Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

29.5.08

मोहल्ले में निकल रही भड़ास और भड़ास बना मोहल्ला

बहुत दिनों बाद अपने एक मित्र के बताने पर भड़ास पर आया तो देखता हूं कि भड़ास में एक मोहल्ला बन गया है और मोहल्ले में भड़ास निकल रही है। बात आगे कहने से पहले यशवंत जी एवं सभी बंधुओं से क्षमा चाहता हूं कि भड़ास पर भड़ासी भाइयों का साथ देने की जगह कुछ विपरीत लिख रहा हूं। यदि पहली बार पढने में मेरी कही गई बात गलत या बुरी लगे तो अनुरोध है कि इस पोस्ट को दोबारा पढ़ें और शांति से आत्ममंथन करे।
सबसे पहली बात तो यह है कि भड़ास एक सामुदायिक ब्लॉग है जिसका उद्देश्य पूरे देश के पत्रकारों और आम जन को अपने मन की भड़ास और कुंठाओं को को निकालने का एक मंच प्रदान करना है। हम भड़ास पर बात करते हैं उन सभी गलत बातों की जो समाज में या फिर पत्रकारिता जगत में चल रही हैं। तो फिर नम्बर वन या नम्बर टू वाली बात ही नहीं उठती। और अगर हम लोग ही इस होड़ा-होड़ी में लग जायेंगे तो फिर सनसनी को खबर बना कर प्रस्तुत कर रहे और टी.आर.पी. की अन्धी दौड़ में लगे हुए खबरिया चैनलों में क्या फर्क़ रह जाएगा? और अगर हम ऐसा करते हैं तो कहीं न कहीं हम अपने उद्देश्य से तो भटकते ही हैं साथ ही साथ भड़ास ने जिस पुण्यकर्म के लिए जन्म लिया है उसे भी दूषित करते हैं।
एक तरफ तो हम ब्लॉगिंग को भविष्य के एक सशक्त वैकल्पिक मीडिया के रूप में प्रस्तुत करते हैं और दूसरी तरफ ऐसी छींटाकशी करते हैं। और रही बात नम्बर वन की तो चाहे आज खबरिया चैनल कितनी भी टी.आर.पी. कमा लें पर खबर के मामले में दूरदर्शन की बराबरी नहीं कर सकते क्यों कि आज भी दूरदर्शन “अमिताभ बच्चन के पैदल सिद्धिविनायक मन्दिर जाने” या फिर “मल्लिका शेरावत या राखी सावंत की नंगी टांगों” को मुख्य खबर बना कर नहीं दिखाता। वह आज भी अपने मापदंण्डो पर तटस्थ है। इसीलिये उसकी विश्वस्नीयता आज भी बरकरार है।
मैं यह नहीं कहता कि व्यवसायिक प्रतिद्वन्दिता नही होनी चाहिये। वह भी एक समग्र विकास के लिए बहुत ज़रूरी है परंतु यह भी ध्यान रखा जाए कि यह व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता कहीं दुश्मनी में न बदल जाए। और अगर बदले भी तो कम से कम बशीर बद्र साहब की उन लाइनों को तो अवश्य याद रखा जाए जो कहती हैं: दुश्मनी जम के करो पर यह गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों।
अभी के लिए बस इतना ही लिख रहा हूं आगे इस मसले पर और भी बहुत कुछ है लिखने को पर वो बाद में लिखूंगा। और अंत में मैं यह और कहूंगा कि आप सभी लोग बड़े पत्रकार हैं। बड़े-बड़े लोग हैं। मैं तो एक छोटे से शहर का रहने वाला हूं और अभी पत्रकारिता का शऊर सीख रहा हूं। हो सकता है की अत्यधिक आदर्शवादीता दिखा रहा हूं। सो अगर कुछ गलत लिख या बोल दिया हो तो क्षमाप्रार्थी हूं। छोटा समझ कर मांफ करें। और मेरी प्रतिबद्धिता भड़ास के प्रति है इसीलिए भड़ास के भले के लिए ही सोचूंगा न कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए। और आपको भी इसीलिए बोल रहा हूं क्यों कि जब कोई विवाद होता है तो समझाया अपने व्यक्ति को ही जाता है। किसी सड़क चलते इंसान को नहीं समझाया जाता।

