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21.11.07

जब गब्बर की शिन सेन से मुलाकात हुई

कल बच्चों ने फिर ज़िंद की कि पापा कहानी सुनाओ। क्या सुनाऊं, सोचता रहा। बचपन में जितनी कहानियां सुन रखी थीं हुंड़ार, सियार, भेड़िया, राजकुमार, हनुमान, राम, शंकर, राक्षस, नदी....सब सुना डाली। अब क्या सुनाऊं। तब लगा कि ये बच्चे जिन नए कैरेक्टर्स को बेहद पसंद करते हैं, उन पर कहानियां गढ़ी जाएं। और, इन कैरेक्टर्स को मैं भी खूब पसंद करता हूं। जैसे, मिस्टर बीन, टाम जेरी, शिन सेन....। लंबी लिस्ट है, लेकिन मेरे पसंदीदा ते यही चारों हैं। शिन सेन मुझे बड़ा अच्छा लगता है। मेरे बच्चे जितना पसंद करते हैं, शायद उनसे भी ज्यादा। वो खुलकरर हंसकर अपनी खुशी का इजहार कर लेते हैं तो मैं हलके हलके मुस्कराते हुए। कहानी सुनाने की जिद मैंने पूरी कि शिन सेन को लेकर एक और नई कहानी गढ़ते हुए। साथ में ले आया गब्बर सिंह को। कहानी कुछ यूं बनी....(इसमें मजा तब आयेगा जब ये पढ़ते हुए आप शिन सेन और गब्बर की स्टाइल में बोलने की भी कोशिश करें)

एक बार गब्बर घोड़े से जा रहा था। रास्ते में उसे शिन सेन मिला। वो गब्बर के घोड़े के सामने खड़ा हो गया। घोड़ा रुक गया। गब्बर को गुस्सा आया। वो बोला...
गब्बर - ये घोड़ा क्यों रुका सांबा
सांबा- आगे एक बच्चा है
गब्बर- मेरे घोड़े को आजतक कोई आदमी नहीं रोक पाया, इस छटंकी से कैसे रुक गया घोड़ा, लगता है इसे अपने जान की परवाह नहीं है या यह गब्बर को नहीं जानता
शिन सेन- ओ हो, ये छटंकी क्या होता है
गब्बर- इस आलू जैसी शक्ल वाले छटंकी की इतनी हिम्मत कैसे हो रही है कि वो जबान लड़ा रहा है गब्बर से
शिन सेन- ये गब्बर कौन है
गब्बर - तेरे सामने खड़ा है छटंकी, तुझे जान प्यारी है या नहीं
शिन सेन- जान खाने में चाकलेट जैसा लगता है क्या
गब्बर - तू हटता है सामने सा या घोड़े को तेरे उपर चढ़ा दूं...
शिन सेन- हां, मुझे घोड़े पे चढ़ना है, मुझे घोड़े पे चढ़ना है, मुझे घोड़े पर चढ़ा दो मोटू, घोड़े पर चढ़ा दो, बड़ा मजा आएगा, ओए ओए बड़ा मजा आएगा (गब्बर की तरफ पिछवाड़ा करके नाचते हुए)
गब्बर - ये पागल लड़का मरेगा आज घोड़े के पैरों से
शिन सेन- पागल तो बड़े लोग होते हैं
गब्बर - रुक, घोड़ा चढ़ाता हूं तेरे पर....चल घोड़े...
((शिन सेन ने लेजर लाइट वाला खिलौना आन किया और घोड़े की आंख पर रोशनी फेंक दी, घोड़ा हिनहिना कर पैर उटाता है और पीछे की ओर पलटकर भागता है, गब्बर गिरा धड़ाम से))
शिन सेन- बड़ा मजा आया, घोड़े ने मोटे को गिराया, बड़ा मजा आया, घोड़े ने मोटे को गिराया
शिन सेन- गिरने में मजा आता है अंकल
गब्बर- सांबा, कितनी गोलियां हैं रे
सांबा- तीन सरदार
गब्बर- तो ये लो, दो निकाल दिया..ठांय ठांय, अब कितनी बची
सांबा- एक सरदार
शिन सेन- तुम्हें काउंटिंग नहीं आती क्या मोटू....तीन में से दो निकलने पर तो एक ही बचेगा, फिर पूछ क्यों रहे हो...लगता है पढ़ने में कमजोर थे
((सांबा हंसता है, पूरा गिरोह हंसता है))
गब्बर - चुप रहो हरामजादों, तुम लोग खड़े खड़े मुंह क्या देख रहे हो
शिन सेन- तुम्हारा मुंह बहुत मोटा है, देखन में अच्छा लगता है.....

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खैर..हरि अनंत, हरि कथा अनंता...
इस पूरी कहानी को सुनाते हुए मैंने गब्बर और शिन सेन की बोलने की स्टाइल की नकल करने की पूरी कोशिश की जिससे बच्चों को मजा आ गया। मुझे लगा, ये प्रयोग तो ठीक है। रोज एक कहानी इसी तरह बना सकते हैं....पारंपरिक भारतीय पात्र और एक विदेशी पात्र की मुलाकात कराकर। जैसे...मिस्टर बीन की मुलाकात अगर लालू यादव से करा दी जाए तो कैसे रहेगा....

नए भड़ासियों का स्वागत....भड़ासियों की संख्या 40 हो चुकी है। लेकिन अभी ढेर सारे भड़ासी, जो चुपचाप भड़ास देखते हैं लेकिन मेंबर नहीं बन रहे, अनुरोध है कि भई जल्द मैदान में आओ और अपनी क्रिएटिविटी दिखाओ, माने भड़ास निकालो।

फिलहाल इतना ही
जय भड़ास

2 comments:

Ashish Maharishi said...

कहानी में दम हैं...तो लालू को कब मिला रहे हो बिन से

Sagar Chand Nahar said...

शिनशान मुझे भी बहुत पसन्द है और उसका नाम देखकर आपके यहाँ आया और मजा आ गया, आपने बिल्कुल उस शैली में लिखा है मानो शिनशान बोल रहा हो, मसलन-मुझे घोड़े पे चढ़ना है, मुझे घोड़े पे चढ़ना है, मुझे घोड़े पर चढ़ा दो मोटू, घोड़े पर चढ़ा दो, बड़ा मजा आएगा, ओए ओए बड़ा मजा आएगा
अब आपको हमें लालू- और मिस्टर बीन आदि से भी मिलवाना ही होगा।

॥दस्तक॥
गीतों की महफिल