जनता दल यू का राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कहा है की राजनीति मैं पाखण्ड आ गया है एक दिन कोई नेता बुंदेलखंड मैं धरना देता हुआ दिखाई देता है और दूसरे दिन वही नेता आई पी एल के मैच में चीयर अप करते हुए दिखाई देता है। यादव पुराने खांटी नेता हैं जिनकी पूरी जिन्दगी धरना प्रदर्शन करते पुलिस के लाठी खाते और सड़क से संसद तक की राजनीती करते बीती है। उनका सीधा इशारा राहुल गाँधी की ओर था।
बात मैं दम है हमें सोचना ही होगा की क्या यही भविष्य की राजनीती होने वाली है और अगर यह तय हो जाए तो यह भी सोचना होगा की इस तरह के जनता के ये पार्ट टाइम नुमाइंदे जनता के लिए क्या करेंगे। भारत की जनता पास आज भी कई ऐसे विषय हैं जिनका की उसे पक्का और पूरा जवाब चाहिए, जनता के ही ऐसे कई विषय हैं जो की गाँधी नेहरू की राजनीती से शुरू होकर आज तक सुलझ नही पाए हैं। एक तरफ़ ये जनता को सपने दिखाते हैं और स्वयं पेज थ्री होते जाते हैं । यहाँ चिंता सिर्फ़ युवा नेताओं से नही है ये पेज नेता अपने जनप्रतिनिधि होने का फ़ायदा अपने दायरे को बढ़ाने main उठाते हैं ताकि उनकी राजनीती के साथ अर्थनीति की भी प्रगति होते रहे। सवाल उनके लिए भी है की वे सोचे की कल आप गरीब जनता के साथ बैठकर उनके साथ हुए अन्याय की दुहाई देकर आंसू बहा रहे थे और आज यही जनता उन्हें इस कदर प्रसन्न मुद्रा मैं देख रही है।
आप प्रसन्न रहें सुखी और सानंद रहें जनता टू ऐसे नेताओं से यही पूछेगी जो कल हो रहा था वो क्या था और जो आज हो रहा है वो क्या है क्या जो कल हो रहा वो निरा पाखण्ड था जिसमें की हमारे आँसुओ मैं आपने अपनी चीत्कार मिलाकर मीडिया मैं लंबा सा फुटेज पा लिया और आज उस कल वाली दर्द का लेश मात्र अहसास भी आपके चेहरे पर नही। ये सब राजनीति मैं नही चलता आदरणीय जो आप लोग आम जनता की भावनाओं से खेल कर अपनी वोट की दूकान सजा रहे हो इसे व्यावसायिकता कहते हैं। अगर आप मैदानी राजनीति के पहरुआ होने की बात करते हैं टू आपको अपना कार्यक्षेत्र भी वही रखना होगा न की पेज ३ ।
अंत मैं सभी नेताओं से निवेदन करना चाहूँगा की इस भूखी और नंगी जनता जिसे दो जून की रोटी बड़ी मसक्कत के बाद मिलती है उसे इस तरह उपयोग मत करो तुम्हारे पास तो सबकुछ है इसे झूठे वादे करके अपने जाल मैं मत उल्झाओ उसे अपनी रोजी रोटी कमाने दो। और यदि आप उनके लिए कुछ नही कर सकते हो तो काहे को हलकान होते हो आप अपना काम करें ये जनता तो सीधी है आपको वोट दे ही देगी।
7.5.08
राजनीती का नया चेहरा कितना अपना कितना व्यावसायिक
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
वैसे राहुल गांधी इस लायक नहीं की उनके कार्यों पर प्रतिक्रिया दी जाए..
पर आदमी के शौक और कर्तव्य अलग अलग चीज़ हैं...मैं अगर गाँव में जा कर विकास का काम करता हूँ (वैसे करता तो नहीं ) तो ऐसा नहीं की मैं IPL के मैच ना देखूं...दोनों अलग अलग चीज़ है....
ना जाने लोग इंसान से जीज़स बन ने की उम्मीद क्यों करने करने लगते है...जो की नामुमकिन है..
PS: जीज़स ने जो किया वो तो आप जानतें ही है..पर कभी मुस्कुराते हुए नहीं दिखे...
ओह अंत में आपने जो उपसंहार कहा है.."अंत मैं सभी नेताओं से निवेदन करना चाहूँगा.."
इस ब्लोग को नेता लोग कहाँ पढ़ते हैं ?भाई साब..उनके पास भड़ास निकालने की अलग जरिये हैं ...तो ये निवेदन व्यर्थ ना हुआ...
मैंने तो यूँ ही इतनी बकवास की ...खाली बैठा था...
love..Masto...
ye bhi bhale
ve bhi bhale
BURI BAS JANTA....!!!
aapki baat vicharniy hai.
भाई संजीव,
राजनीति और धंधा एक दुसरे के पूरक हैं और ये बात तो सदियौं से चली आयी है नहीं तो तमाम व्यवसायी अपने व्यवसाय के रास्ते छोटी गली के रास्ते राज्यसभा में ना घुस पाते.
जय जय भडास
Post a Comment