4 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

विकास भाई, आपकी बड़प्पन भरी सोच का हम सब तहेदिल से आदर करते हैं,व्यवसायिकता और प्रतिद्वंद्विता के भाव का भी हम सम्मान करते हैं लेकिन क्या आप इस पूरे प्रकरण से परिचित नहीं हैं कि किस तरह से व्यक्तिगत तौर पर आदरणीय यशवंत दादा को इन सज्जन(?)ने आरोपों का निशाना बनाया है? जरा कम्युनिटी ब्लाग भड़ास के दोनो सिरों यशवंत सिंह और डा.रूपेश श्रीवास्तव पर विचार करेंगे तो आपको स्पष्ट हो जाएगा कि मैं एक भिन्न विचार से जीवन जीने की सोच रखता हूं। मैंने या किसी भी भड़ासीने क्या कभी कोई ऐसा प्रकरण शुरू करने में पहल करी है? अगर कभी किसी से गलती हो भी गई तो क्या हमें भूल का एहसास होने पर क्षमा मांगने पर पीछे हटे हैं? कई बार तो जैसे कि बहन मनीषा पांडे व भड़ास की वरिष्ठ सलाहकार व शुभचिंतक मनीषा दीदी को लेकर तमाम स्वयंभू भले ब्लागरों ने विवाद खड़ा किया उस पर जिस यशवंत ने बिना किसी शर्त के नारीत्व का सम्मान करते हुए सहज ही माफ़ी मांग ली तो क्या आप उस व्यक्ति पर बलात्कारी होने का झूठा आरोप सहन कर सकते हैं? हो सकता है आपका दिल बहुत से भी ज्यादा बड़ा हो पर निजी तौर पर मैं यह सहन नहीं कर सकता..... आपको भी इस मुद्दे पर पुनर्विचार आवश्यक है कि मैं इस मामले में इस तरह से प्रतिक्रिया कर रहा हूं तो वजह है, जरा समझिये कि बात कितनी गम्भीर है,भड़ास अब मात्र ब्लागिंग का मंच नही बल्कि जीवन का दर्शन और शैली बन चुका है यानि सहजता का पर्याय तो आशा है कि आप मुद्दे को समझें और अपनी राय दें मैंने कभी कोई विवाद नहीं चाहा है.....

Anonymous said...

भाई,
आपके विचार अति-उत्तम हैं और हम इनका स्वागत करते हैं. हम भी विवाद नहीं चाहते, और जैसा की डॉक्टर साहब ने कहा अपनी गलतियों पर हमें माफ़ी मांगने से भी कोई गुरेज नहीं है मगर अपने आत्म सम्मान और स्वाभिमान पर चोट हमें बर्दास्त नहीं, कम से कम उससे तो बिलकुल नहीं जो मोहल्ले का कुत्ता है. सच कहा है आपने ये मोहल्ले का कुत्ता अपने मोहल्ले को छोर कर भडासियों पर भोंकने आ गया है और अब इसे भागने की जगह नहीं मिल रही है. हम इसे जगह दे देंगे अगर ये सार्वजनिक माफ़ी मांग ले.

Anonymous said...

