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8.5.08

कुछ लोग जमाने में ऐसे भी तो होते हैं

कुछ लोग जमाने में ऐसे भी तो होते हैं
दफ्तर में जो हंसते हैं घर जाकर रोते हैं
बीवी की नजरों में वो अच्छे हैं शौहर
बच्चों के कपड़ों को जो शौक से धोते हैं
जागा किये खिदमत में रातों में जो बीवी के
जाकर के वो दफ्तर में आराम से सोते हैं
पंखों में परिंदों के उड़ने की तमन्ना है
यो बात वो क्या समझें पिंजरे के जो तोते हैं।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६
भाई डॉ. रूपेश श्रीवास्तवआप डॉ. हैं, तमाम लोगों को जय-आरोग्य करते हैं, और हजारों लोग जिन्हें आप जीवन दान देते हैं, वह आपकी नियमित जय-जयकार करते हैं आपकी तो राग जयजयवंती में जय हो..विजय हो और सभी भड़ासियों की जय सुनकर आप खुश होते रहें, ऐसा आपका विराट ह्रदय हो। तो फिर एकबार हो जाए जय-जयकार..अविराम..अनंत।।जयभड़ास..जय यशवंत।।

4 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

ये बात वो क्या समझें पिंजरे के जो तोते हैं।
जो समझ कर भी न समझे वो खोते(गधे) हैं ॥
मैं भी कवि बन गया जय जय कार पढ़ कर बौरा गया हूं... खिसिर खिसिर... :)

VARUN ROY said...

गुरुदेव की जय,
बदले हुए मिजाज की ग़ज़ल से दिल गदगद हो गया.
वरुण राय

Anonymous said...

पंडित जी दंडवत,
आपके जयकार से तो बस अब जय जय जय ही करने को दिल करने लगा है.
इस करीबी रचना के लिए पुनास्च बधाई.

मजा आ गया. डॉक्टर साब का कवि बनते होना देख के .

जय जय भडास

अबरार अहमद said...

बडे भईया प्रणाम। बहुत खूब कही आपने। पर महिलाएं कहीं नाराज न हो जाएं।