1. स्वप्न
मेरे जीवन में उतनी नींद नहीं
जितने स्वप्न हैं
बेशुमार हैं वे
और अंट नहीं पाते मेरी रातों में
शायद यही कारण है
कि मुझे मारनी पड़ जाती है दिन में भी
एकाध झपकी
मेरे हिस्से के एक छोटे-से संसार में
वे ज्यादातर अतीत से आते हैं सम्मोहित करते
और भटकते हुए
कुछ आत्मीय लोगों
और जानी-पहचानी जगहों के साथ
इस तरह
किसी और काल में घटित होते हुए
देखना उन्हें
निश्चित ही सपने से ज्यादा
कुछ है
बहरहाल ऐसे ही वे आते हैं
या मैं जाता हूँ
उन तक
कभी-कभी तो
नींद के बाद की एक जागती हुई नींद में भी
कितनी बचकानी वास्तविकता है यह
कि मैं स्वप्न देखता हूँ वैसे
जैसे
खतने के समय
चाकू चलाने से ठीक पहले
बच्चों को दिखाया जाता है
हंस का पंख
2.एक पुरातन आखेट-कथा
तुम्हारे नीचे पूरी धरती बिछी थी
जिसे तुमने रौंदा
वह सिर्फ़ स्त्री नहीं थी
एक समूचा संसार था फूलों और तितलियों से भरा ]
रिश्तों और संभावनाओं से सजा
जो घुट गयी तुम्हारे हाथों तले
सिर्फ़ एक चीख़ नहीं थी
आर्तनाद था
समूची सृष्टि का
हर बार जो उघड़ा परत दर परत
सिर्फ शरीर नहीं था
इतिहास था
शरीर मात्र का
जिसे तुमने छोड़ा
जाते हुए वापस अपने अभियान से
ज़मीन पर
घास के खुले हुए गट्ठर -सा
उसकी जु़बान पर तुम्हारे थूक का नहीं
उससे उफनती घृणा का स्वाद था
वही स्वाद है
अब मेरी भी ज़ुबान पर !
3.उसका सपना
सारा दिन काम में खटने के बाद
इस घिरती रात में
प्रेम से बहुत पहले ही कहीं
नींद खड़ी हैं
उसकी आंखों में
कुछ अर्द्धपरिचित सपने हैं
वहाँ
अपने होने की हर सम्भावना को पुख्ता करते हुए
उसके सो जाने के इन्तज़ार में
और उन सपनों की भीड़ में हो न हो
वह ज़रूर मैं ही हूँ -
एक भारी और सांवला बादल
छलाछल जल से भरा
बरस न पाने की मजबूरी में भटकता हुआ
धरती के ऊपर
यूं ही निठल्ला-सा
सपने में इतना कुछ देखा - ईजा-बाबू
भाई-बहन
बरसों की बिछुड़ी सखियाँ
कई सारे नगर-क़स्बे-बस्तियां
दिल्ली
लखनऊ
इलाहाबाद
रामनगर
पिपरिया
नैनीताल
अब सुबह जागते ही पूछेगी
यह बात -
कहाँ थे तुम ?
खड़ी हुई मल्लीताल रिक्शा स्टैंड पर अकेली घबराई-सी
खोजती तुम्हीं को तो
जाग पड़ी थी मैं अकबकाकर
तीन बजे रात !
शिरीष कुमार मौर्य, उम्र: 34 , लिंग: माले , उद्योग: कला
स्थान: नैनीताल : उत्तराखंड : भारत
हिंदी का कवि-अनुवादक और लगे हाथ अध्यापक भी......
नया पता - शिरीष कुमार मौर्य
हिन्दी - विभाग
डी.एस.बी परिसर महाविद्यालय
नैनीताल - २६३ ००२
फोन - 9412963674
sabhar:http://www.anunaad.blogspot.com/
8.4.08
शिरीष कुमार मौर्य की कविताएँ
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4 comments:
पंडित जी,लिंग माले यानि कि क्या? आपको याद होगा कि एक बार बोधि भइया ने इस बारे में लिख दिया था तो लोग नाराज हो गए थे। अगर वैसे मेरा भी लिंग माले ही है,मार्क्स और लेनिन याद हैं न?
लाल सलाम के संग जय जय भड़ास
रूपेश जी सलाम !
इसे लाल भी समझ सकते है !
sirish bhai,
lajawab, sanklan bhi,
kumar anupam
Jeevan se pyar aur jeevan ke liye nafarat karti laajavaab kavitain...abhaar.
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