है उसके साथ नत्थी हमारे भी भविष्य से है।

दिनबदिन गिरता नजर आ रहा है पत्रकारिता का स्तर

 
पत्रकार सत्येंद्र सिंह राजपुरोहित

पत्रकारिता का अपने आप में काफी महत्व है.। इसलिए पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ भी कहा जाता है। वहीं  पत्रकारिता के कारण ही सामाजिक और राजनीतिक ढांचा मूल रुप से काम कर रहा है। पत्रकारिता के जरिए ही लोगों तक समाचार पहुंचाने का काम किया जाता है। घटना कही होती है तो उस घटना को लोगों तक जानकारी इसी पत्रकारिता के बदौलत ही मिलती है। जनता भी पत्रकारिता के माध्यम से एक जगह के समाचार को पूरे विवरण के साथ देख सकते है ,वहीं आम जन को  इसी पत्रकारिता के कारण सच्ची घटनाओं की जानकारी होती है। सच्ची बात और सच्ची घटनाओं को लोगों तक पहुंचाने का कार्य पत्रकारिता द्वारा किया जाता है। पत्रकारिता के जरिए ही लोग भ्रष्टाचार,राजनीतिक उठापटक, घोटालों, घटनाओं के बारे में जानकारी ले पाते है। 

10.9.20

यूं चिश्तिया चराग़ की रुख़्सती...

#यूं_चिश्तिया_चराग़_की_रुख़्सती...
यार को हमने जा-ब-जा देखा,
कहीं ज़ाहिर कहीं छुपा देखा!
कहीं मुमकिन हुया कहीं वाजिब,
कहीं फ़ानी कहीं बक़ा देखा!
दीद अपनी की थी उसे ख्वाहिश,
आपको हर तरह बना देखा!
कहीं है वो बादशाहे तख़्त-ए-नशीं,
कहीं कांसा लिए गदा देखा!!
बेह्नुल अक़्वामी सतह पर क़ौमी इत्तेहाद को चिश्तिया चराग़ से रौशन-ओ-फ़रोग़ देने वाली इस बर्रे सगीर की अज़ीमोशान रूहानी शख्सियत हज़रत हसनी मियाँ नियाज़ी आज बतौर-ए-ज़ाहिर इस आरज़ी दुनियां से पर्दा फरमा गये।आपका पर्दा फरमाना चिश्तिया रंग में रंगे हर दीवाने को ग़मो अफ़सुर्दा कर गया।आपने चिश्तिया मिशन को क़ौमी इत्तेहाद की हिन्दू-मुस्लिम तस्बीह में पिरो कर 'अनल-हक़' का जो दर्स दिया है उसकी खुशबू सदा आलम-ए-जहां में महकती रहेगी।
आपसे मोहब्बत करने व् हर मज़ाहिब के मानने वाले आज ग़म आलूदा हैं।"पंजतन की मोहब्बत का म्यार तो देखिये साहब! "हसनी" का "हुसैनी" से माहे मोहर्रम में जा मिलना"...
आपका रुखसत होना बेशक़ हिन्दू-मुस्लिम इत्तेहाद में एक बड़ी ख़ला पैदा कर गया मग़र आपके रौशन चराग़ से इस मुल्क़ की पाकीज़गी और क़ौमी-एकता हमेशा बुलंद-ओ-बाला रहेगी...इन्शा अल्लाह
●इंनालिल्लाहे व् इंनालिल्लाहे राजेऊन●
"कहीं आबिद बना कहीं ज़ाहिद,
  कहीं रिंदो का पेशवा देखा"!
  "शमा होकर के परवाना,
   आपको आप मे जला देखा"!!!

अल्लाह मग़फ़ेरत फरमाए...आमीन

डॉ. सयैद एहतेशाम-उल-हुदा
वरिष्ठ सदस्य भारतीय जनता पार्टी
उत्तर-प्रदेश
9837357723

6.9.20

आज जिसके पास स्मार्टफोन है वे सभी जर्नलिस्ट हैं

कोविड-19 में टीवी स्टोरी को लेकर यूनिसेफ व पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा मीडिया कर्मियों के साथ छात्रों का वेबिनार

शुरुआती दौर से - कोरोना को पॉलिटिक्ली देखने की बजाय मेडिक्ली देखने की आवश्यकता थी -ब्रजेश राजपूत


