-जिन दिनों भड़ास पर पाबंदी लगाने की कुछ साथियों ने साजिश रची थी और भड़ास ने उनको करारा जवाब देना शुरू किया, तो उन दिनों विवाद के केंद्र में रहे भड़ास और एक अन्य ब्लाग की टीआरपी कुछ इस कदर बढ़ी कि एडसेन्स खाते में डालरों की बरसात हो गई। ये बरसात आम दिनों के मुकाबले कई गुना ज्यादा था। ये मैं भड़ास के माडरेटर के बतौर निजी अनुभव के आधार पर कह रहा हूं क्योंकि उन दिनों पेज इंप्रेसन जबर्दस्त रूप से बढ़ चुका था। यही हाल उस दूसरे ब्लाग का भी था। मेरे लिए यह पहला अनुभव था कि विवाद होने से दाम ज्यादा मिलते हैं। इसी के चलते कुछ लोगों ने लिखा भी कि विवाद पैदा कराकर टीआरपी हासिल करने के साथ ही कमाई करने का यह फार्मूला है। उनकी बात कतई गलत नहीं है। इसलिए ये जान लीजिए कि कुछ कुख्यात ब्लागर जो लगातार विवाद पैदा करते रहते हैं उसके केंद्र में सिर्फ और सिर्फ कमाई करना होता है, इसीलिए अपने को गरियाकर या दूसरे को बेइज्जत कर, विवाद करिये और डालर कमाइए। भड़ास को यह ज्ञान इस जबरन दिलाए गए अनुभव के बाद पहली बार हुआ है। ईश्वर न करें, दाम के लिए हमें यह नीच हरकत करने की आदत लगे। हम तो खुद को जिंदा रखने के लिए पैना लेकर मैदान में उतर आते हैं ताकि दुश्मन के हाथों हलाल होने की बजाय लड़ते हुए बहादुरों की तरह मरें या फिर जिंदा बच गए तो जश्न मनाएं। इस बार तो जश्न वाले ही हालात हैं।
-विवाद खत्म करने के ऐलान के बाद भी कई ब्लागरों को लगातार उल्टियां हो रही हैं। ये उल्टियां स्वाभाविक उल्टियां नहीं हैं बल्कि उल्टी करने वालों को लाइव देख कर आ रही उबकाई के चलते हो रही उल्टियां हैं। सो, कुछ महिला ब्लागर व कुछ पुरुष ब्लागर लगातार भड़ास निकाल रहे हैं, अपने अपने ब्लागों पे, विवाद खत्म होने के बाद भी। उम्मीद है कि उनका बलगम वगैरह साफ हो जाएगा। कुछ लोग जो कुतर्क रूपी पुरानी रणनीति के जरिए अपने को साफ फाक होने करने की बात कह रहे हैं, तो इसके चलते उनका असली चेहरा और सामने आ जा रहा है, इससे सभी लोगों को यह समझने में सुविधा रहेगी कि आखिर रंगा सियार कौन है, और हालात बदलते ही किस तरह की भाषा बोलने लगा है।
-कुछ लोगों से फोन कर मैंने उनसे अपना गुनाह जानना चाहा तो उन लोगों ने वो वो कारण बताए जिसे सुनकर मैं दंग रह गया। मसलन, तुमने कई महीनों से तेल नहीं लगाया, फोन नहीं किया, हाल खबर नहीं ली...आदि आदि। अरे भइया, पहले इशारा कर दिये होते कि अगर गुट से दूर रहने का यह नतीजा होता है कि आप गला ही दबा दोगे तो सच्ची कह रहा हूं कि जरूर दुवा पल्लगी लगातार कर रहा होता। असली वजह पूछने पर बोले कि फोन पर नहीं मिलने पर बताएंगे। तो भइये, वैसे तो मिल लेता, लेकिन अब इस तरह के कुकृत्य करने के बाद मिलने में अपन का कोई इंटरेस्ट नहीं है। न तो तुम मेरे यहां राशन पहुंचा रहे हो और न मैं तुम्हारे लिए कुछ भला करने की सोच रहा हूं। मैं तो यही कहूंगा कि साजिशें रचना जारी रखो, कभी तुम जैसे शेरों को भड़ास जैसा सवा शेर भी मिलेगा तो अपने आप औकात पता चल जाएगी।
-भड़ासियों को इस विवाद से लाभ ही लाभ मिला है। एक तो कथित दोस्तों के चेहरे में छिपे दुश्मनों और दोस्ती के लबादे में छिपे अवसरवादियों की शिनाख्त हो गई है, साथ ही भड़ास का अपना खुद का घर भी सुधारने का मौका मिल गया है। सो, हम तो यही कहेंगे कि अगर ऐसी बलाएं लगातार आती रहें तो शायद भड़ास वाकई बिलकुल फिट दुरुस्त होकर एक स्मार्ट ब्वाय की तरह हो जाएगा। वैसे तो बाकी दिनों में जब कोई टोकता रोकता नहीं है तो भड़ासी बिलकुल अराजक होकर अल्ल बल्ल सल्ल करने लगते हैं, और मैं भी टुकुर टुकुर देखते हुए इन्हें नादान मानकर माफ करता रहता हूं। सो प्यारे भड़ासियों, क्या