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8.3.08

मीडिया यानी लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ?

मीडिया में ग्लोबलाइजेशन का असली चेहरा उजागर होता जा रहा है। विदेशी पूंजी से संचालित मीडिया ने पुरानी अवधारणा को सिरे से नकार दिया है कि वह आज भी लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है। विदेशी पूंजी के सहारे उसे चौतरफा लाभ दिखाई दे रहा है। अब मीडिया अपने पाठकों व दशॆकों को ही बुराई लगने लगी है।

ग्लोबलाइजेशन की मदद से मीडिया ने पुराने आदशॆ को तिलांजलि देकर मुनाफा बाजार के नए मंत्र को स्वीकार कर लिया है। मीडिया के इस कदम के चलते उसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। अगर मीडिया मुनाफाखोरों से संचालित होगी, तो उसके फ्युचर की कल्पना की जा सकती है।

हालांकि यह भी है कि हिन्दी अखबार भी अपने आकार व सज्जा में सुंदर हो गई है। सरकुलनेशन भी उनका अंगेजी अखबारों से कहीं अधिक है। बाजार की मांग व पाठकों की पसंद को ही हिन्दी पत्रकारिता के लोग पूरा कर रहे हैं। इसके आधार पर वे क्रिकेट, काइम, कामेडी, सिनेमा व सेक्स को परोस रहे हैं।

जय भड़ास

जय हमशक्ल भड़ास

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

बालक,बड़ी सधी हुई उल्टियां कर रहे हो क्या बात है? मुंह पर से हाथ हटा कर जोर से उगल डालो तो राहत मिल जाएगी.... और न निकले गले की बात बाहर तो गले में उंगली डालो सब भक्क से बाहर आ जायेगा...
जय जय भड़ास

Ramashankar said...

हकीकत कहने का साहस कम ही रखते हैं लेकिन यह आज की मीडिया का सबसे स्याह चेहरा है. अब तो यह समझ में नहीं आता कि कौन बंदा एडीटोरियल का है और कौन विज्ञापन का. अब तो संपादकीय के लोग ही विज्ञापन की छाया में खबरे बनाते हैं या बिगाड़ते है.
स्थितियां तो यहां तक हो गई हैं कि कई खबरें विज्ञापन के नाम पर शहीद हो जाती हैं और रिपोर्टर अपने साथियों के बीच एडीटर की मां बहन कर अपनी भड़ास निकालता है...