Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

7.5.08

अगर आपकी प्रेमिका वेश्या निकल गई तो इसका मतलब ये थोड़े ही ना है कि सभी लड़कियां वैसी ही है

[भड़ास] New comment on परिवार का टूटना. Inbox
date 6 May 2008 11:52
subject [भड़ास] New comment on परिवार का टूटना.
mailed-by blogger.bounces.google.com

राय बहादुर राजेश्वर प्रताप सिंह has left a new comment on your post "परिवार का टूटना":

अक्षत मियां,

अभिनंदन,

लेकिन ये जो लेख लिखा है ना, उससे लगता है आप गदहे हैं, मूर्ख और जाहिल है, जिसे अचनाक कहीं कीबोर्ड मिल गया और बिना सोचे समझे जो मन मे आया टाइप कर दिया, जो लिखा है उसे दोबारा पढ़ा क्या आपने, पढ कर देखिए आपको अपनी मूर्खता समझमें आ जाएगी, जो नहीं आई तो आप जैसों का भगवान ही मालिक है।

बोलने और लिखने से पहले परख तो लिया कीजिए हुजूर कि जो कह रहे हैं वो कितना तथ्यपूर्ण है , अगर आपकी प्रेमिका वेश्या निकल गई तो इसका मतलब ये थोड़े ही ना है कि सभी लड़कियां वही और वैसी ही है, अगर आपका दोस्त चोर था तो क्या आपके जान पहचान के सभी लोग चोर हो गए,


क्यों महिलाएं नौकरी मिलते ही अपनी जिम्मेदारिया नहीं निभा पातीं, उससे भी पहले क्यों वो जिम्मेदारिया जिसे आप केवल उनके लिए लिए ही जरूरी मानते हैं, वो जिम्मेदारिया छोड़ महिलाएं काम के लिए घर से बाहर निकलीं, क्यों वो आर्थिक रूप से आजाद होने की सोचने लगी, वो इसलिए मिया क्योंकि घर में कमाने वाला मर्द था वो अगर आपने दुनिया देखी है तो जानते होंगे एक अलिखित नियम है जो पैसे खर्च करता है वही मालिक होता है, वही निर्धारित करता है वहीं बॉस होता है,

सदियों से मियां कमाने वाले मर्द को लगा कि औरते घर में बैठी कुछ करती नहीं, लेकिन जितना काम वो घर में करती हैं ना, जिस माहौल जिस तनाव में और जितना देर वो काम करती है, अगर अंतर्राष्ट्रीय मानक के हिसाब से उसकी मजदूरी तय हो तो वो किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के सीइओ के तनख्वाह के बराबर होगी।

लेकिन आपके जैसे मूर्ख लोगों को कभी ये दिखा ही नहीं, आप तो मदमस्त रहते हैं अधकचरे ज्ञान की अपनी अधूरी दुनिया में और ये सोचते कर खुश होते हैं कि आपको सबकुछ मालूम है।

कोई पैसे देकर आपको गाली दे आपकी मेहनत आपके काम की कोई कद्र ना करे तो कैसे आपका आत्मसम्मान जाग उठता है।

महिलाएं तो सदियों से यही झेल रही हैं, कभी ना कभी तो उनके भीतर भी ये विचार उठना ही था।
और जब भूमिकाएं बदलेंगी तो दूसरी चीजों पर असर पड़ेगा ही।

आपने कहा परिवार टूट रहे हैं, जिम्मेदार महिलाएं है, हैं भईया बिलकुल है, तो मूर्ख आदमी आपके इसी बात में ये तथ्य भी छिपा है कि परिवार को जोड़े रखने के लिए भी महिलाएं ही जिम्मेदार थी,
उनकी की कोशिश से ही परिवार बना रहता था। तो
आप क्या कर रहे थे उसवक्त ये इस वक्त भी क्या कर रहे हैं।
हर फिक्र को धुएं में उड़ा रहे थे, चौक की पान की दुकान पर खड़े हो कर 'माल' को निहार रहे थे। खुद को अक्लमंद और वुद्धिजीवी समझ पाने के लिए अनप्रोडक्टिव राजनीतिक चर्चाएं कर रहे थे।
चाय की दुकान पर साजिश रच रहे थे। कितना काम कर रहे थे आप सिवाय परिवार को बचाने की कोशिश के। आपको तो कभी लगा ही नहीं कि परिवार में आपकी भी कोई भूमिका है, स्कूल जाते बच्चे से लेकर दफ्तर में काम करने वाले व्यस्क मर्द तक - खाली मस्ती और मनोरंजन. और जिम्मेदारियां बेटियों की, बहनों की, मां और भाभियों की।