यह जरूरी है कि हम लोगों को रास्ते पर लाने के लिए कोई भाई लोग पैना लेकर गांड़ खोदें, तभी चेतेंगे। यार, इससे अच्छा तो है कि हम खुद ही सुधर जाएं और ये जो साले लगातार आरोप लगा रहे हैं कि हम लोग चूतिये टाइप लोग हैं तो इस लांछन को हटा देना ही अच्छा है। बोले तो भड़ास धीरे धीरे निकालो, उल्टियां रुक रुक कर करो ताकि इन लोगों को हम लोगों की लगातार होती उल्टियां देखकर उबकाई न आए और ये खुद उल्टी न करने लगे। वैसे, अगर सुधरने का मूड नहीं है तो कोई बात नहीं क्योंकि मैं खुद ही आज तक नहीं सुधरा तो दूसरों को क्यों सुधरने का उपदेश दूं।
-इस विवाद के बाद मैंने खुद तीसरी कसम खा ली है। किसी भोसड़ी वाले पर कभी भरोसा न करो। जो करना है अपने दम और बल पर करो। जो अच्छे और अपने माने जाते हैं, वो मौका आने पर सबसे पहले दुश्मनी कर लेते हैं, और जो अजनबी व बुरे लोग कहे जाते हैं, वही मुश्किल में काम आते हैं। अच्छे लोग तो केवल मीठी मीठी बातें करते हैं और मौका मिलने पर गांड़ काटने के लिए तैयार रहते हैं। और ये दिल्ली नगरी की दास्तान है जहां रहने वाला कोई भी शख्स कुछ ही दिनों में संवेदनहीन होकर सोकाल्ड प्रोफेशनल हो जाता है और लगता है आत्मकेंद्रित व अवसरवादी तरीके से सोचने। तो ऐसे में अगर इन अवसरवादियों के झांसे में आकर इन्हें दोस्त वोस्त मान लिया तो फिर समझो को हम दिल वालों को हो गया बेड़ा गर्क। तो भइये, अपनी कश्ती खुद खेवो, किसी को साथी मानकर चप्पू उसके हाथ में न थमा देना वरना वो तुम्हारी ही नैया डुबो देगा और खुद तैराकी के लंबे अनुभवों का इस्तेमाल कर पार निकल लेगा।
-जो लोग विवाद इसलिए करते हैं कि उन्हें विवाद से फायदा होता है तो उन्हें इस बार समझ में आ गया होगा कि दूसरों के घर में आग लगाने वालों के घर भी कभी कभी जल जाया करते हैं और उस भगदड़ में उनके अपने भी साथ छोड़ जाते हैं। या यूं कहें कि जो लोग अपना मानकर उस घर में रह रहे होते हैं उन्हें उसी दौरान पता चलता कि वो तो दरअसल जिस आग बुझाने वाले के घर में रह रहे थो वो दरअसल किसी दंगाई का घर था, और इतना पता चलते ही बोरिया बिस्तर उठा कर भाग रे भाग रे कहते हुए भाग लेते हैं।
-और जब विवाद हो रहा होता है तो कुछ लोग इसलिए सक्रिय हो जाते हैं कि उन्हें विवाद में इधर और उधर लगाने बुझाने में मजा आता है और इसी दौरान वे अपनी भी मार्केटिंग करने में लगे रहते हैं। तो ऐसे मिडिलमैनों ने इस बार भी खूब बहती गंगा में हाथ धोया और वो भी गंदा ये भी गंदा कहकर खुद को सबसे बड़ा अच्छा साबित करने में लगे रहे। ऐसे लोगों के लिए अगर एक बात कही जाए तो वो अनुचित न होगा कि अगर विवाद न हों तो ये लोग तो जीते जी मर जाएं और खुद का दर्शन कहीं न पेल पाएं, सो इन लगाई बुझाई करने वालों को इंतजार है कि देखो, अगला विवाद कब होता है ताकि खुद खाने पकाने का मौका मिलि जाए।
....जय भड़ास
यशवंत
3.3.08
विवाद के अंत के बादः कुछ झलकियां
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3 comments:
दादा,यह विवाद एक तरह का वरदान रहा है जिससे बात,जात,औकात सब स्पष्ट हो गईं । अच्छा है सीखने को ही मिलता है पर हर हाल में हमारी सादगी ,सहजता,सरलता ही धारदार हथियार के तौर पर काम आयी है और यही भड़ास की निजता है जो सदा कायम रहेगी ,जो उन्हें करना है वे कर रहे हैं जो हमे करना है हम कर रहे हैं जब वो नहीं बदलते तो हम क्यों अपना धर्म छोड़ दें....
जय जय भड़ास
are ab chhodo guru...mausm bdlo bhai...
विवाद को होरी के रंग में रंग कर उडा देना उचित रहेगा। वैसे मौका भी है और दस्तूर भी। भई फगुआ का आनंद लिजिए और धमाल मचाइये।
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