स्वतंत्र शुक्ला

इंदौर। "हाँथ से हाँथ भले न मिले, दिल से दिल मिलाए रखिए" शेर शायरी अल्फाज़ो की दुनिया का एक ऐसा नाम जिसे कोरोना ने हमेशा हमेशा के लिए हम सब से जुदा कर दिया राहत इंदौरी साहब के साथ साथ ऐसी कई जानें गई हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। ऐसे ही कोरोना लॉक डाउन के दौरान कवरेज की गई कई कहानियों को जानने के लिए यूनिसेफ मध्यप्रदेश द्वारा पत्रकारिता एवं जन संचार अध्ययन शाला देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर के छात्रों के साथ कोविड-19 में टी.वी स्टोरी को लेकर वेबिनार आयोजित किया गया।

एक 'हैंडसम' चेहरे का फीका पड़ता नूर !

-निरंजन परिहार-

सचिन पायलट नायक थे। खलनायक हो गए हैं। राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष पद छिन गया। उपमुख्यमंत्री पद से भी पैदल हो गए। सत्ता और संगठन दोनों गंवाने के दौर में 7 सितंबर को जन्मदिन है। सो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आपदा को अवसर में बदलने’ के मंत्र को अपनाते हुए जन्मदिन पर जलसा जमाने की जुगत में हैं। 


 

5.9.20

आल इंडिया बाईक बोट टैक्सी यूनियन संगठन का 30 सितंबर को संसद का घेराव करने का आह्वान





आज भारतवर्ष जिस तबाही के दौर से गुजर रहा है और भविष्य में जिस बुरे हालात से गुजरने वाला है उसके लिए केवल मोदी ही दोषी नहीं होगें वह सब भी होंगे जिन्होंने जाने अनजाने या मूर्खतावश ऐसे व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री बना दिया जो अशुभ लालची पाखण्डी निर्लज्ज अहंकारी और स्व प्रशंसा का भूखा था।

"समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनके भी अपराध"।        
            

त्रासदी में तृप्ति तलाशते तेवर अर्थात कंगना, राऊत और देशमुख

निरंजन परिहार

अनिल देशमुख को माफ कर दीजिए। उन्हें नहीं पता है कि कंगना रणौत के बयान पर प्रतिबयान से उनको क्या मिला। देशमुख बड़े आदमी हैं। महाराष्ट्र के गृह मंत्री हैं। शरद पवार की मेहरबानी से पूरे प्रदेश की प्रजा की रक्षा, सुरक्षा और संरक्षा की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। एक जिम्मेदार मंत्री के नाते चुप रहना चाहिए था। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी कहां बोल रहे हैं, चुप ही हैं न। सो, देशमुख भी चुप रह लेते, तो कौनसा उनका मंत्री पद चला जाता। देशमुख ने कंगना के बयानों पर सख़्त टिप्पणी की है। वे बोले कि ऐसे किसी भी व्यक्ति को मुंबई में रहने का अधिकार नहीं है, जिसे लगता है कि वो मुंबई में सुरक्षित नहीं है।

एमडी/एमएस के छात्रों की सीएम योगी से अपील

 Chhatro par ho raha hai atyachaar

                              खुला पत्र
                        (open letter)

माननीय प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री(उत्तरप्रदेश)

आशा करते है कि आप कुशल मंगल होंगे लेकिन हम युवा पीढ़ी बहुत चिंतित है अभी और बहुत बड़ी समस्या में फसे है इसीलिए आपके समच्छ मन की बात करना चाहते हैं

केवल ट्रेनों का संचालन ही काफी नहीं बल्कि जन सहयोग भी बहुत जरूरी है


कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों  की घर वापसी का संकट देखते हुए राज्य सरकारों के अनुरोध पर श्रमिक ट्रेनें जरूर चलाई गईं, वह भी मौके की नजाकत को देखते हुए। इन ट्रेनों से लाखों प्रवासी मजदूरों को अपने गांव, अपने घर पहुंचने में काफी मदद मिली। अब जबकि लॉकडाउन अनलॉक हो चुका है। दिल्ली और देशभर में मैट्रो ट्रेनों को चलाने का ऐलान किया जा चुका है तो भारतीय रेलवे भी कोरोना काल से पूर्व की तरह ट्रेनों के संचालन की तैयारी कर रहा है। इतने बड़े नेटवर्क को लम्बे अर्से तक ठप्प करके नहीं रखा जा सकता। जल्द ही गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है-गीत फिर लोगों की जुबां पर आएगा। कोरोना वायरस महामारी के कारण इस वर्ष मार्च में 1.78 करोड़ से ज्यादा टिकट रद्द किए गए और 2727 करोड़ के लगभग रकम वापस की गई। रेलवे ने 25 मार्च से ही अपनी यात्री ट्रेनें स्थगित कर दी थीं। पहली बार रेलवे ने  टिकट बुकिंग से जितनी आमदनी हुई उससे ज्यादा रकम वापस की।

