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6.3.08

वो गलियां और वो गालियां उर्फ काशी का मोहल्ला अस्सी

-का हो, कहवां मरावत रहलअ मरदे? रजा, तोहके कल्हियां से हम खोजत रही और तू हुअ कि हिजड़ा के लंड हो गइलअ? कहवां गांड़-मरौव्वल करत रहलअ?
- का बताई गुरु, बलिया से कल्हियां लोग आइल रहल, ओन्ही के खातिरदारी में समूचा पेला गइल। केहू इलाज खातिर, त केहू बाबा विश्वनाथ के पूजा खातिर बनारसे आवेला भाई आ रिश्तेदारन के पूरा पेल के जाला।
-अरे ई रंडुवारोदन छोड़, आवा तनी काशी गुरू के रंग लगावल जाई।
- का डा. साहब आप कबले अइल?-तनीके देर पहिले।
-अरे हम त आ जइती पहिले, मगर ई ससुर चार आना के चोदाई अऊ बारह के आना के दवाई वाला बतिया बतावत रहलन। आपही बताई एहका पेल्हड़ पियाई या पप्पू के चाय?
-ए पप्पू, दू ठे चाय अऊ द भाई।
-चाय का लंड मे देई? देखत हुअ एक्को गिलास खाली?......लगा जोरों का ठहाका....जिय गुरु...जिय...चहियाई आ लंड पियाई एक्के संग होई, का रजा। बहुते मजा आई।


जोगीड़ा सा...रा...रा...रा...रा..रा.. बुरा न मानो होरी है।


(पिछली होली का आंखों देखा हाल. इस बार अस्सी की होली आप भड़ास पर लाइव देख-पढ़ पाएंगे।)

3 comments:

Anonymous said...

PANKAJ BHAIYA...HILA DELA HO BHAIYA MAJJA AA GAYA ...ARO LABA NA..MAJA AAI ...SACHCHI MAJJA AAI...

यशवंत सिंह yashwant singh said...

मैं तो वृंदावन का सबसे बड़ा संत...रुस्तम दादा वाली पोस्ट लिखते लिखते रो रहा था, और जब पब्लिश कर दिया तो देखा की आपकी अस्सी वाली होली वाली पोस्ट पड़ी है।

पढ़ता गया और चेहरे पर मुस्कुराहट बढ़ती गई और फिर जोर जोर से पढ़कर हंसने लगा....लगा, जो गुबार भरा था, वो निकल गया, अब हलका हो गया....


भाई पंकज जी, दिल से धन्यवाद लीजिए जो आपने इतनी शानदार पोस्ट पढ़ाकर एक बार फिर हंसा दिया।

इसे कहते हैं रीयल भड़ास। एक तरफ वंदावन का असली संत रुस्तम दादा वाली पोस्ट जो मेरे दिल की भड़ास है, जिसे पढ़कर आप बिना सोचे नहीं रह सकते, और दूसरी आपकी ये पोस्ट, रीयल बनारस, रीयल पूर्वांचल बिहार की ध्वनि, लोक परंपरा, लोक बानी बोली को प्रतिध्वनित करती पोस्ट, जिसे पढ़कर आप हंसे बिना नहीं रह सकते। दो ये जो जीवन के कांट्रास्ट हैं, जिसे हम एक्सप्रेस करके वाकई एक सहज सरल मनुष्य बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
जय जय दोस्तों
जय भड़ास
यशवंत

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंकज जी यशवंत दादा का गुबार निकल गया और हमारा साला हंसी और आंसू घुलमिल कर खिचड़ी बन गये जिंदगी की ,सच में लगता तो ऐसा है कि पूरी दुनिया में यही खिचड़ी हर इंसान खा रहा है पर बताता नहीं है...
जय सखी-सहेली
जय दोस्त यार
जय स्वस्थ बीमार
जय चटनी अचार
जय जय भड़ास