((भड़ास की साथिन मुनव्वर सुल्ताना ने अपनी एक बेहद बोल्ड पोस्ट पेट और पेट से नीचे की ही... में महिला पुरुष की सेक्सुवल्टी पर कुछ अजीब पर तार्किक किस्म के सवाल उठाए हैं। और वे सवाल सामान्य या सतही नहीं बल्कि एक नई सोच, एक नई बहस, एक नई दृष्ठि को जन्म देने वाले हैं। पोस्ट तक तो ठीक, उस पर जो कमेंट आए हैं वो और भी ज्ञानवर्धक निकले। खासकर क्विन नामक किसी अनाम सज्जन या सज्जना की टिप्पणी। मुनव्वर जी की पोस्ट पर आईं टिप्पणियों को एक पोस्ट की शक्ल दे रहा हूं ताकि इस गंभीर लेकिन बेहद नाजुक विषय पर सारे भड़ासी ज्ञान प्राप्त कर सकें। हां, एक अनुरोध है कि अगर इस टापिक पर किसी को कुछ ज्ञान हो तभी वो इसमें नाक घुसेड़े, खामखा ज्ञान पेलने या बघारने न कूद पड़े और यूं ही राह चलते, कुछ कहने के लिए कहने को कुछ भी कमेंट न टिपिया दे। भई, मैं अपनी स्थिति का अभी से बयान कर सकता हूं कि इस नाजुक मसले पर मेरा अपना कोई सैद्धांतिक ज्ञान नहीं है, जो व्यावहारिक ज्ञान है उसका सार यही है कि शायद मैंने अपने स्वार्थ को ज्यादा वरीयता दी, दूसरे पक्ष की दिक्कतों को समझने की कोशिश कम की। कई बार इसके उलट रहा, दूसरे पक्ष की दिक्कतों को सिर माथे पर रखा और अपनी भावनाओं पर काबू करा। कैसे करा, ये भी बात देता हूं। ज्यादातर बार अपना हाथ जगन्नाथ के नारे पर अमल करते हुए, और कुछ बार ग़म भरे गाने सुनते हुए। वैसे मानवीय स्वभाव भी यही है, मजा भी यही है कि कभी अपने सुख के लिए दूसरे को दुख में होते हुए भी राजी कर लो और कभी खुद के दुख में होते हुए भी दूसरे के सुख की खातिर हंसते हंसते न्योछावर हो जाओ। वैसे, अपन का तो हिसाब रहा कि भइया, चलो मनाता हूं, अगर मान गए तो ठीक, न माने तो बिस्तरा अलग-अलग कमरे में लगा लेते हैं, न उठेगा धुआं, न लगेगी आग....वैसे, मैंने ज्यादा न बोलने की ठानी है क्योंकि मैं बोलूंगा तो ढेर सारे भाई लोग बोलेगा कि मैं बोलता हूं..:) वैसे, आप भी अपनी राय रखिएगा जरूर....जय भड़ास, यशवंत))
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डा०रूपेश श्रीवास्तव has left a new comment on your post "पेट और पेट से नीचे की ही ........":
मुनव्वर आपा,आपने तो खुदा को भी भड़ास के दायरे में ला दिया । भड़ास पर और पता नहीं क्या-क्या होना बचा है.....