2.9.20

जय लक्ष्मी गृह निर्माण सहकारी संस्था के घोटालों की जांच की जाए

 


महोदय,

सहकारिता विभाग का उद्देश्य सहकारी संस्थाओं को संगठित कर समाज के कमजोर वर्गों के लोगो की रहवासी समस्याओं के समाधान करने के लिये हुआ था किंतु इसके विपरीत सहकारिता विभाग प्रशासनिक तंत्र का एक ऐसा विभाग बन गया है । जो कमजोर लोगो का ही शोषण कर रहा है ।

सहकारिता की विक्षिप्त एवं भ्रष्ट कार्यप्रणाली के कारण वश वर्षो नहीं दशकों तक विभिन्न संस्थाओ के भूखंड धारको / सदस्यों को उनकी रहवासी समस्याओं का समाधान नहीं मिलता । इसके बावजूद सहकारिता विभाग द्वारा न तो संस्था, न हीं संस्था के पदाधिकारिओं पर कोई उचित कार्यवाही की जाती है । जिस वजह से सदस्य / भूखंड धारक अपने अधिकारों से वंचित रह जाते है और दशकों तक न्याय नहीं मिल पाता ।

इसका जीवंत उदाहरण “जय लक्ष्मी गृह निर्माण सहकारी संस्था” है । 3 दशकों (30 वर्षों) से भी पहले से संस्था द्वारा भूखंड धारकों को भूखंड पर कब्जा नहीं दिया जा रहा है । विकास के नाम पर मनमाना शुल्क वसूला जा रहा है विगत 30 वर्षों में दो बार विकास शुल्क एवं अन्य शुल्को के नाम पर लाखों रुपए संस्था पदाधिकारियों द्वारा भूखंड धारकों से लिए जा चुके हैं । जिसका कोई हिसाब किसी भी सरकारी विभाग में संस्था द्वारा नहीं दिया गया है और आज तक भी विकास कार्य पूर्ण नहीं किया गया है । पदाधिकारियों द्वारा संस्था को एक लाभ का व्यवसाय बना दिया गया है जबकि संस्था का गठन भूखंड धारकों की आवासीय समस्याओं को सुलझाने के लिए किया गया था । किन्तु संस्था पदाधिकारियों द्वारा सहकारिता विभाग के अधिकारियों के साथ साठगांठ कर वर्षो से संस्था को पुश्तैनी व्यवसाय की तरह आये का एक स्त्रोत बना लिया गया है । भूखंड धारको से शुल्कों के नाम पर संस्था द्वारा धन राशि वसूली जा रही है और फिर भूखंड हड़पने / धन एठने की नियत से भूखंड धारको से प्राप्त शुल्कों से ही विभिन्न न्यायलयो में फर्जी वाद प्रस्तुत कर वर्षो से उनको उलझा रखा है जिस शुल्कों का उपयोग विकास कार्य में करना चाहिए था । उस से भूखंड हड़प कर संस्था को व्यवसाय बना दिया । इसके विरुद्ध आज तक सहकारिता विभाग द्वारा क्यों कोई कार्यवाही नहीं की गयी ?

प्रशासन से पीड़ित भूखंड धारक निम्नलिखित तथ्यों के आधार निष्पक्ष जांच हेतु “सयुक्त संचालक कोष एवं लेखा विभाग” और “स्थानीय निधि संपरीक्षा विभाग” और "आर्थिक अपराध शाखा" जांच एजेंसियों से मामले की जांच करने की विनती करते है:


1.    विगत 20 वर्षों में 90% भूखंड मूल सदस्यों द्वारा विक्रय कर दिए गए और संस्था द्वारा नए भूखंड धारकों से सभी प्रकार के शुल्क प्राप्त किए गए किंतु नामांतरण एक भी भूखंड धारक का नहीं किया गया ऐसा क्यों ?