मायूसी छोड़ो

मेरे प्यारे देशभक्तों,
आज तक की अपनी जीवन यात्रा में मुझे अनुभव से ये सार मिला कि देश का हर आदमी डर यानि दहशत के साये में साँस ले रहा है! देश व समाज को तबाही से बचाने के लिए मायूस होकर सभी एक दूसरे को झूठी तसल्ली दिए जा रहे हैं. खौफनाक बन चुकी आज की राजनीति को कोई भी चुनौती देने की हिम्मत नही जुटा पा रहा. सभी कुदरत के किसी करिश्मे के इंतजार में बैठे हैं. रिस्क कोई लेना नहीं चाहता. इसी कारण मैं अपने देश के सभी जागरूक, सच्चे, ईमानदार नौजवानों को हौसला
देने के लिए पूरे यकीन के साथ यह दावा कर रहा हूँ की वर्तमान समय में देश में हर क्षेत्र की बिगड़ी हुई हर तस्वीर को एक ही झटके में बदलने का कारगर फोर्मूला अथवा माकूल रास्ता इस वक्त सिर्फ़ मेरे पास ही है. मैंने अपनी 46 साल की उमर में आज तक कभी वादा नहीं किया है मैं सिर्फ़ दावा करता हूँ, जो विश्वास से पैदा होता है. इस विश्वास को हासिल करने के लिए मुझे 30 साल की बेहद दुःख भरी कठिन और बेहद खतरनाक यात्राओं से गुजरना पड़ा है. इस यात्रा में मुझे हर पल किसी अंजान देवीय शक्ति, जिसे लोग रूहानी ताकत भी कहते हैं, की भरपूर मदद मिलती रही है. इसी कारण मैंने इस अनुभव को भी प्राप्त कर लिया कि मैं सब कुछ बदल देने का दावा कर सकूँ. चूँकि ऐसे दावे करना किसी भी इन्सान के लिए असम्भव होता है, लेकिन ये भी कुदरत का सच्चा और पक्का सिधांत है की सच्चाई और मानवता के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर जो भी भगवान का सच्चा सहारा पकड़ लेता है वो कुछ भी और कैसा भी, असंभव भी सम्भव कर सकता है. ऐसी घटनाओं को ही लोग चमत्कार का नाम दे देते हैं. इस मुकाम तक पहुँचने के लिए, पहली और आखिरी एक ही शर्त होती है वो है 100% सच्चाई, 100% इंसानियत, 100% देशप्रेम व 100% बहादुरी यानि मौत का डर ख़त्म होना. यह सब भी बहुत आसान है . सिर्फ़ अपनी सोच से स्वार्थ को हटाकर परोपकार को बिठाना. बस इतने भर से ही कोई भी इन्सान जो चाहे कर सकता है. रोज नए चमत्कार भी गढ़ सकता है क्योंकि इंसान फ़िर केवल माध्यम ही रह जाता है, और करने वाला तो सिर्फ़ परमात्मा ही होता है. भगवान की कृपा से अब तक के प्राप्त अनुभव के बलबूते पर एक ऐसा अद्भुत प्रयोग जल्दी ही करने जा रहा हूँ, जो इतिहास के किसी पन्ने पर आज तक दर्ज नहीं हो पाया है. ऐसे ऐतिहासिक दावे पहले भी सिर्फ़ बेहतरीन लोगों द्वारा ही किए जाते रहे हैं. मैं भी बेहतरीन हूँ इसीलिए इतना बड़ा दावा करने की हिम्मत रखता हूँ.
प्रभु कृपा से मैंने समाज के किसी भी क्षेत्र की हर बर्बाद व जर्जर तस्वीर को भलीभांति व्यावहारिक अनुभव द्वारा जान लिया है. व साथ- साथ उसमें नया रंग-रूप भरने का तरीका भी खोज लिया है. मैंने राजनीति के उस अध्याय को भी खोज लिया है जिस तक ख़ुद को राजनीति का भीष्म पितामह समझने वाले परिपक्व बहुत बड़े तजुर्बेकार नेताओं में पहुँचने की औकात तक नहीं है.
मैं दावा करता हूँ की सिर्फ़ एक बहस से सब कुछ बदल दूंगा. मेरा प्रश्न भी सब कुछ बदलने की क्षमता रखता है. और रही बात अन्य तरीकों की तो मेरा विचार जनता में वो तूफान पैदा कर सकता है जिसे रोकने का अब तक किसी विज्ञान ने भी कोई फार्मूला नही तलाश पाया है.
सन 1945 से आज तक किसी ने भी मेरे जैसे विचार को समाज में पेश करने की कोशिश तक नहीं की. इसकी वजह केवल एक ही खोज पाया हूँ
