देश भर में हर साल पत्नी से दुखी होकर 50 हजार से अधिक लोग खुदकुशी करते हैं। एक लाख से अधिक पीड़ित पति कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहे हैं।
महिलाओं द्वारा पतियों के उपर प्रताड़ित किए जाने के जितने भी केस दर्ज कराए
जाते रहे हैं, उनमें से 90 फीसदी तक गलत पाए गए हैं।
सरकारी हेल्पलाइन पर प्रतिदिन 10-12 पत्नी पीड़ित पति मदद के लिए संपर्क करते हैं जबकि 32-40 पीड़ित प्रति सप्ताह मिलकर पत्नियों की प्रताड़ना से निजात पाने के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
पत्नी सताए तो हमें बताएं इस नारे के फोन नंबर सहित तख्तियां आपको पूरी दिल्ली
में प्रमुख चौराहों पर देखने को मिल जाएंगी। यह नारा अखिल भारतीय पत्नी अत्याचार विरोधी मोर्चा का है।
जानवरों पर अगर अत्याचार होता है तो उसके लिए कानून है लेकिन पतियों पर
अत्याचार के लिए कोई कानून नहीं है।पति अपनी पत्नी द्वारा किए जा रहे अत्याचार की शिकायत करना भी चाहे तो नहीं कर सकता है क्योंकि उसी के उपर यह आरोप लगा दिया जाता है कि तुमने अपनी पत्नी को प्रताड़ित किया होगा।
अब तो सरकार भी इस मामले की गंभीरता को मानने लगी है, तभी केंद्र सरकार 25 जून को इस मुद्दे पर गोलमेज सम्मेलन करने जा रही है।------------------------------
उपरोक्त लाइनें आज प्रकाशित राष्ट्रीय सहारा, दिल्ली संस्करण के प्रथम पेज से ली गई हैं। रिपोर्टर का नाम है अमित कुमार।
खबर तो बेहद इंटरेस्टिंग है और पठनीय भी। साथ ही किसी मामले के दूसरे पहलू को उजागर करने वाली भी। पहली नजर में मैं खुद यह नहीं मान पा रहा हूं कि इतने लोग पत्नी पीड़ित होंगे पर आंकड़े अगर यह सच्चाई बयां कर रहे हैं और केंद्र सरकार भी इस मुद्दे पर गोलमेज सम्मेलन करने जा रही है तो यह आंख खोलने के लिए काफी है।
महिला और दलित शब्द का दिन भर रात भर हरिकीर्तन गाने वालों को ये आंकड़े नहीं दिखेंगे क्योंकि उनके लिए महिला और दलित शब्द उनके जीवन की नैया पार लगाने और उन्हें परम बौद्धिक साबित करने के लिए मंत्र की तरह काम करते हैं। उन्हें तो मजा ही इसी खेल में आता है कि वे पट से किसी को दलित या महिला विरोधी साबित कर दें पर हम कठमुल्ला नहीं है न ही आंख नाक कान बंद किए हुए लोग हैं। सच को सच की तरह सुनने का साहस रखते हैं।
भई, मैं दलित और महिलाओं के प्रति बेहद संवेदनशील होते हुए भी महिलाओं द्वारा सताए पतियों या पुरुषों की पीड़ा के साथ हूं। ये वो लोग होते हैं जो न कुछ कह सकते हैं और न कुछ सुना सकते हैं क्योंकि समाज का माइंडसेट उन्हें कुछ भी कहने का मौका ही नहीं देता क्योंकि समाज के ठेकेदार पहले ही जज बनकर यह फैसला सुना चुके होते हैं कि गलती इस मर्द की ही होगी क्योंकि महिला तो हमेशा सताई और रुलाई वाले सीन में ही दिखती है।
आपको याद होगा, एक बार एक टीवी चैनल वाले ने एक पत्नी पीड़ित के साथ मिलकर स्टिंग किया था जिसमें उसकी पत्नी किस तरह अपने पति को पीट रही थी बार बार, यह दिखाया जा रहा था। उस सीन को देखकर उन दिनों मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे। वो बेचारा पति गाय की माफिक पिट रहा था। था तो मोटा तगड़ा लेकिन पिटते वक्त बार बार चेहरा इस कदर छुपा रहा था जैसे अभी बेहद कमसिन हो।
यह उस सीन का रिवर्सल था जिसमें आमतौर पर पति अपनी पत्नियों को पिटता दिखता मिलता है। रोज दारू पीकर आना और रात में पत्नी द्वारा विरोध किए जाने पर लात जूतों से पीटना, यह एक पारंपरिक दृश्य हुआ करता है। पर ये पारंपरिक दृश्य अब कई वजहों से तेजी से बदल रहे हैं। एक तो महिलाओं का जागरूक होना, उनका शिक्षित होना, उन्हें कानूनी संरक्षण प्रदान करना और उनका आत्मनिर्भर होते जाना। ऐसे में वो हर कदम पर निर्णय और सहभागिता में भागीदार होती हैं या होना चाहती हैं। ये उचित भी है और सकारात्मक भी। पर इसके चक्कर में अपने पति बेचारे पिटते रहें, पिसते रहें, पीड़ित होकर भटकते रहें, ये भी उचित नहीं। हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं और इनके हितों की रक्षा के लिए भी कानून बनाने की मांग करते हैं।
ये एक बहस है, जिसमें आप भी अपनी राय दे सकते हैं। हां, मैं अपने बारे में साफ कर दूं की मैं अभी तक पत्नी पीड़िता नहीं हूं। अगर यही चाल चलन रहे तो हो सकता है कि कुछ दिनों में मैं भी पत्नी पीड़ित संघ का सदस्य बना घूमता फिरूं :)
जय भड़ास
यशवंत
6.6.08
पत्नी पीड़ित पतियों के मुद्दे पर सरकार गंभीर, 25 जून को गोलमेज सम्मेलन
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh
Labels: केंद्र सरकार, पति, पत्नी पीड़ित, पहल, बहस, बेचारे, भड़ास
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3 comments:
दद्दा,
शानदार खबर है ओर मैं बताता चलूं की मैं भी आपकी ही श्रेणी में आता हूं। देखिये कहीं साथ साथ ही इस अभियान में शामिल ना होना पडे ;-)
जय जय भडास
मैं भी पीड़ित हूँ...बेइंतिहा
मन करता है sucide कर लूं
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