2.    यदि 90% भूखंडो के विक्रय मूल सदस्यों द्वारा कर दिया गया है और नए भूखंड धारको के नामांतरण संस्था द्वारा नहीं किया गया और न उन्हें मतदान के अधिकार नहीं मिला तो संस्था में चुनाव किस आधार पर हो रहे है । जब मूल सदस्य ही नहीं है तो ?

3.     पुनः विकास शुल्क की राशि का निर्धारण किन आधारों पर हुआ है ? वर्ष 2011 पश्चात संस्था की ऑडिट क्यों नहीं हुई ?

4.       वर्ष 2011 में जो पुनः विकास शुल्क राशि ₹80 प्रति वर्ग फीट निर्धारित हुई थी । उसे बढ़ाकर ₹150 प्रति वर्ग फीट और उसके पश्चात ₹170 प्रति वर्ग फीट और फिर पुनः ₹175 प्रति वर्ग फीट कर दी गई । किस आधार पर इससे संबंधित किसी भी प्रकार के दस्तावेज़ सहकारिता विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?

5.       संस्था द्वारा चुनाव की प्रक्रिया कब हुई और किन-किन सदस्यों ने मतदान किया । उसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है क्यों ?

6.       संस्था की आमसभा (जनरल मीटिंग) के रजिस्टर एवं अन्य जानकारियाँ उपलब्ध क्यों नहीं है ?

7.       संस्था द्वारा वर्ष 1997 में जब सभी भूखंडों का आवंटन सदस्यों को कर पंजीकरण करवा दिया गया था किंतु फिर भी विगत 25 वर्षों से संस्था सीधे रूप से भूखंडों का क्रय विक्रय बाजार में कर रही है यह कैसे संभव है ?

8.       विगत कुछ वर्षों में भी संस्था द्वारा कुछ भूखंडों का विक्रय सीधे तौर पर किया गया और यह विक्रय सन 1997 के निर्धारित राशि पर किया गया किंतु क्या नए भूखंड क्रेता से धनराशि भी पुराने मूल्य से ली गई या आज के बाजार भाव से ली गई इसकी भी जांच की जाए ?

9.       कितने भूखंड धारकों का पुनः विकास शुल्क जमा हो चुका है इसकी जानकारी सहकारिता एवं नगर निगम विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?

10.   अभी तक कॉलोनी में जो विकास कार्य हुआ है उसका खर्च का विवरण , प्रारंभ से आज तक किसी भी सरकारी विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?

11. संपत्ति पंजीकरण कानूनी रूप से सभी दस्तावेजों की रिकॉर्डिंग को संदर्भित करता है प्लॉट रजिस्ट्री एक अनुबंध पत्र नहीं है जिसे रद्द किया जा सकता है, यह एक संपत्ति का पंजीकृत विलेख है । जिसे स्वामी द्वारा हस्तांतरित किया जा सकता है तो फिर संस्था द्वारा सहकारिता एवं अन्य न्यायलयों से विक्रय पत्र को शुन्य / निरस्त करने हेतु आवेदन किसे दिया जा रहा है ।

इस तरह तो संस्था के पदाधिकारी सदियों तक संस्था का उपयोग व्यवसाय के रूप में करते रहेंगे । सहकारिता विभाग द्वारा भूखंड धारको के शिकायतों के बावजूद क्यों कोई उचित कार्यवाही कर भूखंड धारको का नामांतरण कर, भवन निर्माण अनुमति प्राप्त  कर उनकी रहवासी समस्याओं के समाधान करने हेतु उचित कदम नही उठाये गए ।

संस्था द्वारा की जा रही वित्तीय अनियमितताओं की जांच “सयुक्त संचालक कोष एवं लेखा विभाग” और “स्थानीय निधि संपरीक्षा विभाग” एवं संस्था और सहकारिता के अधिकारियों के संरक्षण में किया जा रहे घोटालो और अनियमितताओं की जांच उपरोक्त तथ्यों के आधार पर "आर्थिक अपराध शाखा" द्वारा कराये जाने के अनुरोध इस पत्र के माध्यम से भूखंड धारको द्वारा किया जा रहा है ।

अन्यथा असंवैधानिक रुप से कार्य कर एवं भूखंड धारकों के अधिकारों का हनन करने वाली संस्था को संरक्षण देने ने वाले विभागों की कार्यप्रणाली मे सुधार एवं पीड़ितों को न्याय पाने के लिए “जनहित याचिका” के तहत आवेदन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना पड़ेगा ।

