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6.5.08

पोटेशियम दिन हुए रात सोडियम

पोटेशियम दिन हुए रात सोडियम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम
किरमिची सन्नाटे थर्राता तम
अणुधर्मी गर्मी में घुटता है दम
घायल है सुबह की नर्म-नर्म एड़ियां
डसती है धरती को युद्धों की बेड़ियां
बारूद सांसों में आज गया जम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम
कारक है हिंसा युद्ध है करण
हारती है जिंदगी जीतता मरण
गांधी के सपनों की आंख हुई नम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम
जाएं ना झुलस कहीं प्यार के नमन
कुंठित ना हो जाएं मंत्र और हवन
अट्टहास करता है बहशी-सा यम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम।
यशवंतजी आपको केबिनेट के सफल पुर्नगठन के लिए साधुवाद। आप शोहरत की बुलंदियां यूं ही चढ़ते जाएं..चेक जल्दी इनकेश हो, प्रभु से प्रचंड शुभ कामनाएं। ( डॉ.रूपेश श्रीवास्तव, डियरेस्तम भाई.. नई उपलिब्ध हेतु ढ़ेरों बधाई।वरुण राय, रजनीश के.झा, अजीत कुमार मिश्रा और भाई अबरार अहमद सभी आत्मीयों का आभार और नये दायित्व के लिए मुबारकबाद। हरेप्रकाशजी को बधाई मगर बंधुवर याद रहे मेरी मिठाई..)
पं. सुरेश नीरव
मों. ९८१०२४३९६६

3 comments:

VARUN ROY said...

क्या बात है गुरुवर. विज्ञान, व्याकरण और संवेदना का ऐसा मिश्रण विरले ही देखने को मिलता है.
जय हो .
वरुण राय

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी,
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम।
जब तक सांस बाकी है दम में है दम । ।
देखा महाराज एक एक लाइनां तो हम भी लिक्खै लागे और इहै तरह हमहू छोट-मोट बोनसाई कवि बन जइहैं
जय जय भड़ास

Anonymous said...

पंडित जी.

"गांधी के सपनों की आंख हुई नम"

कोन सा गाँधी काहे का गांधी अच्छा हुआ की ससुरा मर गया नहीं तो अब खुदे मर जाता.
बेहतरीन है.

साधुवाद