पैसे के बदले में पका पकाया खाना मिल जाता,
बिछावन मिल जाता, सेक्स मिल जाता,
बीमार पड़ो तो नर्स मिल जाती, घर साफ रहे नौकरानी मिल जाती, प्यार की जरूरत पूरा करने के लिए मां, बहन, प्रेमिका मिल जाती।

बस सबकुछ को निश्चित मान लिया कि ये सब ऐसा ही रहेगा। पैसा कमाकर लाए तो आदेश दोगे अपने को श्रेष्ठ समझोगे ही। तो
क्या करती महिलाएं, कभी तो अपने आप को खोजती अपने मन की करने की सोचती

नतीजे को लेकर रोने से पहले जनाब उसकी वजह भी तो जानिए, जो किया है उसका नतीजा तो भुगतना ही पड़ेगा। तो अब चिल्ल-पों क्यों, अब जब फट रही है तो चिल्ला क्यों रहे हो। ये शोर क्यों

सब आप जैसों का ही किया कराया है तो भुगता।


Publish this comment.

Reject this comment.

Moderate comments for this blog.

9 comments:

आनंद said...

बेहतरीन! इतना अच्‍छा जवाब मैंने आज तक नहीं देखा। बिलकुल स्‍पष्‍ट, टू द प्‍वाइंट।

यशवंत जी को बधाई कि आपने इस टिप्‍पणी को मुख्‍य पोस्‍ट की जगह दी। - आनंद

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

इसे कहते हैं भड़ाम भड़ाम भड़ास........
पैनी नजर और उससे भी पैनी नुकीली तीखी और चुभन भरी भाषा शैली......

KAMLABHANDARI said...

jab parivaar saath rahta hai iska shrey sabko milta hai.par samajh nahi aata ki jab parivaar tuthta hai to iska ekmatr karan hamesha aurat ko hi kyu maana jaata hai .
are mardo tum kya jaano ki parivaar ko jode rakhne ke liye aurat ko kitne papad belne padte hai.
yashwantji mard hokar bhi aapne jis tarha aurat ko samjha bahut accha laga.kaash aur mard bhi aapki tarh sochte to kitna accha hota.

..मस्तो... said...

राय बहादुर राजेश्वर प्रताप सिंह जी को मेरा सादर प्रणाम...
इतनी सही और सटीक प्रतिक्रिया देने के लिए आप बधाई के पात्र है...
आप की द्वारा की गयी रोशनी से कमज़ोर नज़र वाले लोग, कुछ देख ,समझ सकें...इस दुआ के साथ.. आमीन !!

love Masto

Piyush k Mishra said...

bhai badhai ho....
rajeshwar singh ji...itni sateek pratikriya dene ke liye...

Kuchh logon ki ungli jab bhi uthti hai..mahilaaon ki taraf hi uthti hai..inke ghar mein aaina nahin hota...
bhai aajkal baazaar mein do kaudi ka hai aaina..zara sa kharch kar lo!!

अबरार अहमद said...

इसे कहते हैं भडास। जो गले में आया उगल दिया। जियो राजेश्वर

VARUN ROY said...

सिंह जी,
मोटे तौर पर आपकी बातों से सहमति है. परन्तु ये जानना रुचिकर होगा कि क्या आप व्यक्तिगत जिंदगी में भी औरतों को उसी तरह से देखते हैं जैसा आपने लिखा है क्योंकि आपके नाम से उस जमाने की बू आती है जिस जमाने में औरतों को पैर की जूती समझा जाता था.
वरुण राय

Anonymous said...