पीड़ित भूखंड धारको द्वारा

deepkunjcolony@gmail.com
 

माननीय मुख्यमंत्री महोदय एवं कलेक्टर महोदय व अन्य प्रशासनिक अधिकारीगण,
 
निवेदन है कि जिस प्रकार बॉबी छाबड़ा द्वारा सहकारिता विभाग के जिन अफसरों के साथ सांठगांठ कर घोटाले किए गए और अब बॉबी छाबड़ा के साथ-साथ उन सभी सहकारिता अधिकारियों की भी जांच की जा रही है और उन पर भी कार्रवाई होगी । उसी तरह जय लक्ष्मी गृह निर्माण सहकारी संस्था द्वारा विगत 30 वर्षों से किए जा रहे घोटाले और संस्था को व्यवसाय की तरह चलाया जा रहा है । यह भी बिना सहकारिता विभाग की मिलीभगत के संभव नहीं है । पूर्व में भी चार बार अनियमितताओं और घोटालों की वजह से संस्था की समिति भंग की जा चुकी है और प्रशासक नियुक्त किए गए थे किंतु 30 वर्ष बीत जाने के बाद भी दीपकुंज कॉलोनी के 185 भूखंडों में से एक भी भूखंड पर भवन नहीं बन पाया है । संस्था के पदाधिकारी संस्था को व्यवसाय की तरह चला रहे हैं । जिसमें सहकारिता विभाग ही नहीं नगर निगम अधिकारी भी शामिल है ।

आज दिनांक को भी संस्था का संचालक मंडल भंग है । आदेश क्रमांक/गृहविधि/2020/08 दिनांक 01.01.2020 से संस्था के संचालक मंडल को म.प्र. सहकारी अधिनियम की धारा 1960 की धारा 53(1) के अन्तर्गत भंग किया गया है ।
 साथ ही कार्यालयीन पत्र क्रमांक/गृहविधि/2020/09 दिनांक 01.01.2020 से संस्था के संचालक मंडल के विरूद्ध अधिनियम की धारा 76(2) के अन्तर्गत आपराधिक प्रकरण दर्ज कर श्री पी. के. जैन को अधिकारी नियुक्त किया गया है ।
किंतु 3 महीने पूर्व संस्था की कॉलोनी दीपकुंज के 30 से भी ज्यादा भूखंड धारकों द्वारा  शिकायतें सहकारिता विभाग में की गई थी । जिनको संस्था द्वारा साठगांठ कर पुनः दबा / बंद कर दिया गया । बिना शिकायतकर्ता के पक्ष की संज्ञा लिए । एक भी भूखंड धारक को निराकरण नहीं मिल पाया ।

प्रशासनिक अधिकारियों से निवेदन है कि कृपया कर संस्था की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की जाए एवं 30 वर्षों से जो भूखंड धारक वैध भूखंड पर भवन निर्माण करना चाहते हैं उन्हें भवन निर्माण की अनुमति दी जाए ।
निष्पक्ष और पारदर्शी से तात्पर्य है कि वर्तमान भूखंड धारक को एवं संस्था के मूल सदस्यों को जांच में शामिल किया जाए जो अधिकार मूल सदस्यों को होते हैं पंजीकृत पत्र के बिंदु क्रमांक 4 - 5 के अनुसार वे सारे अधिकार भूखंड क्रेता को स्थानांतरित हो जाते हैं । तो उस अधिकार से मूल सदस्य द्वारा परेशान होकर जिन्हें भूखंडों को विक्रय किया गया है, नए / वर्तमान भूखंड मालिक को वे सारे अधिकार प्राप्त हो और उन्हें भी इस जांच में शामिल किया जाए ।

क्योंकि विगत 30 वर्षों में परेशान होकर लगभग 90% से ज्यादा मूल सदस्यों द्वारा भूखंड का विक्रय कर दिया जा चुका है तो कृपया कर नए क्रेता / वर्तमान भूखंड मालिक को जांच में शामिल करें जो कि न्याय पूर्वक होगा ।

कई ऐसे बिंदु हैं जो पूर्व में भी चार बार जब संस्था भंग हुई थी और अभी भी जब संस्था भंग है जिनके आधार पर जांच होना चाहिए और इन सभी दस्तावेजों की उपलब्धता सहकारिता एवं नगर निगम विभाग में होना चाहिए :

