इधर दिल टूटा उधर कुंठाएं मन के चेतक पे सवार सरपट हों जातीं हैं...?
क्यों ?
मन उदासी में डूब जाता है दोपहर ख़त्म होने का इंतज़ार करता मन शाम की कल्पना से सिहर जाता है....! इक तो नींद आती नहीं । जैसे तैसे नींद आ भी जातीं हैं तो बस तनाव भरे दिमाग के दरवाज़े अजीब से सपने तंगकरते हैं मुझे ..........?
कैसे निजात पाऊं इनसे भड़ास को जिस्म , और दिमाग से निकालना ज़रूरी होता है ।
आप ये करिये जरूर कीजिए
मन के कोने की भड़ास को निकाल दीजिये .... फिर खुली हवा में ज़िन्दगी जीने का मज़ा लीजिये ....!
कुंठा के सागर से मुक्ति मिल जाएगी और शुरू होगी नई दौड़ , बनेगा माहौल जीने का ।
आप उठिए मेरी तरह औंरों की तरह जो भड़ास निकाल के कुंठा का समापन कर देतें हैं ।
जीवन को रंगीन बनाने तनाव रहित रहने के कई तरीके हैं उन में सबसे बेहतर है मन को कुंठा विहीन रखना
आज मन खुश है मुझे किसी ने पग तले रोंधने के कोशिश नही की । किसी ने दिल नहीं तोड़ा
30.11.07
आज किसी ने दिल नहीं तोडा
Posted by
Girish Billore Mukul
Labels: कुंठा/भड़ास
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment