इसे भड़ास की लोकप्रियता कहें या उसके प्रति मेरा सम्मान। अब चाहे यशवंत भाई साहब इसे बुरा क्यों न मानें, मैंने उनसे बिना पूछे भड़ास२ शुरू कर दिया है। मैं और अबरार ने मिलकर भड़ास२ के बनाने के बरे में सोचा और चट बिचार, पट भड़ास२ शुरू कर दिया। भड़ास२ में मैंने मुतो कम हिलाओ ज्यादा का ब्लॉग वर्णन डाला है। वहीं मेरे साथी लफ्ज़ ब्लॉग चलाने वाले अबरार अहमद का कहना है की भड़ास२ सस्ती लोकप्रियता का एक सस्ता माध्यम है। अभी तो मैं इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहता हूँ। इसके बारे में केवल सचिन लुधियानवी को ही मालूम है , पर ब्लॉग के इस छोटी सी दुनिया में यह बात किसी से नहीं छिपेगी। इसलिए भड़ास पर यह पोस्ट डाल रहा हूं।
6.3.08
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3 comments:
jo krna hai kro...lekin kbhi-kbhi mut bhi lena
पंडित जी ,नाराज मत होइए ,मेरे अब्बा दि ग्रेट कहते हैं कि पोते कितने भी बड़े हो जाएं नीचे ही रहते है ...
भड़ास ज़िन्दाबाद
jaise baar kitna bhi lambaa kahe na ho jaae land ke niche hi uchhalta hai.kya ji galat bhi bola kya?
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