1. वर्ष 2011 पश्चात संस्था की ऑडिट क्यों नहीं हुई ?
2. यदि कॉलोनी में एक भी भवन निर्माण नहीं हो पाया तो धरोहर स्वरूप सुरक्षा निधि के रूप में सुरक्षित प्लॉट नगर निगम से किन आधारों पर संस्था द्वारा छुड़वा लिए गए ? नगर निगम की फाइलों में इससे संबंधित दस्तावेज उपलब्ध क्यों नहीं है ?
3. विगत 20 वर्षों में 90% भूखंड मूल सदस्यों द्वारा विक्रय कर दिए गए और संस्था द्वारा नए भूखंड धारकों से सभी प्रकार के शुल्क प्राप्त किए गए किंतु नामांतरण एक भी भूखंड धारक का नहीं किया गया ऐसा क्यों ?
4. सन 1999 में नगर निगम से जय लक्ष्मी हाउसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटी  द्वारा सर्वप्रथम दीपकुंज कॉलोनी के विकास की अनुमति ली गई थी । उस समय विकास कार्य अपूर्ण एवं गुणवत्ताहीन होने पर नगर निगम द्वारा पत्र क्रमांक : 1667 / कॉलोनी सेल /07, इंदौर ने भवन निर्माण अनुज्ञा निरस्त कर दी गई । तो फिर धरोहर स्वरूप भूखंडों को कैसे नगर निगम द्वारा छोड़ दिया गया ?
5. ऐसी विषमता और न्याय प्राप्ति हेतु सदस्य नगर पालिका निगम के पूर्व आयुक्त महोदय श्री सीबी सिंह एवं उपायुक्त श्रीमती लता अग्रवाल व श्री केदार सिंह एवं सहकारिता के पूर्व उपायुक्त श्री काडमू पाटनकर, श्री जगदीश  कन्‍नौज,  निरीक्षक श्री संजय कुचन्‍कर, निरिक्षक श्री जगदीश जलोदिया एवं श्री जगदीश खिची से कई बार संपर्क करते रहें किंतु आज दिनांक तक भवन निर्माण अनुमति और संस्था पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई क्यों ?
6. वर्ष 2012 में संस्था द्वारा नगर निगम से पुनः विकास 1 वर्ष में पूर्ण करने के लिए अनुमति पत्र क्रमांक 2283/12 दिनांक 02/01/2012 को प्राप्त की किंतु विगत 8 वर्षों में भी विकास कार्य पूर्ण नहीं किया गया जबकि पुनः विकास अनुमति की शर्त के अनुसार 1 वर्ष में संस्था को विकास कार्य पूर्ण करना था इसके विरुद्ध नगर निगम ने कोई भी कार्यवाही क्यों नहीं की ?
7. विभिन्न न्यायालयों द्वारा संस्था के पक्ष में और विरुद्ध कई बार आदेश पारित किए हर बार सिर्फ संस्था के पक्ष वाले आदेशों का ही पालन किया गया किंतु संस्था के विरुद्ध जो भी आदेश दिए गए उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई ऐसा क्यों ?
8. पुनः विकास शुल्क की राशि का निर्धारण किन आधारों पर हुआ है ? इससे संबंधित किसी भी प्रकार के दस्तावेज सहकारिता विभाग और नगर निगम दोनों कार्यालयों में क्यों उपलब्ध नहीं है ?
9. वर्ष 2011 में जो पुनः विकास शुल्क राशि ₹80 प्रति वर्ग फीट निर्धारित हुई थी । उसे बढ़ाकर ₹150 प्रति वर्ग फीट और उसके पश्चात ₹170 प्रति वर्ग फीट और फिर पुनः ₹175 प्रति वर्ग फीट कर दी गई । किस आधार पर इससे संबंधित किसी भी प्रकार के दस्तावेज सहकारिता एवं नगर निगम के किसी भी विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?