जय जय भड़ास
Posted by डा०रूपेश श्रीवास्तव to भड़ास at 5/3/08 10:00 PM
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quin has left a new comment on your post "पेट और पेट से नीचे की ही ........":
और एक बात......... अगर जनता मैथुनोदरपरायण हैं तो उसे ऐसे ही रह्ने दो........ पुरुशों में पाये जाने वाले हारमोन खासकर टेस्टास्टोरोन ही उन्हे आक्रामक बनाता है...... इस हारमोन के प्रभावों को कम करने का सबसे सरल रास्ता मैथुन ही है....... अगर इनकी गर्मी मष्तिष्क में रह जाए तो आदमी औरों को मारता है, तरह तरह की खुफ़ारातें करता है......... अगर ज़रा तेज़ दिमाग हुआ तो विनाश के हथियार बनाता है या उन्हे इस्तेमाल करता है....... फ़ौजियों को दमित यूं ही नहिं रखा जाता..... यकीन ना आये तो किसी भी दिमाग के डॅक्टर या मनोवैग्यानिक से पूछ लें........ सड़ने दो लोगों को इस नर्क में अगर इससे हटा लिया तो अभी जितनी शान्ती धरती पर बची हुई है उसे भि ये लोग बचने नहिं देन्गे..... ये हारमोन काफ़ी खतरनाक है और सारे फ़साद की जड़ भी
Posted by quin to भड़ास at 6/3/08 12:14 AM
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quin has left a new comment on your post "पेट और पेट से नीचे की ही ........":
आयुर्वेद तो नहिं मालूम पर विग्यान तो यहि केह्ता है कि पेनेट्रेशन से गर्भ को हानि हो सकति है........ और यह भि सही है कि अधिकतर लोग ८-९ महीने तो क्या एक सप्ताह ब्रम्ह्च्र्य धारण नहिं कर सकते, उनका मस्तिष्क उसे नहिं करने देगा....... वैसे एन्डोक्राइन ज़्यादा सक्रीय होने की बात मेडीकल साइंस का स्थापित सत्य है......... मनोविग्यान की इस बात को हमें अब मान ही लेना चाहिये कि मनुश्य मूलतः एक पशु ही है। और स्त्री इन्कार करने की स्थिती में नहिं होती (अगर वो इन्कार करे तो मर्द का सिस्टम कहिं और सुख तलाशेगा)। यह स्थिती कमाऊ/ग्रहिणी दोनों तरह कि स्त्रीयों को असुरक्षा में डाल सकता है। पुरुष जो भी गलत करता है उसमें उसकी साज़िश कम और उसके endocrine system ;mainly testosterone and androgen का दोष ज़्यादा है। अगर कभी समय मिले तो अपने मनुष्य के श्रेश्ठ होने के सनस्कार को एक तरफ़ रख नीचे लिखी किताबें पढ़ें आप दुबारा पह्ले की तरह नहीं सोचेंगी
1. Men Are From Mars Women Are From Venus-------- John Gray
2. The naked ape------ Desmond Morris
3. Why men dont listen and women cant read maps------ Allen and Barbara pease
4. The human zoo-------- Desmond Morris
5. The naked woman------ Desmond morris
Note: Desmond Morris' books have been banned in some islamic/catholic nations for their provocative rationalism and strong feminist theme.
Posted by quin to भड़ास at 5/3/08 4:54 PM
आप उपरोक्त बातों से सहमत हैं?
6.3.08
मनुष्य मूलतः एक पशु है, स्त्री इनकार करने की स्थिति में नहीं होती??
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh
Labels: पुरुष, बहस, बोल्ड, भड़ास, मुनव्वर आपा, सेक्सुवल्डी, स्त्री
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5 comments:
are bhaiya is bare me mai apna gyan peloon to blog ki duniya me aag lg jaegi...islie chupae leta hoon...abhi bde din dekhne hain re bhai....
max muhal (anand.singhnews@gmail.com) to me
bhadasio ke dimagi kide ko khula maidan dene ke liye kya khub bahas chedi gayi hai. waise mathadhish ka nirdesh ki is babat gyan ho to tabhi aayen, ab kaun is gyanwarhak churan ko khayega. kaun kahe ki ham to bhai in sab se milo door rahte hain. Ab gyan ki hi baaten ho rahi hai to bata doon ki 9 mahine tak hi sambhog kiya ja sakta hai, basharte, sahi aasan maloom ho. yadi koi gyani bankar bager aasano ko jane mastishk ki bhookh mitane jata hai to parinam gambhir ho sakte hai. isliye bhai logo, aap 6 mahine tak hi mastishj ko khurak de.
jai bhadas
Posted By max muhal to भड़ास at 3/06/2008 01:18:00 PM
(उपरोक्त बातें एक अलग पोस्ट के रूप में भड़ास पर डाली गई थी, जिसे उसकी सही जगह, मूल आलेख की टिप्पणी में लाना पड़ा है...यशवंत)
दादा,डा.साहब कहीं लापता हैं क्या अभी तक कुछ प्रवचन नहीं मिले जरा तलाशिये तो बात आगे बढ़ेगी वरना हमे ही मोर्चा सम्हालना होगा ;वैसे एक पोस्ट डाली है.....