कि मौजूदा सत्ता तंत्र बहुत खौफनाक, अत्याचारी , अन्यायी और सभी प्रकार की ताकतों से लैस है. इतनी बड़ी ताकत को खदेड़ने के लिए मेरा विशेष खोजी फार्मूला ही कारगर होगा. क्योंकि परमात्मा की ऐसी ही मर्जी है. प्रभु कृपा से मेरे पास हर सवाल का माकूल जबाब तो है ही बल्कि उसे लागू कराने की क्षमता भी है.
{ सच्चे साधू, संत, पीर, फ़कीर, गुरु, जो कि देवता और फ़रिश्ते जैसे होते हैं को छोड़ कर}
देश व समाज, इंसानियत, धर्मं व इन्साफ से जुड़े किसी भी मुद्दे पर, किसी से भी, कहीं भी हल निकलने की हद तक निर्विवाद सभी उसूल और सिधांत व नीतियों के साथ कारगर बहस के लिए पूरी तरह तैयार हूँ. खास तौर पर उन लोगों के साथ जो पूरे समाज में बहरूपिये बनकर धर्म के बड़े-बड़े शोरूम चला रहे हैं.
अंत में अफ़सोस और दुःख के साथ ऐसे अति प्रतिष्ठित ख्याति प्राप्त विशेष हैसियत रखने वाले समाज के विभिन्न क्षेत्र के महान लोगों से व्यक्तिगत भेंट के बाद यह सिद्ध हुआ कि जो चेहरे अखबार, मैगजीन, टीवी, बड़ी-बड़ी सेमिनार और बड़े-बड़े जन समुदाय को मंचों से भाषण व नसीहत देते हुए नजर आ रहे हैं व धर्म की दुकानों से समाज सुधार व देश सेवा के लिए बड़ी-बड़ी कुर्बानियों की बात करने वाले धर्म के ठेकेदार, जो शेरों की तरह दहाड़ते हैं, लगभग 99% लोगों ने बात पूरी होने से पहले ही ख़ुद को चूहों की कौम में परिवर्तित कर लिया. समस्या के समाधान तक पहुँचने से पहले ही इन लोगों ने मज़बूरी में, स्वार्थ में या कायरपन से अथवा मूर्खतावश डर के कारण स्पष्ट समाधान सुझाने के बाद भी राजनैतिक दहशत के कारण पूरी तरह समर्पण कर दिया. यानि हाथी के खाने और दिखने वाले दांत की तरह.
मैं हिंदुस्तान की 125 करोड़ भीड़ में एक साधारण हैसियत का आम आदमी हूँ, जिसकी किसी भी क्षेत्र में कहीं भी आज तक कोई पहचान नहीं है, और आज तक मेरी यही कोशिश रही है की कोई मुझे न पहचाने. जैसा कि अक्सर होता है.
मैं आज भी शायद आपसे रूबरू नहीं होता, लेकिन कुदरत की मर्जी से ऐसा भी हुआ है. चूँकि मैं नीति व सिधांत के तहत अपने विचारों के पिटारे के साथ एक ही दिन में एक ही बार में 125 करोड़ लोगों से ख़ुद को बहुत जल्द परिचित कराऊँगा.
उसी दिन से इस देश का सब कुछ बदल जाएगा यानि सब कुछ ठीक हो जाएगा. चूँकि बात ज्यादा आगे बढ़ रही है इसलिए मैं अपना केवल इतना ही परिचय दे सकता हूँ
कि मेरा अन्तिम लक्ष्य देश के लिए ही जीना और मरना है.
फ़िर भी कोई भी , लेकिन सच्चा व्यक्ति मुझसे व्यक्तिगत मिलना चाहे तो मुझे खुशी ही होगी.. आपना फ़ोन नम्बर और अपना विचार व उद्देश्य mail पर जरुर बताये, मिलने से पहले ये जरुर सोच लें कि मेरे आदर्श , मार्गदर्शक अमर सपूत भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, लाला लाजपत राए सरीखे सच्चे देश भक्त हैं. गाँधी दर्शन में मेरा 0% भी यकीन नहीं हैं.
एक बार फ़िर सभी को यकीन दिला रहा हूँ की हर ताले की मास्टर चाबी मेरे पास है, बस थोड़ा सा इंतजार और करें व भगवान पर विश्वास रखें. बहुत जल्द सब कुछ ठीक कर दूंगा. अगर हो सके तो आप मेरी केवल इतनी मदद करें कि परमात्मा से दुआ करें कि शैतानों की नजर से मेरे बच्चे महफूज रहें.
मुझे अपने अनुभवों पर फक्र है, मैं सब कुछ बदल दूंगा.