10.  संस्था द्वारा चुनाव की प्रक्रिया कब हुई और किन-किन सदस्यों ने मतदान किया । उसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है क्यों ?
11. संस्था की आमसभा (जनरल मीटिंग) के रजिस्टर एवं अन्य जानकारियां उपलब्ध क्यों नहीं है ?
12. संस्था द्वारा वर्ष 1997 में जब सभी भूखंडों का आवंटन सदस्यों को कर पंजीकरण करवा दिया गया था किंतु फिर भी विगत 30 वर्षों से संस्था सीधे रूप से भूखंडों का क्रय विक्रय बाजार में कर रही है यह कैसे संभव है ?
13. विगत कुछ वर्षों में भी संस्था द्वारा कुछ भूखंडों का विक्रय सीधे तौर पर किया गया और यह विक्रय सन 1997 के निर्धारित राशि पर किया गया किंतु क्या नए भूखंड क्रेता से धनराशि भी पुराने मूल्य से ली गई या आज के बाजार भाव से ली गई इसकी भी जांच की जाए ?
14. कितने भूखंड धारकों का पुनः विकास शुल्क जमा हो चुका है इसकी जानकारी सहकारिता एवं नगर निगम विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?
15. अभी तक कॉलोनी में जो विकास कार्य हुआ है उसका खर्च का विवरण , प्रारंभ से आज तक किसी भी सरकारी विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?
16. सहकारिता में नामांतरण की प्रक्रिया क्या है ? और संस्था द्वारा नामांतरण क्यों नहीं किए जा रहे हैं ?
17. विगत 30 सालों में भी कालोनी में एक भी मकान क्यों नहीं बन पाए ?
18. कॉलोनी का विकास कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है नगर निगम, सहकारिता एवं अन्य विभागों द्वारा सभी प्रकार के शुल्क भूखंड धारकों से वर्षों से प्राप्त किए जा रहे हैं तो फिर एक वैध कॉलोनी में भवन निर्माण अनुमति क्यों नहीं प्रदान की जा रही है जबकि प्रशासन द्वारा अवैध कॉलोनियों को भी वैध किया जा रहा है ?
19. सहकारिता की गृह निर्माण संस्थाओ की जांच "रेरा" के अंतर्गत होना चाहिए और सभी संस्थाओ को रेरा में पंजीकृत होना चाहिए जिसे से घोटालो को रोका जा सके ।
20. कॉलोनी की जिस एक छोटी सी सड़क जिस पर भूखंड क्रमांक 1 से 11 तक के भूखंड आते हैं जिसे बनाने का काम संस्था द्वारा नहीं किया जा रहा । उस पट्टी के भूखंड धारकों के साथ विवादों के चलते । उसके लिए अन्य सभी भूखंड धारकों द्वारा एवं संस्था द्वारा नगर निगम, कलेक्टर कार्यालय एवं अन्य विभागों में आवेदन दिया जा चुका है कि कृपया कर उस एक सड़क को छोड़कर बचे 170 से ज्यादा भूखंडों पर भवन निर्माण की अनुमति प्रदान की जाए । जिस प्रकार आंशिक अनुमति पूर्व में भी कई कॉलोनियां जैसे कि बृज मोहिनी में प्रशासन द्वारा दी गई तो फिर दीपकुंज कॉलोनी में 11 भूखंडों को छोड़कर बाकी के 170 से ज्यादा भूखंडों जहां पर संपूर्ण विकास कार्य हो चुका है संस्था एवं सभी सरकारी विभागों द्वारा विभिन्न प्रकार के शुल्क एक नहीं दो बार लिए जा चुके हैं वहां पर भवन निर्माण अनुमति क्यों नहीं दी जा रही ?