मुनव्वर सुल्ताना जी बेशक इस तथाकथित खुदा को कधघरे में खड़ा किया जाना चाहिए... मगर आपने कभी ये सोचा है की एक आदमी पे क्या बीतती है... आखिर हमें ऐसा बनाया किसने?? और क्यों?? और आदमी अगर सेक्स के बारे मैं हर ३० मिनट सोचता है तो क्यों??? सच तो यह है की हमारी Biology हमारे इस समय के साथ मेल नहीं खाती है.. पहले क समय में it was a world of High Mortality and High Fertility... Men were expected to copulate more and more with different partners... ताकि हमारी दुनिया हमारी नस्लें बनी रहे.. क्या आपको पता है की एक बैल किसी भी गाय के साथ सात बार से ज्यदा मैथुन नहीं कर सकता चाहे आप गाय के पुरे शरीर को ढक दें.. Mind You... आपका बैल (मुझे नाम नहीं पता, छमाप्राथी हूँ...) ज्यादा समय आपके आगे पीछे बिताता है अपनी प्राकृतिक / स्वाभाविक प्रतिक्रियाव से हर पल लड़ता हुआ... आपको लगता है ये आसान है??? क्या आप लड़ पाएंगी अपनी natural instincts से, कभी सोचा है आपने कैसा होगा एक सुन्दर साड़ी या सुइट देखकर उसपर comment किये बिना आँखे फेर लेना, या एक सुन्दर फूल देखकर उसकी खुशबु / तारीफ बैगैर आगे बढ़ जाना.. for men sex is as natural as praising a good dress (though they seldon notice & do that...) or smelling a flower or lusting on a chocolate candy (though the taste might last only 5 - 10 seconds...) what the heck... why not question the act of sexual union itself... why is it that the sex is 'so complicated in humans (& a few other species....)', why is it nor designed in a way bacterias or plants do... ???? NO... Thats not to be... Coz humans are to be taught... sex is surrender not a power game or a quest to pleasure alone... U need to surrender yourself in order to have great sex... if that 'level of surrender and mutual feelings are there then sex is good any time and in any condition... BUT THE FEELINGS GOTTA BE MUTUAL....
मुनव्वर सुल्ताना जी बेशक इस तथाकथित खुदा को कधघरे में खड़ा किया जाना चाहिए... मगर आपने कभी ये सोचा है की एक आदमी पे क्या बीतती है... आखिर हमें ऐसा बनाया किसने?? और क्यों?? और आदमी अगर सेक्स के बारे मैं हर ३० मिनट सोचता है तो क्यों??? सच तो यह है की हमारी Biology हमारे इस समय के साथ मेल नहीं खाती है.. पहले क समय में it was a world of High Mortality and High Fertility... Men were expected to copulate more and more with different partners... ताकि हमारी दुनिया हमारी नस्लें बनी रहे.. क्या आपको पता है की एक बैल किसी भी गाय के साथ सात बार से ज्यदा मैथुन नहीं कर सकता चाहे आप गाय के पुरे शरीर को ढक दें.. Mind You... आपका बैल (मुझे नाम नहीं पता, छमाप्राथी हूँ...) ज्यादा समय आपके आगे पीछे बिताता है अपनी प्राकृतिक / स्वाभाविक प्रतिक्रियाव से हर पल लड़ता हुआ... आपको लगता है ये आसान है??? क्या आप लड़ पाएंगी अपनी natural instincts से, कभी सोचा है आपने कैसा होगा एक सुन्दर साड़ी या सुइट देखकर उसपर comment किये बिना आँखे फेर लेना, या एक सुन्दर फूल देखकर उसकी खुशबु / तारीफ बैगैर आगे बढ़ जाना.. for men sex is as natural as praising a good dress (though they seldon notice & do that...) or smelling a flower or lusting on a chocolate candy (though the taste might last only 5 - 10 seconds...) what the heck... why not question the act of sexual union itself... why is it that the sex is 'so complicated in humans (& a few other species....)', why is it nor designed in a way bacterias or plants do... ???? NO... Thats not to be... Coz humans are to be taught... sex is surrender not a power game or a quest to pleasure alone... U need to surrender yourself in order to have great sex... if that 'level of surrender and mutual feelings are there then sex is good any time and in any condition... BUT THE FEELINGS GOTTA BE MUTUAL....
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