क्योंकि मैं बेहतरीन हूँ.
आपका सच्चा हमदर्द
(बेनाम हिन्दुस्तानी)
e-mail- ajadhind.11@gmail.com

Anonymous said...

मायूसी छोड़ो

मेरे प्यारे देशभक्तों,
आज तक की अपनी जीवन यात्रा में मुझे अनुभव से ये सार मिला कि देश का हर आदमी डर यानि दहशत के साये में साँस ले रहा है! देश व समाज को तबाही से बचाने के लिए मायूस होकर सभी एक दूसरे को झूठी तसल्ली दिए जा रहे हैं. खौफनाक बन चुकी आज की राजनीति को कोई भी चुनौती देने की हिम्मत नही जुटा पा रहा. सभी कुदरत के किसी करिश्मे के इंतजार में बैठे हैं. रिस्क कोई लेना नहीं चाहता. इसी कारण मैं अपने देश के सभी जागरूक, सच्चे, ईमानदार नौजवानों को हौसला
देने के लिए पूरे यकीन के साथ यह दावा कर रहा हूँ की वर्तमान समय में देश में हर क्षेत्र की बिगड़ी हुई हर तस्वीर को एक ही झटके में बदलने का कारगर फोर्मूला अथवा माकूल रास्ता इस वक्त सिर्फ़ मेरे पास ही है. मैंने अपनी 46 साल की उमर में आज तक कभी वादा नहीं किया है मैं सिर्फ़ दावा करता हूँ, जो विश्वास से पैदा होता है. इस विश्वास को हासिल करने के लिए मुझे 30 साल की बेहद दुःख भरी कठिन और बेहद खतरनाक यात्राओं से गुजरना पड़ा है. इस यात्रा में मुझे हर पल किसी अंजान देवीय शक्ति, जिसे लोग रूहानी ताकत भी कहते हैं, की भरपूर मदद मिलती रही है. इसी कारण मैंने इस अनुभव को भी प्राप्त कर लिया कि मैं सब कुछ बदल देने का दावा कर सकूँ. चूँकि ऐसे दावे करना किसी भी इन्सान के लिए असम्भव होता है, लेकिन ये भी कुदरत का सच्चा और पक्का सिधांत है की सच्चाई और मानवता के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर जो भी भगवान का सच्चा सहारा पकड़ लेता है वो कुछ भी और कैसा भी, असंभव भी सम्भव कर सकता है. ऐसी घटनाओं को ही लोग चमत्कार का नाम दे देते हैं. इस मुकाम तक पहुँचने के लिए, पहली और आखिरी एक ही शर्त होती है वो है 100% सच्चाई, 100% इंसानियत, 100% देशप्रेम व 100% बहादुरी यानि मौत का डर ख़त्म होना. यह सब भी बहुत आसान है . सिर्फ़ अपनी सोच से स्वार्थ को हटाकर परोपकार को बिठाना. बस इतने भर से ही कोई भी इन्सान जो चाहे कर सकता है. रोज नए चमत्कार भी गढ़ सकता है क्योंकि इंसान फ़िर केवल माध्यम ही रह जाता है, और करने वाला तो सिर्फ़ परमात्मा ही होता है. भगवान की कृपा से अब तक के प्राप्त अनुभव के बलबूते पर एक ऐसा अद्भुत प्रयोग जल्दी ही करने जा रहा हूँ, जो इतिहास के किसी पन्ने पर आज तक दर्ज नहीं हो पाया है. ऐसे ऐतिहासिक दावे पहले भी सिर्फ़ बेहतरीन लोगों द्वारा ही किए जाते रहे हैं. मैं भी बेहतरीन हूँ इसीलिए इतना बड़ा दावा करने की हिम्मत रखता हूँ.
प्रभु कृपा से मैंने समाज के किसी भी क्षेत्र की हर बर्बाद व जर्जर तस्वीर को भलीभांति व्यावहारिक अनुभव द्वारा जान लिया है. व साथ- साथ उसमें नया रंग-रूप भरने का तरीका भी खोज लिया है. मैंने राजनीति के उस अध्याय को भी खोज लिया है जिस तक ख़ुद को राजनीति का भीष्म पितामह समझने वाले परिपक्व बहुत बड़े तजुर्बेकार नेताओं में पहुँचने की औकात तक नहीं है.
मैं दावा करता हूँ की सिर्फ़ एक बहस से सब कुछ बदल दूंगा. मेरा प्रश्न भी सब कुछ बदलने की क्षमता रखता है. और रही बात अन्य तरीकों की तो मेरा विचार जनता में वो तूफान पैदा कर सकता है जिसे रोकने का अब तक किसी विज्ञान ने भी कोई फार्मूला नही तलाश पाया है.