इन सभी बिंदुओं के आधार पर निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की जाए और पीड़ित भूखंड धारकों को न्याय दिलाया जाए.

बुनकरों की मुर्री बंद हड़ताल

लखनऊ : आज वाराणसी समेत पूरे पूर्वांचल में बुनकरों द्वारा शुरू की गयी मुर्री बंद हड़ताल को ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट और वर्कर्स फ्रंट ने समर्थन दिया है. समर्थन की घोषणा करते हुए प्रेस को जारी अपने बयान में आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी और वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने कहा कि उत्तर प्रदेश में वन डिस्टिक-वन प्रोजेक्ट का सरकारी दावा छलावा साबित हुआ है. पूरे प्रदेश में सिवाए हवा हवाई घोषणाओं के कहीं भी छोटे-मझोले उद्योगों और बुनकरी को बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है.

न तो बुनकरों को सरकारी इमदाद दी जा रही है और ना ही उनके कर्जा, बिजली बिल माफी और उन्हें राहत पैकेज देने की न्यूनतम मांग को पूरा किया जा रहा है. परिणामस्वरूप बुनकर आत्महत्या कर रहे हैं. मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक बुनकर परिवार ने तो तंगहाली में राजघाट के पुल से अपने बच्चों समेत जान दे दी. उन्होंने कहा कि बुनकरों की हालत तो पहले से ही खराब थी लेकिन कोरोना महामारी में सरकारी नीतियों ने उनकी कमर ही तोड़ दी है. बुनकरों को मिलने वाला सस्ती बिजली की पासबुक को योगी सरकार ने खत्म कर दिया और बिजली की कीमतों को लगातार बढ़ाकर इस महामारी में उन्हें बर्बादी की ओर धकेल दिया है.

उनके उत्पादों पर टैक्स लगातार बढ़ाए जा रहे हैं और लागत सामग्री की कीमतों में वृद्धि हो रही है. वहीं योगी सरकार और उसके आला अधिकारी सिर्फ घोषणाएं करने और सब्जबाग दिखाने में व्यस्त हैं. नेताओं ने मांग की है कि तत्काल प्रभाव से बुनकरों का बिजली बिल और सभी प्रकार का कर्जा माफ करना चाहिए, लागत सामग्री पर लगे टैक्सों को खत्म करना चाहिए, पुरानी सस्ती बिजली की पासबुक व्यवस्था बहाल करनी चाहिए और साथ ही हैंडलूम व हथकरघा निगम जैसे सरकारी संस्थानों के जरिए उनके उत्पाद की खरीद को सुनिश्चित कर उसे देशी विदेशी बाजारों में बेचने की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि बुनकरों को बेमौत मरने से बचाया जा सके और उनकी जिंदगी की सुरक्षा हो.

एस. आर.दारापुरी
 राष्ट्रीय प्रवक्ता,
 ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
 

1.9.20

One more scribe dies of Covid-19: JFA expresses grief



Guwahati: As casualties among media persons to Covid-19 complications
continue to grow in India, Journalists’ Forum Assam (JFA) appeals to
every scribe to be cautious and careful in safeguarding themselves
along with their families while reporting from the ground. The forum
also urges the Union government in New Delhi to announce a
comprehensive insurance policy for the media corona warriors.
Lately, a young television  journalist from Kanpur (Uttar Pradesh)
succumbed to novel corona virus infections. Neelanshu Shukla (30), who
 was associated with AajTak, tested positive for Covid-19 on 20 August
and died on 31 August 2020 in the hospital. Shukla, a bachelor, also
worked for NDTV and Republic TV as a Lucknow correspondent.
Earlier, Maharashtra’s veteran journalist Ashok Churi, who edited
Marathi weekly PalgharTimes, died at  a Palghar based  hospital, who
later tested positive for Covid-19. Similarly, a young photo
journalist from Punjab (Jai Deep), who worked for a Patiala based
newspaper, died of corona related ailments.
Tirupati (Andhra Pradesh) based television reporter Madhusudan Reddy
and video journalist M Parthasarathy also succumbed to corona
complications. Tamil Nadu television reporter Ramanathan and Orissa
journalists namely Simanchal Panda, K Ch Ratnam & Priyadarshi Patnaik
also lost their battles against the virus.
New Delhi based scribe Tarun Sisodia  killed himself undergoing
treatment at All India Institute of Medical Sciences.  The
printer-publisher of AsomiyaKhabar (Rantu Das) died of heart-failure
at a Guwahati  hospital, who later tested positive for Covid-19.
Chennai based news videographer E Velmurugan, Chandigarh based news
presenter Davinder Pal Singh, Hyderabad based television scribe Manoj
Kumar, Agra based print journalist Pankaj Kulashrestha and Kolkata
based photojournalist Ronny Roy earlier died of Covid-19.
“Till date, over one hundred Assam based media persons turned positive
for the virus infection,” said a statement issued by JFA president
Rupam Barua and secretary Nava Thakuria adding that the worrisome
development has not been reported by the concerned news papers, news
channels and digital platforms properly except a few infected  media
persons made personal revelations in the social media.
“Need not to remind that it is the duty and responsibility for
newspapers, news channels, digital outlets to report correctly about
the corona warriors and also the victims within the media fraternity,”
asserted the statement adding that they would definitely continue
playing an important role along with the practicing doctors, nurses,
sanitation workers and police personnel during the pandemic.