दादा,
ये तेवर हैं भडासी के, और ऐसे तेवर की दरकार है. जिस स्पष्टता के साथ अपने पक्ष को रखा है राजेश्वर जी ने वोह काबिले तारीफ है.
भाई मैं सुरु से ही इसी का पक्षधर रहा हूँ चलिए आप भी हो लिए. वैसी एक बात बता दूं इस से सहमति होना और असहमति होना अलग बिंदु है. इस पे प्रतिक्रिया को भी मैं तब तक सकारात्मक नहीं मान सकता जब तक आप बराबर का दर्जा देने में खुद आगे नहीं आते हैं.

जय जय भडास.

Unknown said...

कभी आपको लगा आपके बाबूजी ने आप के माँ का शोसन किया या फिर आपने अपने पत्नी का ?
आप बड़े चतुराई से अपने अक्ल में बड़ा ही संजीदा जवाब देंगे , खैर पत्नी घर सम्हालती हैं तो किसी मजबूरी की नहीं बल्कि परिवार के प्रति प्रेम की वजह से । आपने तो अपने लेख में सारे
पुरुषो को कसाई बना दिया और महिलाओं को पीड़िता जैसे भारत वर्ष हजारो साल से बस अपने परिवार में माँ ,बेटी और बहिन के साथ में अत्याचार ही कर रहे थे और अब भुगत रहे हैं ।
भाईसाहब तीखे व्यंग और कटाक्ष लेखनी में बड़े अच्छे लगते हैं लेकिन असल सूरत कुछ और हैं ।

आपने भी तो वही किया किसीने बेसुरा गया और आपने बस कीबोर्ड पकड़ के बजा दिया नारिताल ।

आप इसे जरा समझे क्यों आज घर में पति की कमाई एक पत्नी को कम लग रही हैं।

१) हर कोई मुकेश अम्बानी और अनिल नहीं बन सकता हर किसी की सीमाये हैं सायेद यह बात पुरुषो को समझ आती हैं पर एक स्त्री कभी अपने आप को टीना अम्बानी से
से कम नहीं समझेगी , अर्थात अपने वास्तविक परिस्थिओं के मुताबिक या फिर यू कहे अपने औकात से भी ज्यादा का सपना एक ऐसी होड़ में लाता हैं जहा , ये महिलाये अपने
पति से कोस कोस के अपने चादर से भी ज्यादा पैर पसारने से गुरेज नहीं करती।

२) पति-पत्नी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अगर पत्नी प्रेम देती हैं ख्याल रखती हैं तो पति भी बाहर पैसे कमाता हैं ताकि वह अपने परिवार को खाने , रहने की सुरक्षा प्रदान करे ।

३) सभी मर्द बाहर मुह नहीं मारते और सभी महिलाये बाहर घास नहीं डालने देती , जिसे कुछ गलत करना हो तो पडोसी ही काफी हैं । बहार जा कर काम करना अच्छी बात हैं पर इसका मतलब यह नहीं की घर में पति-पत्नी एक दूसरे से स्पर्धा करें या परिस्थितियों का गलत फायदा उठाये ।

भारत वर्ष सदियों से नारी को सन्मान देता आया हैं । कुछ लोग भारत में कुछ शक्तिया आदमी - औरत के बीच अस्तिव की लड़ाई छेड कर हिंदू परिवारो को पाटने का काम कर रहे हैं और हिन्दू संस्कृति भ्रस्ट कर रहे हैं । पहिले "धर्म" बाटे फिर "घर" अब "पति - पत्नी" और अंत में "औलादो" के मन में भी ये बात डालेंगे की पाल - पोश के कोई एहसान नहीं किया आपको भी अपने बुढ़ापे का सहारा चाहीये था !!!! वो दिन दूर नहीं जब "नारी सशक्तिकरण " जैसे की तर्ज पर "औलाद सषक्तीकरन" संघटन खुल जाये ।

तात्पर्य कुछ लोगो को महिला विरोधी और पुरुष प्रधान बातें करने में अक्ल और ताकत का एहसास होता हैं , तो कुछ लोगो को विपरीत , परन्तु स्थिति इसके विपरीत हैं
उन्मुक्त समाज , बदलते परिवेश में पुरुष और महिला दोनों को अपने जिम्मेदारियों की सही लकीर खेचनी चाहिए ।

Vinod Bisen