सन 1945 से आज तक किसी ने भी मेरे जैसे विचार को समाज में पेश करने की कोशिश तक नहीं की. इसकी वजह केवल एक ही खोज पाया हूँ
कि मौजूदा सत्ता तंत्र बहुत खौफनाक, अत्याचारी , अन्यायी और सभी प्रकार की ताकतों से लैस है. इतनी बड़ी ताकत को खदेड़ने के लिए मेरा विशेष खोजी फार्मूला ही कारगर होगा. क्योंकि परमात्मा की ऐसी ही मर्जी है. प्रभु कृपा से मेरे पास हर सवाल का माकूल जबाब तो है ही बल्कि उसे लागू कराने की क्षमता भी है.
{ सच्चे साधू, संत, पीर, फ़कीर, गुरु, जो कि देवता और फ़रिश्ते जैसे होते हैं को छोड़ कर}
देश व समाज, इंसानियत, धर्मं व इन्साफ से जुड़े किसी भी मुद्दे पर, किसी से भी, कहीं भी हल निकलने की हद तक निर्विवाद सभी उसूल और सिधांत व नीतियों के साथ कारगर बहस के लिए पूरी तरह तैयार हूँ. खास तौर पर उन लोगों के साथ जो पूरे समाज में बहरूपिये बनकर धर्म के बड़े-बड़े शोरूम चला रहे हैं.
अंत में अफ़सोस और दुःख के साथ ऐसे अति प्रतिष्ठित ख्याति प्राप्त विशेष हैसियत रखने वाले समाज के विभिन्न क्षेत्र के महान लोगों से व्यक्तिगत भेंट के बाद यह सिद्ध हुआ कि जो चेहरे अखबार, मैगजीन, टीवी, बड़ी-बड़ी सेमिनार और बड़े-बड़े जन समुदाय को मंचों से भाषण व नसीहत देते हुए नजर आ रहे हैं व धर्म की दुकानों से समाज सुधार व देश सेवा के लिए बड़ी-बड़ी कुर्बानियों की बात करने वाले धर्म के ठेकेदार, जो शेरों की तरह दहाड़ते हैं, लगभग 99% लोगों ने बात पूरी होने से पहले ही ख़ुद को चूहों की कौम में परिवर्तित कर लिया. समस्या के समाधान तक पहुँचने से पहले ही इन लोगों ने मज़बूरी में, स्वार्थ में या कायरपन से अथवा मूर्खतावश डर के कारण स्पष्ट समाधान सुझाने के बाद भी राजनैतिक दहशत के कारण पूरी तरह समर्पण कर दिया. यानि हाथी के खाने और दिखने वाले दांत की तरह.
मैं हिंदुस्तान की 125 करोड़ भीड़ में एक साधारण हैसियत का आम आदमी हूँ, जिसकी किसी भी क्षेत्र में कहीं भी आज तक कोई पहचान नहीं है, और आज तक मेरी यही कोशिश रही है की कोई मुझे न पहचाने. जैसा कि अक्सर होता है.
मैं आज भी शायद आपसे रूबरू नहीं होता, लेकिन कुदरत की मर्जी से ऐसा भी हुआ है. चूँकि मैं नीति व सिधांत के तहत अपने विचारों के पिटारे के साथ एक ही दिन में एक ही बार में 125 करोड़ लोगों से ख़ुद को बहुत जल्द परिचित कराऊँगा.
उसी दिन से इस देश का सब कुछ बदल जाएगा यानि सब कुछ ठीक हो जाएगा. चूँकि बात ज्यादा आगे बढ़ रही है इसलिए मैं अपना केवल इतना ही परिचय दे सकता हूँ
कि मेरा अन्तिम लक्ष्य देश के लिए ही जीना और मरना है.
फ़िर भी कोई भी , लेकिन सच्चा व्यक्ति मुझसे व्यक्तिगत मिलना चाहे तो मुझे खुशी ही होगी.. आपना फ़ोन नम्बर और अपना विचार व उद्देश्य mail पर जरुर बताये, मिलने से पहले ये जरुर सोच लें कि मेरे आदर्श , मार्गदर्शक अमर सपूत भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, लाला लाजपत राए सरीखे सच्चे देश भक्त हैं. गाँधी दर्शन में मेरा 0% भी यकीन नहीं हैं.
एक बार फ़िर सभी को यकीन दिला रहा हूँ की हर ताले की मास्टर चाबी मेरे पास है, बस थोड़ा सा इंतजार और करें व भगवान पर विश्वास रखें. बहुत जल्द सब कुछ ठीक कर दूंगा. अगर हो सके तो आप मेरी केवल इतनी मदद करें कि परमात्मा से दुआ करें कि शैतानों की नजर से मेरे बच्चे महफूज रहें.
मुझे अपने अनुभवों पर फक्र है, मैं सब कुछ बदल दूंगा.

क्योंकि मैं बेहतरीन हूँ.
आपका सच्चा हमदर्द
(बेनाम हिन्दुस्तानी)
e-mail- ajadhind@gmail.com